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Olympics 1948: बजट की कमी से भारतीय फुटबॉल टीम ने नंगे पैर खेला? झूठा दावा

1948 Olympics में कुछ भारतीय फुटबॉलर सिर्फ इस वजह से बिना जूतों के खेले थे क्योंकि उन्हें ऐसे ही खेलना पसंद था.

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सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लैटफॉर्म पर नंगे पैर खड़े खिलाड़ियों की तस्वीर को शेयर किया जा रहा है. इन्हें शेयर कर ये भ्रामक नैरेटिव सेट करने की कोशिश की जा रही है कि 1948 में हुए लंदन ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम को नंगे पैर खेलना पड़ा था, क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे.

ये नैरेटिव पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक तस्वीर के साथ शेयर किया जा रहा है. इसमें आगे कहा जा रहा है, ''ये वो समय ता जब नेहरू के कपड़े ड्राई-क्लीन होने के लिए पेरिस जाया करते थे.''

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हालांकि, पड़ताल में हमने पाया कि 1948 के लंदन ओलंपिक में खेलने वाली भारतीय फुटबॉल टीम के पास जूते खरीदने से जुड़ी कोई समस्या नहीं थी. टीम में तब सभी के पास जूते थे. हालांकि, वो उनके बिना ही जितना संभव हो सकता था उतना खेलना पसंद करते थे. खिलाड़ी खेल की पिच गीली या गंदी होने पर ही जूते पहनते थे.

दावा

पूर्व प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए, इन तस्वीरों के साथ हिंदी और इंग्लिश दोनों में ही एक जैसे दावे शेयर किए जा रहे हैं.

सोशल मीडिया पर इन तस्वीरों के साथ किए गए ऐसे ही दावों के आर्काइव आप यहां, यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

पड़ताल में हमने क्या पाया

हमने गूगल पर 'Indian football team at 1948 Olympics' सर्च करके देखा. हमें इस इवेंट से जुड़ी कई न्यूज रिपोर्ट्स मिलीं.

हमें साल 2014 का The Hindu का एक आर्टिकल मिला. इसमें कहा गया है कि भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी बिना जूतों के खेलना पसंद करते थे. इसमें टीम के ट्रेनर बीडी चटर्जी के हवाले से ये भी बताया गया है कि तब टीम के पास जूते थे, ताकि जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके.

हमें Indian Express का 1 अगस्त 1948 के एडिशन का आर्काइव भी मिला. इसमें फ्रांस की टीम से भारत की हार के बारे में एक आर्टिकल था. इस आर्टिकल में ये लिखा गया था कि भारत के 11 में से 8 खिलाड़ी नंगे पैर खेले.

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इसके अलावा, हमें FIFA के ऑफिशियल अकाउंट से किया गया 2018 का एक ट्वीट मिला. इसमें कहा गया था कि, ''ज्यादातर भारतीय खिलाड़ी नंगे पैर थे.'' इस ट्वीट के साथ एक फोटो भी शेयर की गई थी जिसमें एक भारतीय खिलाड़ी जूतों में और तीन बिना जूतों के देखे जा सकते हैं.

ओलंपिक में स्वतंत्र भारत के पहले फुटबॉल खेल के 73 साल पूरे होने पर भारतीय फुटबॉल टीम के ऑफिशियल अकाउंट से भी यही तस्वीर ट्वीट की गई थी.

क्विंट ने 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत के पहले मैच के बारे में जानने के लिए, जर्नलिस्ट और 'बेयरफुट टू बूट्स: द मेनी लाइव्स ऑफ इंडियन फुटबॉल' के लेखक नोवी कपाड़िया से बात की.

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''विशेष रूप से बेंगलुरु और कलकत्ता के खिलाड़ी नंगे पर खेलते हुए बड़े हुए थे. इसलिए, वो जूतों में कंफर्टेबल महसूस नहीं करते थे. बाद में जब जूते जरूरी कर दिए गए, तो अहमद खान जैसे शीर्ष खिलाड़ियों को भारतीय टीम से बाहर करना पड़ा क्योंकि वो जूते पहनकर खेल नहीं पाते थे.''
नोवी कपाड़िया, लेखक और फुटबॉल एक्सपर्ट

कपाड़िया ने पुष्टि की कि टीम के पास निश्चित तौर पर उनके जूते पहनने या न पहनने से जुड़े विकल्प थे.

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कपाड़िया ने कहा, ''पसंद उनकी थी. गोल करने वाले एस रमन एक बेहतरीन ड्रिबलर थे, लेकिन वो नंगे पैर ही खेल पाते थे.'' उन्होंने आगे कहा कि नंगे पैर खेलना उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता था. खिलाड़ी नंगे पैर खेलने में सहज महसूस करते थे. उस समय के कप्तान T Ao ने खुले तौर पर कहा था कि ये फुटबॉल है, बूटबॉल नहीं.

मतलब साफ है कि 1948 के ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली आजाद भारत की फुटबॉल टीम, पैसों की कमी की वजह से नहीं बल्कि अपनी पसंद से नंगे पैर खेली थे. ऐसा इसलिए, क्योंकि बहुत से खिलाड़ियों को नंगे पैर खेलना पसंद था.

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