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क्या भारत में सिर्फ मंदिरों को ही टैक्स देना पड़ता है? नहीं, ये दावा गलत है

किसी भी धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों की कुछ गतिविधियों पर टैक्स लगता है और कुछ गतिविधियों पर नहीं लगता

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सोशल मीडिया पर ये मैसेज फिर से वायरल हो रहा कि 'सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही Tax देना पड़ता है, जबकि दूसरे धर्मों को नहीं देना पड़ता'. इसके पहले भी ये दावा कई बार वायरल हो चुका है.

हालांकि, हमने पाया कि ये दावा झूठा है और भारत में धर्म के आधार पर टैक्स नहीं लिया जाता है. वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) ने भी साल 2017 में एक प्रेस रिलीज में इसे स्पष्ट किया था.

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दावा

Elvish Yadav नाम के एक वेरिफाइड ट्विटर अकाउंट से एक ट्वीट पोस्ट किया गया, जिसमें लिखा था, ''एक देश जहां सभी को धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है, सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही टैक्स क्यों देना पड़ता है? #FreeTemples". इस अकाउंट के 1,50,000 से ज्यादा फॉलोवर्स हैं.

किसी भी धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों की कुछ गतिविधियों पर टैक्स लगता है और कुछ गतिविधियों पर नहीं लगता

पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)

फेसबुक और ट्विटर पर कई यूजर्स ने इसी तरह के दावे शेयर किए हैं. इनके आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.

कई लोगों ने इस तरह के दावे 2017 में तब भी किए थे, जब जीएसटी पेश किया गया था. बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दावा किया था कि सिर्फ मंदिर की गतिविधियों पर टैक्स लगाया जाएगा, न कि मस्जिदों या चर्चों पर.

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पड़ताल में हमने क्या पाया

सेंट्रल जीएसटी एक्ट के मुताबिक, अगर एक वित्तीय वर्ष में किसी भी बिजनेस/संस्था का कुल कारोबार 40 लाख रुपये (तेलंगाना को छोड़कर सभी सामान्य कैटेगरी के राज्यों में) और 20 लाख (स्पेशल कैटेगरी के राज्यों में, जम्मू-कश्मीर और असम को छोड़कर) से ज्यादा है, तो उन्हें माल और सेवा कर के तहत खुद को रजिस्टर करना होता है.

किसी विशेष धर्म से संबंधित संस्था/निकाय के लिए कोई अलग टैक्स नहीं है.

Central Board of Indirect Taxes and Customs (CBIC) की वेबसाइट के मुताबिक, 'धर्मार्थ और धार्मिक ट्रस्टों की ओर से दी जाने वाली सभी सेवाएं जीएसटी से मुक्त नहीं हैं. उनमें से कुछ हैं:

  • तीर्थयात्रा के लिए यात्रियों के परिवहन की सेवाएं

  • इवेंट, फंक्शन, सेलीब्रेशन

  • ऐसे शो जिनमें टिकट लगे या कोई एडमिशन शुल्क

कुछ गतिविधियाँ जिन्हें छूट दी गई है उनमें शामिल हैं:

  • धार्मिक समारोह का आयोजन

  • आम जनता के लिए बने धार्मिक स्थान के परिसर को किराए पर देना

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हालांकि, यहां ये ध्यान देना जरूरी है कि 'किराया' से मतलब उन कमरों का किराया नहीं है, जहां का एक दिन का किराया 1000 रुपये ये उससे ज्यादा है. इसके अलावा वहां भी लागू नहीं होगा जैसे 'बिजनेस या किसी दूसरी कॉमर्शियल गतिविधियों के लिए दुकानों को किराए पर देना. साथ ही, 10,000 या उससे ज्यादा पर 'हॉल किराए पर लेना, कमरे के लिए जगह लेने' पर भी लागू नहीं होना चाहिए.

वेबसाइट के मुताबिक छूट सभी धर्मों की धार्मिक गतिविधियों के लिए है.

आसान भाषा में समझते हैं

धार्मिक स्थलों को अक्सर ट्रस्ट चलाते हैं. इन ट्रस्टों के पास अन्य संपत्तियां भी होती हैं. किसी फंक्शन के लिए या किसी अन्य इस्तेमाल के लिए प्रॉडक्ट्स की बिक्री के लिए, अगर प्रॉपर्टी को किराए पर दिया जाता है, तो इससे हुई आय पर टैक्स देना होगा. इसलिए, छूट और टैक्स सिर्फ मंदिरों पर ही नहीं, सभी धर्मों के लिए हैं.

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छूट प्राप्त करने के लिए, ट्रस्ट को इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 12AA के तहत रजिस्टर्ड होना चाहिए और "ट्रस्ट की ओर से दी जाने वाली सेवाएं से मतलब धर्मार्थ गतिविधियों के तहत आ रही हैं."

छूट पाने के लिए, ट्रस्ट को इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 12AA के तहत रजिस्टर्ड होना चाहिए और "ट्रस्ट की ओर से दी जाने वाली सेवाओं से मतलब वो धर्मार्थ गतिविधियों के तहत आती हैं."

वित्त मंत्रालय ने 2017 में ही दिया था स्पष्टीकरण

वित्त मंत्रालय ने इसी मामले पर 2017 में स्पष्टीकरण जारी किया था.

प्रेस रिलीज में कहा गया था ''सोशल मीडिया पर कुछ मैसेज शेयर किए जा रहे हैं कि मंदिर ट्रस्टों को जीएसटी का भुगतान करना होगा, जबकि चर्चों और मस्जिदों की छूट दी गई है. ये पूरी तरह से झूठ है, क्योंकि धर्म के आधार पर किसी भी प्रावधान पर जीएसटी कानून में कोई भेद नहीं किया गया है.''

वित्त मंत्रालय ने इसे अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी पोस्ट किया था (नोट: अगला स्क्रीनशॉट देखने के लिए दाएं स्वाइप करें)

  • मंत्रालय के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल पर पोस्ट

    (सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)

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मतलब साफ है कि एक पुराना और झूठा मैसेज ये गलत दावा करने के लिए फिर से शेयर किया जा रहा है कि सिर्फ मंदिरों को ही टैक्स देना है.

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