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‘नेताजी’ पर PM मोदी के बयान को कपिल मिश्रा ने गलत तरह से शेयर किया

सुभाष चंद्र बोस ने साल 1943 में सिंगापुर में आजाद हिंद की अस्थाई सरकार के गठन की घोषणा की थी.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार, 8 फरवरी को राज्य सभा में अपने संबोधन के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में बोलते हुए कहा कि वे ''आजाद हिंद फौज (इंडियन नैशनल आर्मी) की पहली सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे.''

इसके तुरंत बाद ही बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने पीएम मोदी को कोट करते हुए गलत दावे के साथ एक ट्वीट किया जिसमें कहा गया कि ''नेताजी सुभाषचंद्र बोस इंडिया के पहले प्रधानमंत्री थे. इस दावे को राइट विंग वेबसाइट ऑपइंडिया ने भी शेयर किया. इसके बाद कई सोशल मीडिया यूजर्स ने भी इसे शेयर करना शुरू कर दिया.

सुभाष चंद्र बोस ने साल 1943 में सिंगापुर में आजाद हिंद की अस्थाई सरकार के गठन की घोषणा की थी.
पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें
(सोर्स: ट्विटर/सक्रीनशॉट)
सुभाष चंद्र बोस ने साल 1943 में सिंगापुर में आजाद हिंद की अस्थाई सरकार के गठन की घोषणा की थी.
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(सोर्स: ट्विटर/सक्रीनशॉट)

यह दावा ऐसे समय में वायरल हो रहा है जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेताजी की विरासत को लेकर दिन रात एक किए हुए हैं.

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आजाद हिंद की अस्थायी सरकार

इसके बारे में लिखित प्रमाण हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे. सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में आजाद हिंद (आजाद भारत) के लिए अस्थायी सरकार के गठन की घोषणा की थी. उन्होंने ये घोषणा भी की थी कि वह खुद हेड ऑफ स्टेट, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री होंगे.

अस्थायी सरकार वह सरकार होती है जिसका गठन राजनैतिक बदलाव को मैनेज करने के लिए किया जाता है. ऐसी सरकार का गठन विशेषकर ऐसे समय में किया जाता है जब नए राष्ट्र का गठन हो रहा हो या फिर पिछली सरकार और प्रशासन का पतन हो गया हो.

वायर में 21 अक्टूबर 2020 को एक रिपोर्ट छपी थी. इस रिपोर्ट में प्रोविजनल गवर्नमेंट ऑफ फ्री इंडिया (PGFI) यानी आजाद हिंद की अस्थायी सरकार के बारे में लिखा गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इस सरकार का संचालन सिंगापुर से होता था और इसका अपना खुद का, कोर्ट, करेंसी, सिविल कोड, और राष्ट्रगान (सुभ सुख चैन) भी था.

PGFI को 9 देशों जापान, जर्मनी, इटली, क्रोएशिया, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपीन्स, मांचुको (मंचूरिया) और रिपब्लिक ऑफ चाइना ने मान्यता दी थी. इस रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि इस सरकार को आयरलैंड के प्रधानमंत्री एमन ड वलेरा ने अपनी शुभकामनाएं भी भेजी थी.

क्या आजाद हिंद की अस्थायी सरकार देश के बाहर गठित भारत की पहली सरकार थी?

नहीं, देश के बाहर बनाई गई भारत की पहली सरकार का गठन महेंद्र प्रताप और मौलाना बरकतउल्ला ने साल 1915 में किया था. महेंद्र प्रताप इस सरकार के राष्ट्रपति और बरकतउल्ला प्रधानमंत्री थे. इसे 'हुकूमत-ए-मुख्तार-ए-हिंद' कहा जाता था.

आउटलुक की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक हाथरस राज्य के राजकुमार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत की आजादी के लिए समर्थन पाने के लिए बर्लिन से इस्तांबुल और मास्को तक गए.

मतलब साफ है कि सुभाष चंद्र बोस भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं थे. भले ही हम उस दौरान की ही बात क्यों न करें जब देश आजाद नहीं हुआ था और अस्थायी सरकारें देश से बाहर कहीं और बनाई गई थीं.
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'बोस ने कभी भी खुद को भारत का प्रधानमंत्री नहीं कहा'

हमने लेखक और वरिष्ठ स्तंभकार सुधींद्र कुलकर्णी से बात की जिन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर बोस को भारत का पहला प्रधानमंत्री कहने वाले बयान भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को बदलने के लिए भाजपा के प्रयासों का एक हिस्सा हैं.

कुलकर्णी ने कहा, ''जवाहरलाल नेहरू को छोड़कर, भाजपा लंबे समय से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के कई नेताओं को भुनाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी ने बहुत हद तक सरदार पटेल के नाम को भुना भी लिया है. महात्मा गांधी को दरकिनार कर दिया है. उन्हें सिर्फ स्वच्छ भारत अभियान के ब्रांड एंबेसडर के तौर पर ही पेश किया जा रहा है.''

‘’नेताजी बोस स्वतंत्रता आंदोलन के अगले नेता हैं जिनके नाम को बीजेपी भुनाना चाह रही है. बोस ने कभी भी खुद को भारत का प्रधानमंत्री नहीं कहा जबकि उन्होंने आजाद हिंद की सरकार का देश के बाहर सिंगापुर में गठन किया था. उन्होंने यह साफ किया था कि देश की आजादी के बाद कॉन्ग्रेस इस बात का फैसला लेगी कि देश में किस तरह की सरकार होगी.’’
लेखक और वरिष्ठ स्तंभकार सुधींद्र कुलकर्णी
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सुभाष चंद्र बोस ने जिस अस्थायी सरकार का गठन किया था उसने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने जापान के साथ बातचीत की शुरआत की और पूर्वी एशिया में भारत के लिए समर्थन भी जुटाया. हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने का यह पहला प्रयास नहीं था और बोस निश्चित रूप से "भारत के पहले प्रधानमंत्री" नहीं थे.

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