इन दिनों सोशल मीडिया पर पत्रकारों, लेखकों और ब्यूरोक्रेट्स को लेकर एक मैसेज तेजी से वायरल हो रहा है. वायरल मैसेज में दावा किया जा रहा है कि तकरीबन 68 ऐसे पत्रकार, लेखक, और ब्यूरोक्रेट्स हैं, जिन्हें मोदी के खिलाफ लिखने के लिए कैम्ब्रिज एनालिटिक नाम की कंपनी हर महीने 2 से 5 लाख रुपये देती है.
पोस्टकार्ड नाम की वेबसाइट पर भी यह खबर छपी है लेकिन खबर में उन पत्रकारों के नाम नहीं दिए गए हैं, जिन्हें पैसे दिए जाते हैं. हालांकि, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे मैसेज में सभी 68 लोगों के नाम दिए गए हैं.
बड़ी तादाद में सोशल मीडिया यूजर्स इस मैसेज को फेसबुक और ट्विटर पर शेयर कर रहे हैं.
मामला सच या झूठ?
वायरल मैसेज का दावा पूरी तरह से झूठा और मनगढ़ंत है. मामले की पड़ताल में क्विंट ने वायरल मैसेज की लिस्ट में जो नाम शामिल है उनमें से कुछ से संपर्क किया. द वायर के फाउडंंर एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन और एनडीटीवी के एक्जीक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार ने वायरल मैसेज के दावे को सिरे से खारिज करते हुए इसे फेक न्यूज बताया.
इस लिस्ट में सोशल एक्टिविस्ट हर्ष मंदर का नाम भी शामिल है. इस वायरल मैसेज को निराधार बताते हुए उन्होंने कहा कि-
“लोग अपने खिलाफ कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं. असहमति लोकतंत्र की खूबसूरती है. आज कोई भी अपने से विरोधी विचारधारा को सुनने तक को तैयार नहीं है. लोग सरकार के खिलाफ भी कुछ सुनना नहीं चाहते.”
एमनेस्टी इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आकार पटेल का नाम भी वायरल मैसेज की लिस्ट में शामिल है. उन्होंने इस पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि-
“जो लोग इस मैसेज को वायरल कर रहे हैं क्या वो बता सकते है कि ये पैसा कहां से आ रहा है? और पैसा आया तो है कहां? मेरे दोस्त ने वादा किया था मेरे खाते में 15 लाख आएंगे लेकिन अब तक नहीं आए.”
इस वायरल मैसेज में रवीश कुमार से लेकर शेखर गुप्ता तक कई पत्रकारों के नाम की स्पेलिंग भी गलत लिखी है. इस तरह से क्विंट की पड़ताल में यह वायरल मैसेज फेक साबित होता है.
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