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महात्मा गांधी फोटो में ब्रिटिश आर्मी के साथ नहीं, फुटबॉल टीम के साथ खड़े हैं

फोटो में महात्मा गांधी उस फुटबॉल क्लब के खिलाड़ियों के साथ खड़े दिख रहे हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने ही की थी.

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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को लेकर सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है. फोटो के साथ मैसेज में दावा किया जा रहा है कि महात्मा गांधी ब्रिटिश आर्मी में सार्जेंट मेजर थे और उन्होंने कई भारतीयों को ब्रिटिश आर्मी जाइन करवाया था.

हालांकि, पड़ताल में हमने पाया कि वायरल फोटो 1913 की है और वो उनके बनाए फुटबॉल क्लब ‘passive resisters’ टीम के साथ खड़े हैं, न कि ब्रिटिश आर्मी के साथ. इस क्लब को खुद महात्मा गांधी ने बनाया था.

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इसके अलावा, हमने ये भी पाया कि महात्मा गांधी ने द्वितीय बोअर युद्ध में ब्रिटिश आर्मी की ओर से लड़ने वाले सैनिकों की सहायता के लिए 'एंबुलेंस कॉर्प्स' की स्थापना की थी, जिसमें उनके साथ सहयोग करने वाले लोग भी भारतीय ही थे. साथ ही, ये संस्था पूरी तरह से भारतीयों के सहयोग से ही चलती थी.

दावा

वायरल फोटो शेयर कर मैसेज में लिखा गया है कि गांधी 1899 मे ब्रिटिश-आर्मी में सार्जेंट मेजर थे. साथ ही ये भी लिखा गया है कि वो 1906 में ब्रिटिश आर्मी की 'ब्रिटिश एंबुलेस कॉप्स' का हिस्सा थे और उन्होंने बड़ी संख्या में भारतीयों को ब्रिटिश आर्मी जॉइन करने की प्रेरणा दी. इसके लिए, उन्हें बोअर वार मेडल और सर्विस मेडल दिया गया.

सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इस फोटो को ऐसे ही दावों के साथ शेयर किया है. इनमें से कुछ के आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

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पड़ताल में हमने क्या पाया

फोटो को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च करने पर, हमें Live Mint, Times of India और New Indian Express पर पब्लिश रिपोर्ट्स मिलीं, जिनमें इसी फोटो का इस्तेमाल किया गया था.

Live Mint पर 27 जून 2010 में पब्लिश स्टोरी के मुताबिक, महात्मा गांधी कभी भी एक खिलाड़ी की तरह प्रोफेशनल या मशहूर नहीं हुए, लेकिन उन्हें फुटबॉल काफी पसंद था. गांधी जी 1893 से लेकर 1915 तक साउथ अफ्रीका में रहे. जहां उन्होंने जोहान्सबर्ग और प्रिटोरिया (श्वानी) में दो फुटबॉल क्लब खोले.

इस फोटो के कैप्शन में इंग्लिश में जो कैप्शन लिखा था उसका हिंदी इस प्रकार है, ''खेल से पहले: दक्षिण अफ्रीका में ‘passive resisters’, 1913. महात्मा गांधी अपनी सेक्रेटरी सोनिया स्लेसिन के साथ पीछे वाली लाइन में बाएं से छठे नंबर पर खड़े हैं''

उन्होंने इन क्लब को Passive Resisters नाम दिया. ये नाम उन्होंने हेनरी थोरो और लियो टॉलस्टॉय के लेखन में पॉलिटिकल फिलोसॉफी से प्रेरित होकर दिया. इसी फिलोसॉफी को उन्होंने साउथ अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव और अन्याय से लड़ने के लिए अपनाया था.
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फोटो के लिए, Dinodia को क्रेडिट दिया गया था. हमने वेबसाइट में जाकर देखा और हमें यही फोटो इस वेबसाइट पर भी मिली, जिसे विट्ठलभाई झावेरी नें खींचा था. कैप्शन के मुताबिक, फोटो 1913 में फुटबॉल मैच के पहले खींची गई थी.

क्या महात्मा गांधी ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा थे? क्या 'एंबुलेंस कॉर्प्स' ब्रिटिश आर्मी ने बनाया था?

गांधी ने अपनी आत्मकथा Story of My Experiments With Truth में लिखा है कि उन्हें साउथ अफ्रीका में 1906 के जुलू विद्रोह के दौरान एक सार्जेंट मेजर के अस्थायी पद पर नियुक्त किया गया था.

इसके अलावा, हमें Alamy पर एक मिली. जिसमें फोटो के लिए Dinodia को ही क्रेडिट दिया गया था. हमने वेबसाइट पर जाकर देखा. कैप्शन के मुताबिक, फोटो को जयन मित्रा ने खींचा था और ये फोटो 1906 की है. इसमें गांधी को सार्जेंट मेजर के रूप में देखा जा सकता है.

हमने ये जानने के लिए कि क्या महात्मा गांधी सच में ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा थे, गूगल पर 'mahatma gandhi british ambulance corps' कीवर्ड सर्च करके देखा. हमें Hindustan Times का 24 अक्टूबर 2008 का एक आर्टिकल मिला.

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स्टोरी में जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने हवाले से लिखा है कि:

गांधी को कभी भी ब्रिटिश सेना की ओर से नौकरी नहीं दी गई थी. उन्होंने ब्रिटिश सेना को चिकित्सा सेवा मुहैया कराने के लिए, स्वैच्छिक रूप से 'एंबुलेस कॉर्प्स' की स्थापना की थी. इसमें जो लोग भी शामिल थे वो लड़ाकू नहीं थे. ये कहना गलत है कि उन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन की थी.

स्टोरी में आगे बताया गया है कि गांधी जी का 'एंबुलेंस कॉर्प्स' एक गैर सैन्य इकाई थी, जिसमें 1100 लोग शामिल थे.

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इसके अलावा, हमें The Wire पर भी एक रिपोर्ट मिली. सीनिय जर्नलिस्ट एंड्र्यू वाइटहेड लिखते हैं कि गांधी जी ने ब्रिटिश सैनिकों के उपचार के लिए 'एंबुलेंस कॉर्प्स' बनाया था. साथ ही, ये ऑर्गनाइजेशन भारतीयों के रुपयों से चलता था. स्टोरी में ये भी बताया गया है कि गांधी जी को उनकी सेवा के लिए ब्रिटेन की ओर से क्वीन्स साउथ अफ्रीका मेडल से सम्मानित किया गया

मतलब साफ है कि वायरल फोटो में महात्मा गांधी फुटबॉल टीम के साथ खड़े हुए हैं, जिसे इस शेयर कर ये दिखाने की कोशिश की गई गांधी ब्रिटिश आर्मी के साथ खड़े हैं. इसके अलावा, महात्मा गांधी ब्रिटिश आर्मी की तरफ से लड़े नहीं थे, बल्कि उन्होंने भारतीयों से मिली मदद से युद्ध में घायल सिपाहियों के लिए 'एंबुलेंस कॉर्प्स' नाम का एक ऑर्गनाइजेशन खोला था.

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