किसान आंदोलन के बीच सोशल मीडिया पर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते और तलवार लिए एक सिख समुदाय के शख्स का वीडियो वायरल हो रहा है. दावा किया जा रहा है कि ये वीडियो अभी चल रहे किसान आंदोलन के दौरान का है.
लेकिन सच्चाई ये है कि ये वीडियो 4 साल पुराना है. ये वीडियो मई 2016 का है जब कट्टरपंथी सिख समूह हिंदू दक्षिणपंथी ग्रुप शिवसेना की “ललकार रैली” के खिलाफ ब्यास पुल पर जमा हुए थे.
क्या दावा किया जा रहा है?
सोशल मीडिया पर कई यूजर वीडियो शेयर कर रहे हैं और लिख रहे हैं, “नाम किसान आंदोलन, और हाथों में हत्यार और खालिसतान के नारे."
इस वीडियो की सच्चाई जानने के लिए क्विंट के कई पाठकों ने भी संपर्क किया, जिसके बाद हमने इसकी पड़ताल की है.
क्या है सच्चाई?
जब क्विंट ने वायरल वीडियो का एक रिवर्स इमेज सर्च किया तो हमें सामने मार्च 2020 का एक YouTube वीडियो मिला, जिसका टाइटल था, "राजकरगा खालसा खालिस्तान जिंदाबाद (अमृतसर में शिवसेना को नहीं आने देंगे)."
कीवर्ड सर्च करने पर हमें असली वीडियो मिला, जोकि 25 मई 2020 को खालसा गटका ग्रुप के यूट्यूब चैनल पर डाला गया था. जिसका टाइटल था, "लाइव फ्रॉम ब्यास (शिव सेना को अमृतसर नहीं आने देंगे)"
हमें 25 मई 2016 को छपी हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट भी मिली, जिसमें कहा गया था कि “हिंदू दक्षिणपंथी शिवसेना ने भी अपनी ललकार रैली को लगभग तीन दिन पहले बंद कर दिया था, सिख कट्टरपंथी प्रस्तावित स्थल पर इकट्ठे हुए थे - ब्यास पुल-पर राष्ट्रीय राजमार्ग -1 बुधवार को उन्हें चुनौती देने के लिए.”
रैली का आयोजन ध्यान सिंह मंड द्वारा किया गया था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने ये भी बताया कि सिख कट्टरपंथी समूहों ने "पुलिस की मौजूदगी में भड़काऊ नारे लगाए."
पुलिस ने शिवसेना और सिख नेताओं को दो समुदायों के बीच झड़प को रोकने के लिए घर में ही बंद कर दिया था, हालांकि, कई युवा सिख कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने में कामयाब रहे. ट्रिब्यून और स्थानीय समाचार चैनल AOne पंजाबी ने भी इस घटना की सूचना दी थी.
जाहिर है, 2016 के एक पुराने वीडियो को गलत तरीके से शेयर किया गया है और दावा किया जा रहा है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच 'खालिस्तान जिंदाबाद ’के नारे लगे हैं.
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