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Verify Kiya Kya। मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मेशन में क्या फर्क है?

मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मेशन में फर्क सिर्फ इसे फैलाने के इरादे या मकसद का है.

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा

लोग अक्सर हर तरह की गलत जानकारी और सूचनाओं को ''फेक न्यूज'' कहते हैं. ऐसे में हमने 'वेरिफाई किया क्या' के इस एपीसोड में दो ऐसे शब्दों के बारे में बताने की कोशिश की है जो बहुत ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. वो शब्द हैं 'मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मेशन'.

मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मेशन में फर्क सिर्फ इसे फैलाने के इरादे या मकसद का है.

'मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मेशन'

(फोटो कर्टसी: Tenor)

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''फेक न्यूज'' एक ऐसा टर्म है जिसका इस्तेमाल ऐसी ''तोड़-मरोड़कर पेश की गई ऐसी जानकारी के लिए किया जाता है जो देखने में न्यूज कंटेंट'' की तरह लगता है. लेकिन क्या हर तरह की गलत जानकारी ''फेक'' कही जा सकती है? या कोई और भी टर्म हैं जो इसे बेहतर तरीके से पेश कर सकते हैं?

इसके अलावा, मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉमेशन क्या होता है?

मिसइन्फॉर्मेशन या डिसइन्फॉर्मेशन- किस शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए?

चलिए जानते हैं इन शब्दों का मतलब. मिसइन्फॉर्मेशन से मतलब है- जब कोई गलत या झूठी जानकारी शेयर तो करता है लेकिन उसका इरादा गुमराह करने का नहीं होता. वहीं डिसइन्फॉर्मेशन तब होती है जब गलत जानकारी शेयर करने के पीछे का इरादा ही गुमराह करना हो.

दोनों के बीच का फर्क सिर्फ इरादे या मकसद का है.
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उदाहरण के लिए: अगर आपको कोई ऐसा मैसेज मिलता है कि माइक्रोवेव में खाना बनाना नुकसानदायक है. क्योंकि उसके रेडिएशन से खाने के सभी पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं. अब आप ये मैसेज अपने दोस्तों और परिवार को भेज देते हैं. ऐसा आप इसलिए करते हैं क्योंकि आप उनकी परवाह करते हैं. आपका मकसद उन्हें गुमराह करने का नहीं था. ऐसे में ये मिसइन्फॉर्मेशन हुई.

वहीं जब कोई किसी को नुकसान पहुंचाने, हिंसा भड़काने या लोगों को आपस में बांटने के इरादे से किसी गलत जानकारी को शेयर करता है. जबकि उसे पता है कि वो गलत जानकारी फैला रहा है, तो ऐसे में वो डिसइन्फॉर्मेशन फैला रहा है.

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FirstDraft के मुताबिक, दोनों को आगे इस प्रकार अलग-अलग बांटा जा सकता है:

सटायर या पैरोडी: ऐसा हो सकता है कि पैरोडी या सटायर बनाने का इरादा किसी को नुकसान पहुंचाने का हो या न हो. लेकिन, इससे लोग ऐसी चीजों पर भरोसा कर लेते हैं जो सच नहीं होतीं.

भ्रामक सामग्री: गलत नैरेटिव बनाने के लिए किसी फोटो या वीडियो का इस्तेमाल.

तोड़-मरोड़ के बनाई गई सामग्री (फैब्रिकेटेड सामग्री): जब किसी नैरेटिव को बनाने के लिए किसी तस्वीर या वीडियो को डिजिटली एडिट किया जाता है.

छेड़छाड़ कर बनाई गई सामग्री (मैनिपुलेटिव सामग्री): जब लोगों को भरोसा दिलाने के लिए वास्तविक सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है.

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(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर 9643651818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं)

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