ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘गुजरात से नहीं हुआ पलायन’ - BJP नेता सीआर पाटिल का झूठा दावा 

गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने दावा किया कि लॉकडाउन में गुजरात से एक भी पलायन नहीं हुआ

Published
story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा

बीजेपी गुजरात अध्यक्ष सीआर पाटिल ने 18 फरवरी को कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन में गुजरात से एक भी मजदूर को पलायन नहीं करना पड़ा.

हालांकि, ये बयान तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. रिपोर्ट्स और स्टडीज बताती हैं कि राज्य में काम कम होने के अलावा खाने की व्यवस्था और वेतन की गारंटी न होने के चलते कई मजदूरों को अपने घर वापस जाने के लिए राज्य छोड़ना पड़ा था. यहां तक कि गुजरात हाई कोर्ट तक ने 11 मई को स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर प्रवासी मजदूर सबसे ज्यादा अमानवीय स्थिति में देखे गए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोरोना महामारी के चलते भारत सरकार ने 24 मार्च, 2020 से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की. ऐसे हजारों प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया जो अपना घर बार छोड़कर बड़े शहरों में मजदूरी कर रहे थे और अब उनका रोजगार छिन चुका था.  पाटिल के बयान में उन लाखों मजदूरों का जिक्र नहीं है जो गुजरात के लघु और मध्यम उद्योगों का हिस्सा हैं.

सीआर पाटिल ने क्या कहा ?

बीजेपी के गुजरात अध्यक्ष सीआर पाटिल 144 नगर निगम वार्डों के कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग को संबोधित कर रहे थे. इस महीने होने जा रहे चुनाव को लेकर हुई यह मीटिंग लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए हुई थी. 10 मिनट का भाषण गुजरने के बाद सीआर पाटिल ने कहा कि लॉकडाउन लगने के बाद एक भी प्रवासी मजदूर को गुजरात से पलायन नहीं करना पड़ा. क्योंकि उन्हें भरोसा था कि उनके खाने और रहने की राज्य में पर्याप्त व्यवस्था है.

इस पूरे देश में चाहे वह दिल्ली हो, मुंबई या फिर कोई अन्य शहर. लॉकडाउन लगते ही शाम से ही लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया था. लेकिन गुजरात से एक भी मजदूर ने पलायन नहीं किया 
सीआर पाटिल, अध्यक्ष, बीजेपी गुजरात

पाटिल ने आगे कहा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को शेल्टर और खाना उपलब्ध कराया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दूसरे लॉकडाउन तक भी गुजरात से पलायन शुरू ही नहीं हुआ था.

15 लाख वर्कर्स ने छोड़ा गुजरात: स्टडी

महात्मा गांधी लेबर इंस्टीटयूट द्वारा की गई स्टडी में सामने आया कि लॉकडाउन में 14.97 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर गुजरात छोड़ अपने घर लौटे थे. महात्मा गांधी लेबर इंस्टीटयूट गुजरात सरकार द्वारा स्थापित की गई एक स्वशासी संस्था है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात राज्य के 51 प्रतिशत मजदूर सूरत में काम करते हैं. अहमदाबाद के बाद सबसे ज्यादा पलायन लॉकडाउन में यहीं देखा गया. करीब 7 लाख से ज्यादा मजदूरोंं ने लॉकडाउन में सूरत छोड़ा.

स्टडी में आगे बताया गया है कि दूसरे चरण का लॉकडाउन खत्म होने के बाद गुजरात ने देश भर में सबसे ज्यादा श्रमिक स्पेशल ट्रेनें भेजी थीं. राज्य सरकार ने 231 शेल्टर होम भी शुरू किए थे, जिनमें 8000 से ज्यादा मजदूर 40 दिन रहे थे.

गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने दावा किया कि लॉकडाउन में गुजरात से एक भी पलायन नहीं हुआ
26 मार्च 2020 - सूरत से अपने घर को लौटते प्रवासी मजदूर 
फोटो - PTI
ADVERTISEMENTREMOVE AD

5 मई, 2020 को गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने हिंदुस्तान टाइम्स को इंटरव्यू दिया था. रुपाणी से जब प्रवासी मजदरों के डर के बारे में सवाल किया गया. तो जवाब में उन्होंने कहा कि राज्य ने मजदूरों के लिए खाने और रहने की व्यवस्था की है. इसके बाद भी हजारों मजदूर अपने घर अपने परिवार के पास जाना चाहते हैं. राज्य की ट्रांसपोर्ट बसें और रेलवे की श्रमिक स्पेशन ट्रेनेें इसके लिए ही शुरू की गई हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सेंटर फॉर सोशल स्टडीज की डायरेक्टर किरण देसाई ने द क्विंट से हुई बातचीत में इस दावे को खारिज किया कि एक भी मजदूर ने राज्य नहीं छोड़ा. किरण देसाई ने बताया कि सूरत प्रवासी मजदूरों का गढ़ है. असंगठित क्षेत्र खासतौर पर निर्माण से जुड़े अधिकतर मजदूर यहीं हैं.पड़ोस के जिलों से आए आदिवासी मजदूर राज्य से बाहर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े थे. वहीं बिहार, ओडिशा और उत्तरप्रदेश के रहने वाले मजदूरों ने साधन की व्यवस्था होते ही राज्य छोड़ दिया.

गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने दावा किया कि लॉकडाउन में गुजरात से एक भी पलायन नहीं हुआ
प्रवासी श्रमिक 27 मार्च 2020 को सूरत से अपने गांव वापस जाते हुए 
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मजदूरों को भूख से मौत का डर

गुजरात हाई कोर्ट ने कुछ न्यूज रिपोर्ट्स के आधार पर फंसे हुए मजदूरों के मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा ता कि उन्हें कोविड-19 का नहीं, बल्कि इस बात का डर है कि वे भूख से मर जाएंगे. हाई कोर्ट ने कहा कि वंचित तबके के बीच भरोसा बनाए रखना राज्य सरकार का ही काम है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता और अनहद एनजीओ के ट्रस्टी देव देसाई ने द क्विंट से बातचीत में बताया कि उन्होंने बंगाल और बिहार के 400 से अधिक श्रमिकों की दुर्दशा को डॉक्युमेंट किया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

देसाई ने आगे कहा कि उन मजदूरों को न तो खाना मिल रहा था न ही कोई अन्य सुविधा. सुरक्षा की वजह से उन्हें प्लांट में भी नहीं घुसने दिया जा रहा था वे भूखे थे. मैं दूसरे कुछ समूहों के साथ अप्रैल के महीने में उन सभी को खाना उपलब्ध कराने के लिए पहुंचा था. उनमें से कई मजदूर पैदल चलकर ही गुजरात के बाहर गए थे.

पाटिल के बयान के उलट राज्य के मजदूर काम बंद होने के बाद अपनी आजीविका को लेकर आश्वस्त नहीं थे.   
ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रोफेसर किरण बताती हैं कि अधिकतर प्रवासी मजदूर दक्षिण गुजरात के सूरत जैसे उन शहरों में ही रहते हैं जहां फैक्ट्रियां हैं. जब महामारी आई तब कई एनजीओ और सिविल सोसायटी ग्रुप्स ने उन तक खाना पहुंचाने में मदद की. नौकरी चले जाने के बाद कई मजदूरों को मौत का डर था. इसलिए यहां मरने की बजाए उन्होंने पैदल चलकर घर जाना ज्यादा बेहतर समझा. खासतौर पर सूरत और अंकलेश्वर के मजदूरों ने .

ADVERTISEMENTREMOVE AD

घर जाने के लिए प्रदर्शन

लॉकडाउन के समय की कुछ रिपोर्ट्स से पता चलता है कि कई प्रवासी मजदूरों ने घर वापस जाने को लेकर प्रदर्शन किया था. क्विंट ने सूरत में हुए इस प्रदर्शन को कवर भी किया था. एक प्रवासी मजदूर ने द क्विंट के रिपोर्टर से बातचीत में कहा था कि यहां हमारी जेब में एक रुपया भी नहीं है, इससे बेहतर तो है कि हम अपने गांव जाकर मर जाएं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

न्यूज एजेंसी पीटीआई की मई 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूरत में हजारों मजदूरों की घर जाने को लेकर पुलिस से झड़प भी हुई थी. मजदूरों ने अपना कीमती सामान बेचकर घर जाने के लिए बस की टिकटें खरीदी थीं. लेकिन प्रशासन की अनुमति न होने के चलते उन्हें रोक दिया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मई की शुरुआत में सरकार ने उन मजदूरों को वापस जाने की अनुमति दे दी थी जो खुद के साधन की व्यवस्था कर सकते हैं. लेकिन मजदूरों की मांग थी कि उनके लिए बसों और ट्रेनों का इंतजाम किया जाए.

राजकोट के एक कर्मचारी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से हुई बातचीत में कहा था - हमारी कंपनी ने शुरुआत में तो वेतन दिया, लेकिन अब नहीं मिल रहा है. हमारे पास खाने को कुछ नहीं है. हम चाहते हैं कि सरकार वापस जाने के लिए ट्रेन का प्रबंध करे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रोफेसर किरण ने मजदूरों की इस परेशानी के बारे में भी कहा-

उन्हें मजदूरी नहीं दी जा रही थी. बिना आय के वे सूरत जैसे महंगे शहर में कैंसे आजीविका चला सकते हैं ? वे अपने घर का किराया नहीं दे पा रहे थे. कुछ एनजीओ खाना उपलब्ध कराते थे पर वे उसपर कब तक निर्भर रहते ?
गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने दावा किया कि लॉकडाउन में गुजरात से एक भी पलायन नहीं हुआ
फोटो - PTI
9 मई 2020 को सूरत की एक सड़क पर पैदल चलकर अपने घर मध्यप्रदेश जाते प्रवासी मजदूर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

न्यूज एजेंसी पीटीआई की मई की रिपोर्ट के मुताबिक घर वापस जाने वाले मजदूरों की सबसे ज्यादा संख्या गुजरात में ही देखी गई. लॉकडाउन में एक सप्ताह के भीतर 65 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाकर 70,000 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजा गया.

हाईकोर्ट में गुजरात सरकार द्वारा दिए गए जवाब के मुताबिक, सभी मजदूर वापस नहीं गए. कुछ को सरकार की तरफ से खाना और शेल्टर भी उपलब्ध कराया गया. मतलब साफ है कि सीआर पाटिल का ये दावा भ्रामक है कि गुजरात से एक भी मजदूर ने पलायन नहीं किया.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×