सोशल मीडिया पर कई यूजर्स महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को मौत की सजा देने वाले पंजाब हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जीडी खोसला से जुड़ी एक पोस्ट शेयर कर रहे हैं.
क्या है पोस्ट में?: इस पोस्ट में जस्टिस जीडी खोसला की किताब 'द मर्डर ऑफ महात्मा एंड अदर केसेस फ्रॉम ए जजेज डायरी' का जिक्र है, जिसमें गोडसे के मुकदमे के बारे में बताया गया है.
किताब के पेज नंबर 305 और 306 में लिखी गई बातों के आधार में इसमें बताया गया है कि कोर्ट में मौजूद लोग गोडसे के उस लंबे बयान से प्रभावित हुए जो उन्होंने अपने बचाव में दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें "गोडसे पर फैसला देने के लिए कहा गया होता, तो वो गोडसे को बहुमत से 'निर्दोष' घोषित कर देते."
पोस्ट के मुताबिक, खोसला भी गोडसे के बयान से प्रभावित थे और ''गोडसे को मौत की सजा नहीं देना चाहते थे'', लेकिन उनका कहना है कि ''सरकार और प्रशासन के दबाव में उन्हें ऐसा करने के लिए मजूबर किया गया था.''
इसमें आगे ये भी कहा गया है कि खोसला को पता था कि उन्होंने गोडसे को मौत की सजा देकर ''पाप'' किया है. इस वजह से उनकी मौत के बाद ''भयानक सजा'' उनका इंतजार कर रही है. इसमें जज के हवाले से ये भी बताया गया कि उन्होंने कहा था कि "मैंने एक निर्दोष और महान देशभक्त को मौत की सजा दी थी जिसके लिए भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेंगे".
क्या ये सच है?: नहीं, इस किताब में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि जस्टिस खोसला पर गोडसे और आप्टे को मौत की सजा देने के लिए कोई दबाव महसूस कर रहे थे.
हालांकि, इसमें इस बारे में बताया गया है कि खोसला को वहां मौजूद लोगों में गोडसे के प्रति सहानुभूति महसूस की थी. इसमें सिर्फ गोडसे को अपने मन की बात कहने देने और उस समय के बारे में बताया गया है जब गोडसे को सच में फांसी दी गई थी.
हमने सच का पता कैसे लगाया?: जरूरी कीवर्ड का इस्तेमाल कर हमने जीडी खोसला की लिखी किताब 'द मर्डर ऑफ महात्मा एंड अदर केसेस फ्रॉम ए जजेज डायरी' की डिजिटल कॉपी सर्च की. इससे हमें इंटरनेट आर्काइविंग वेबसाइट Wayback Machine पर इसकी एक कॉपी मिली.
इसमें पेज 305 और 306 पढ़ने के बाद, हमने पाया कि यहां खोसला ने अपने काम को ''नैतिक पक्ष'' को लेकर आश्वस्त होने की बात की थी.
इन पेजों में इस बारे में बताया गया है कि गोडसे ने खुद को अदालत में कैसे पेश किया और उन्होंने एक लेखक और वक्ता के तौर पर ''अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल'' कैसे किया. खोसला ने लिखा है कि गोडसे ने पवित्र ग्रंथों और भगवद गीता के श्लोक पढ़े और अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने और उसकी रक्षा करने के लिए ''हिंदुओं से भावपूर्ण अपील'' की.
खोसला ने उस दौरान कोर्ट के अंदर के पलों को किसी ''हॉलीवुड फीचर फिल्म के सीन'' की तरह मेलोड्रामा वाला बताते हुए लिखा, ''वहां उपस्थित लोग ये सब देख और सुनकर प्रभावित हुए''.
यहां, उन्होंने लिखा कि कैसे कोर्ट में मौजूद लोग अगर जूरी होते, तो ''वो भारी बहुमत से गोडसे के 'निर्दोष' होने का फैसला लेते.''
इन पेजों में खोसला की व्यक्तिगत टिप्प्णी गोडसे के बयान के बारे में ही थी. ये टिप्पणी इस बारे में थी कि ''गोडसे जो कुछ कह रहा था वो अप्रासंगिक'' था. हालांकि, वहां मौजूद लोग और उनके सहयोगी उसको बोलते सुनना चाह रहे थे.
इसके बाद खोसला ने लिखा कि उन्होंने खुद से कहा, ''ये आदमी जल्द ही मरने वाला है. वो नुकसान पहुंचा चुका है. इसलिए उसे आखिरी बार अपनी बात कहने की अनुमति दी जानी चाहिए.''
पूरी किताब में इस बारे में कहीं नहीं लिखा है कि खोसला पर गोडसे को मौत की सजा देने के लिए सरकार या प्रशासन से कोई दबाव था.
पहले के पेजों पर खोसला किसी को मौत की सजा देने में अपनी झिझक के बारे में बताते हैं. जब उनके पास अनुभव कम था उस समय के बारे में बात करते हुए वो लिखते हैं कि उन्हें डर था कि कहीं अनुभव में कमी की वजह से वो ''किसी निर्दोष को मौत की सजा न दे दें''.
खोसला ने लिखा, ''मृत्युदंड इतना ज्यादा पूरी तरह से न बदलने वाला और निर्दयी फैसला है कि मुझे ये दंड देने में कुछ हद तक इच्छा महसूस नहीं होती है.''
निष्कर्ष: पंजाब हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जीडी खोसला ने ये नहीं कहा था कि नाथूराम गोडसे को मौत की सजा देने के लिए उन पर दबाव डाला गया था.
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