ADVERTISEMENTREMOVE AD

फेक न्यूज बन रही राजनीति का हथकंडा, रिपोर्ट में सामने आया क्या है वजह

The Future of India Foundation की रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल प्लेटफॉर्म्स की पॉलिसी फेक न्यूज रोकने में काफी नहीं

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां इस वक्त सबसे सस्ती दरों पर इंटरनेट उपलब्ध है. यही वजह है कि सोशल मीडिया की पहुंच आम लोगों तक हुई है, और इसने हमारे इंफॉर्मेशन नेटवर्क को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इंटरनेट की इस क्रांति का उपयोग हम अपने देश में और ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने के साथ-साथ आम आदमी और पॉलिसी मेकर्स के बीच की दूरी को कम करने में कर सकते थे.

हालांकि, सोशल मीडिया का उपयोग इस पॉजिटिव पहलू पर करने की बजाए इसे अब एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. एक ऐसा हथियार जिसका इस्तेमाल कभी राजनीतिक तौर पर किया जाता है तो कभी व्यावसायिक एजेंडों को पूरा करने के लिए.

Future of India Foundation ने 5 मई, 2022 को नई दिल्ली स्थित हैबिटैट सेंटर में फेक न्यूज के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें सामने आए निष्कर्ष ये बताते हैं कि कैसे प्लेटफॉर्म पर भ्रामक जानकारियों के जरिए खास राजनीतिक और व्यवसायिक एजेंडों को पूरा करने के लिए एक संगठित तंत्र तैयार किया गया है.

रिपोर्ट जारी होने से पहले नेशनल हैबिटेट सेंटर में भ्रामक सूचनाओं के लगातार बड़े होते तंत्र और इसे रोकने के तरीकों पर चर्चा भी हुई. पैनल में Future of India Foundation की फाउंडर रुचि गुप्ता, को फाउंडर सौरभ कुमार, मीडिया लीड नितिन सेठी, पत्रकार कुमार संभव, वकील अपार गुप्ता, वकील प्रशांतो सेन और नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राउट टू इंफॉर्मेशन (NCPRI) के संस्थापक सदस्य निखिल डे मौजूद थे.

सोशल मीडिया का इस्तेमाल, क्या होना था और क्या हो रहा है

सोशल मीडिया का स्ट्रक्चर इस वक्त ऐसा नजर आता है, जिससे इसका उपयोग भ्रामक जानकारियों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए आसानी से हो सकता है.

जिस सोशल मीडिया का उपयोग इंफॉर्मेशन सिस्टम को और लोकतांत्रिक बनाने में हो सकता था, उसका उपयोग अब भ्रामक या झूठी खबरों के एक संगठित तंत्र के रूप में होता दिख रहा है. सोशल मीडिया पर झूठी खबरों के साथ संगठित तौर पर न सिर्फ नफरत फैलाई जा रही है, बल्कि खुलेआम अल्पसंख्यक विरोधी कंटेंट भी अब मेन स्ट्रीम की तरह दिखने लगा है. समुदाय या तो बंटते दिख रहे हैं या फिर उनका ध्रुवीकरण हो रहा है.

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब सोशल मीडिया पर सच की नींव रखना काफी मुश्किल नजर आता है.

फेक न्यूज के पॉलिटिकल एजेंडे पर बात करना जरूरी

ये काफी हद तक स्पष्ट है कि भ्रामक सूचनाओं के संगठित तंत्र का या तो पॉलिटिकल या फिर कमर्शियल एजेंडा है. हालांकि, इन सबके बावजूद भारत में अब भी राजनीतिक एजेंडों को पूरा करने के लिए फैल रही फेक न्यूज बड़ी चर्चा का विषय नहीं है. देश में फेक न्यूज पर चर्चा के दौरान अब भी कुछ विशेष कंटेंट और इवेंट्स पर बात होती है, न कि भ्रामक जानकारियां फैलाने के पीछे चल रहे बड़े राजनीतिक संदर्भ पर.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फेक न्यूज को लेकर सोशल प्लेटफॉर्म्स उठा रहे सही कदम?

