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कोरोना इलाज के लिए आयुष मंत्रालय ने नहीं दी डॉ बिस्वरूप के ट्रीटमेंट को मंजूरी

बिस्वरूप ने गलत दावा किया है कि उनके बनाए NICE प्रोटोकॉल के जरिए कोरोना के इलाज को मंजूरी मिल गई है.

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कई न्यूज पब्लिकेशन ने 23 जुलाई, शुक्रवार को एक रिपोर्ट पब्लिश की. रिपोर्ट में दावा किया गया कि "राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) और आयुष मंत्रालय ने माइल्ड से गंभीर कोविड-19 वाले लोगों के लिए आहार आधारित उपचार को मंजूरी दे दी है.''

इस मेथड को नेटवर्क ऑफ इन्फ्लुएंजा केयर एक्सपर्ट्स (NICE) प्रोटोकॉल कहा गया. इस मेथड को गढ़ने वाले बिस्वरूप रॉय चौधरी हैं. चौधरी ने पहले भी कोविड-19 से जुड़े कई भ्रामक और खतरनाक दावे किए हैं.

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आयुष मंत्रालय ने बुधवार, 28 जुलाई को दावों पर एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि मंत्रालय ने नए ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल को मंजूरी नहीं दी है. प्रेस रिलीज में ये भी बताया गया है कि चौधरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंत्रालय के नाम का उल्लेख करने के लिए मंत्रालय ने स्वीकृति नहीं दी थी.

दावा

न्यूज आर्टिकल की हेडलाइन कुछ इस तरह थीं, ''NIN & AYUSH Ministry recommends NICE protocol for COVID treatment" (NIN और आयुष मंत्रालय ने कोविड के इलाज के लिए NICE प्रोटोकॉल की सिफारिश की)

इस रिपोर्ट को Express Health Desk, The Week सहित कई वेबसाइटों पर पब्लिश किया गया था.

बिस्वरूप ने गलत दावा किया है कि उनके बनाए NICE प्रोटोकॉल के जरिए कोरोना के इलाज को मंजूरी मिल गई है.

पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)

The Week की रिपोर्ट में एक डिस्क्लेमर था जिसमें कहा गया था, ''नीचे दी गई प्रेस रिलीज को Business Wire India के साथ समझौते के तहत छापा गया है.''

न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस प्रोटोकॉल की ये मुख्य विशेषताएं हैं:

  • NICE प्रोटोकॉल के तहत हल्के से गंभीर मरीजों को सात दिनों में ठीक किया जा सकता है.

  • NICE प्रोटोकॉल में कोई दवा शामिल नहीं है. सिर्फ नारियल पानी और खट्टे फलों का रस इलाज के लिए मुख्य इन्ग्रीडिएंट हैं. इसके अलावा, वो मरीज जिन्हें सांस लेने में दिक्कत है उनके लिए प्रोन वेंटिलेशन का इस्तेमाल.

  • NICE प्रोटोकॉल पर रोगियों में मृत्यु, प्रतिकूल प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं देखे गए.

  • सोशल डिस्टेंसिंग/पीपीई किट/मास्क के बजाय, रोगियों को गाने, नाचने, परिवार के लोगों से नियमित रूप से मिलने के लिए प्रोत्साहित किया गया. साथ ही, उन्हें COVID-19 केंद्र (अहमदनगर) में विवाह समारोहों का आयोजन करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया.

    फेसबुक और ट्विटर पर किए गए ऐसे पोस्ट के आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

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पड़ताल में हमने क्या पाया

हमने आयुष मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर देखा, लेकिन हमें मंत्रालय की ओर से ऐसे किसी ट्रीटमेंट का रिकमंडेशन नहीं मिला.

कीवर्ड सर्च करने पर, हमें प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की एक प्रेस रिलीज मिली. इस प्रेस रिलीज में बताया गया है कि न्यूज रिपोर्ट्स में किए गए दावों और चौधरी के दावों को खारिज कर दिया गया है.

प्रेस रिलीज का टाइटल है, ''आयुष मंत्रालय ने नेटवर्क ऑफ इन्फ्लुएंजा केयर एक्सपर्ट्स (NICE) के प्रोटोकॉल को मंजूरी नहीं दी है.''

बिस्वरूप ने गलत दावा किया है कि उनके बनाए NICE प्रोटोकॉल के जरिए कोरोना के इलाज को मंजूरी मिल गई है.

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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/PIB)

हमने पाया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में चौधरी ने दावा किया था कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरोपैथी ने उनके प्रोटोकॉल को मंजूरी दे दी है. जैसा कि न्यूज रिपोर्ट में बताया गया था.
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प्रेस रिलीज के मुताबिक, NICE के दावे झूठे हैं. इसमें आगे कहा गया है कि ''NIN ने अहमदनगर में NICE केंद्र में अपनाई जा रही प्रैक्टिसेज का दस्तावेजीकरण करने के लिए, एक ऑब्जर्वेशनल स्टडी की है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि हम इन प्रैक्टिसेज का समर्थन करते हैं.''

प्रेस रिलीज में NICE के इस दावे को भी खारिज किया गया कि कोविड-19 से जुड़ी गाइडलाइन, जैसे कि पीपीई किट पहनना, मास्क लगाना या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना जरूरी नहीं है. आखिर में, प्रेस रिलीज में ये भी कहा गया है कि ''NIN, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार का नाम और राष्ट्रीय प्रतीक के इस्तेमाल का भी अधिकार नहीं दिया गया था.

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कौन हैं बिस्वरूप रॉय चौधरी?

डायबिटीज स्टडी में मानद पीएचडी का दावा करने वाले बिस्वरूप रॉय चौधरी के लिए गलत सूचनाएं फैलाना नई बात नहीं है.

इसके पहले भी वो NICE प्रोटोकॉल की तरह ही फलों पर आधारित डायट के साथ शुगर को ठीक करने से जुड़े कई झूठे दावे कर चुके हैं. क्विंट की वेबकूफ टीम ने इस दावे को खारिज किया था.

इस साल की शुरुआत में, चौधरी ने तरुण कोठारी और अन्य लोगों के साथ मिलकर कोविड वैक्सीन को लेकर एक झूठी सलाह दी थी, कि किसे कोरोना वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए. क्विंट ने इस दावे को भी खारिज किया था.

भ्रामक और गलत सूचनाएं फैलाने के लिए उनके ऑफिशियल फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पेजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. लेकिन, ये 'इंटरनेट डॉक्टर' अपने फॉलोवर्स के जरिए कोविड, शुगर, और कोरोना वैक्सीन से जुड़े झूठा और भ्रामक दावे कर रहे हैं. इनमें से कुछ के तो सोशल मीडिया पर काफी फॉलोवर हैं.

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