वैश्विक स्तर पर भ्रामक सूचनाओं या फेक न्यूज पर छिड़ी चर्चा भी सिर्फ कंटेंट स्टैंडर्ड, फैक्ट चेकिंग, कंटेंट को प्लेटफॉर्म से हटा लेने तक ही सीमित हो गई है. चर्चा का इस तरह से छोटे दायरे तक सीमित रहने का नुकसान ये है कि एक ऐसा फ्रेमवर्क तैयार हो रहा है, जहां कंटेंट के हिसाब से पक्षपात होने की पूरी गुंजाइश है. यही वजह है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी ये छूट मिलती है कि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा करते हुए फेक न्यूज को मॉडरेट करने की बजाए इस डिस्कोर्स को भ्रमित करते रहें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये सभी मुद्दे दुष्प्रचार और फेक न्यूज के साथ सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं और ये रिपोर्ट बताती है कि कंटेंट मॉडरेशन का वर्तमान सिस्टम फेक न्यूज को रोकने में कारगर नहीं है, ये सिर्फ प्लेटफॉर्म्स के लिए एक कम्युनिकेशन प्रैक्टिस है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फेक न्यूज के खिलाफ लड़ाई में युवाओं को शामिल करना जरूरी

Future of India Foundation के को-फाउंडर सौरभ कुमार ने रिपोर्ट जारी करते वक्त अपने अनुभव साझा करते हुए कहा.

फेक न्यूज के नैरेटिव को खत्म करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है आप उन लोगों से संवाद करें जो फेक न्यूज के जाल में फंस गए हैं. मेरा अनुभव रहा है कि थोड़ी बात करने पर उन लोगों को रियलाइज होता है कि जो वो मान रहे हैं वो पूरी तरह सच नहीं है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा बात करें और युवाओं से संवाद करें. उन्हें फेक न्यूज के खतरे के बारे में बताएं. इस मुहिम में युवाओं को जोड़ना सबसे ज्यादा जरूरी है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

फेसबुक भ्रमित करता है, हमारा काम है आईना दिखाना 

बातचीत के दौरान फाउंडर रुचि गुप्ता ने एक सवाल के जवाब में कहा ''फेसबुक अपनी जिम्मेदारी से सिर्फ ये कहकर नहीं भाग सकता कि वो तो सिर्फ एक टेक प्लेटफॉर्म है. फेसबुक एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, और उसकी जिम्मेदारी बनती है''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फेसबुक दिखाता रहा है गैर जिम्मेदाराना रवैय्या

कार्यक्रम में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के वकील एडवोकेट प्रशांतो सेन ने फेसबुक के गैर जिम्मेदाराना रवैय्ये पर बात की. प्रशांतो ने कहा ''फेसबुक के लिए सबसे पहले तो ये जरूरी है कि वो बातचीत करे, संवाद करे जो कि वो करता नहीं है. दिल्ली विधानसभा की तरफ से फेसबुक के साथ संवाद करने के लिए कमेटी बनाई गई थी. लेकिन, फेसबुक ने शुरुआती कुछ बातचीत के बाद पेश होने से ही इनकार कर दिया. यानी संवाद करने से ही इनकार कर दिया.

अदालतों की तरफ से भी फेसबुक के इस रवैय्ये को गलत बताया जा चुका है. हमारी Parliamentary Bodies को ऐसे मामले में तो कुछ कानूनों का पालन कराना चाहिए. फिर चाहे वो दिल्ली विधानसभा हो या फिर लोकसभा.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फेक न्यूज की समस्या पर लगाम लगाने, रिपोर्ट में सुझाए गए तरीके

  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए एक पारदर्शी कानून बनाया जाए.

  • सोशल मीडिया के लिए एक रेगुलेटर बने, भले ही उसका संसदीय निरीक्षण हो

  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया जाए

  • एक्सट्रीम कंटेंट को बढ़ावा देने वाले डिजाइन हटाए जाएं

  • फैक्ट चेकिंग के लिए एक बेहतर माहौल तैयार हो

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×