जर्मनी में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे थे. इसी दौरान पीएम मोदी ने कहा कि भारत के सभी गांव पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं. अपने भाषण में मोदी ने कहा '' आज भारत का हर गांव ओपन डेफिकेशन फ्री (खुले में शौच से मुक्त) है.
(वीडियो में 27 मिनट 19 सेकंड पर पीएम मोदी को ये दावा करते हुए सुना जा सकता है )
हालांकि, हालिया सरकारी आंकड़ों को सच मानें तो भारत के सभी गांव खुले में शौच से मुक्त नहीं हुए हैं. ये सच है कि शौचालयों की संख्या बढ़ी है, लेकिन 100% का दावा सच नहीं है.
क्या है खुले में शौच मुक्त होने की सरकारी परिभाषा?
केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने साल 2015 के दस्तावेज में स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले में शौच मुक्त (ODF) की परिभाषा दी है.
भारत सरकार की वर्तमान परिभाषा के मुताबिक गांव/इलाके में जब कोई भी खुले में शौच करता नहीं दिखता और हर घर में शौचालय की व्यवस्था होती है तो उस गांव को ODF घोषित कर दिया जाता है.
हर साल जारी होने वाले नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे - 5 (NFHS-5) के मुताबिक, नेशनल एनुअल रूरल सैनिटेशन सर्वे (NARSS) (2019-2020), और नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) 2018 रिपोर्ट के मुताबिक 100% शौच मुक्त का दावा सच नहीं है.
क्या कहते हैं सरकारी आंकडे़?
सबसे पहले हमने NFHS-5 रिपोर्ट देखी, जिसमें बताया गया है कि कितने प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध है. 2019-21 रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी इलाकों में 6.1% लोग खुले में शौच करते हैं. वहीं ग्रामीण इलाकों में खुले में शौच करने वालों की संख्या 26% है.
NFHS डेटा के मुताबिक, देश भर में 19% घरों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है.
पानी और स्वच्छता (Wash) से जुड़े विषयों के जानकार एक्सपर्ट रमन वीआर ने क्विंट को बताया कि NFHS-5 हाल ही में पब्लिश हुई स्टडी है जो भारत में स्वच्छता की कवरेज के बारे में बात करती है. यानी बाकी रिपोर्ट्स की तुलना में ये रिपोर्ट सबसे नई है. इसलिए जाहिर है कि NFHS में दिए गए आंकड़े, भारत में शौचालय की असली स्थिति से काफी नजदीक होंगे.
5.6 प्रतिशत ग्रामीण परिवार करते हैं खुले में शौच : NARSS रिपोर्ट
इसके बाद, हमने 2019-20 की NARSS रिपोर्ट देखी.
NARRS रिपोर्ट में ऐसे घरों के लिए डेमोग्राफिक इंडिकेटर्स शामिल हैं, जो शेयर किए जाने वाले शौचालय, सार्वजनिक या निजी शौचालय वाले घरों से संबंधित हैं. इन्हें आय और जाति के आधार पर भी अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है.
इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि कितने शौचालय असल में उपयोग हो रहे हैं या यूं कहें कि फंक्शनल हैं. उनमें वॉटर सप्लाई है भी या नहीं.
NARSS रिपोर्ट ने 91,934 ग्रामीण परिवारों का सर्वे किया और पाया कि उनमें से 94.4 प्रतिशत के पास शौचालय की सुविधा है.
खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त घोषित किए गए गांवों में, सर्वे में शामिल 98% परिवारों ने कहा कि उनके पास शौचालय की सुविधा है. जबकि इसकी तुलना में गैर-ओडीएफ वाले गांवों में ये आंकड़ा 77% था.
कुल मिलाकर, ये पाया गया कि 5.6 प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है. मतलब ये कि वो ''खुले में शौच करते हैं''.
इसमें राज्यवार रिपोर्ट भी विस्तार से बताई गई है. इसके मुताबिक, त्रिपुरा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गोवा, तमिलनाडु और राजस्थान में 99 प्रतिशत से ज्यादा घरों में शौचालय की व्यवस्था है.
हालांकि, बिहार में सिर्फ 73.6% घरों में, ओडिशा में 89.6% घरों में और पुडुचेरी के 89.8% परिवारों ने बताया कि उनके पास शौचालय की सुविधा है.
3- NSO डेटा क्या कहता है?
आखिर में, हमने मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन (MoSPI) के तहत आने वाले नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) की ओर से 2018 के लिए जारी किए गए डेटा को देखा. NSO की तरफ से स्वच्छता को लेकर जारी की गई ये आखिरी उपलब्ध रिपोर्ट है.
NSO के 2018 के डॉक्युमेंट के मुताबिक, ग्रामीण भारत में करीब 50.3 प्रतिशत घरों में ''बाथरूम की विशेष व्यवस्था'' थी. साथ ही, सामान्य रूप से बाथरूम की सुविधा वाले घरों के लिए ये आंकड़ा 56.6 प्रतिशत था.
सर्वे में 28.7 % ग्रामीण परिवारों ने बताया कि उनके पास शौचालय नहीं है.
Business Standard की रिपोर्ट के मुताबिक, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से 2019 में शौचालयों की सुविधा वाले लोगों की कम संख्या को लेकर उस समय चिंता व्यक्त की गई थी, जब सर्वे रिपोर्ट को मंजूरी देने वाली टीम इकट्ठा हुई थी.
NARSS की 2017-18 रिपोर्ट का हवाला देते हुए, सरकार ने कहा था कि ग्रामीण इलाकों में शौचालय इस्तेमाल करने का प्रतिशत करीब 93.4% है. जबकि सरकार के दावों से इतर वर्किंग कमेटी के एक्सपर्ट्स ने पाया कि NSO की रिपोर्ट ज्यादा सटीक है. नतीजतन एक्सपर्ट्स ने मंत्रालय से उनके डेटा की फिर से जांच करने के लिए कहा था.
लिहाजा रिपोर्ट को पॉसिबल ''रेस्पॉन्डेंट्स बायस'' सेक्शन के साथ अप्रूव किया गया. पॉसिबल ''रेस्पॉन्डेंट्स बायस'' से मतलब इस बात की संभावना से है कि उत्तर देने वाला खुद से जुड़ी रिपोर्ट या तो झूठी देता है या सटीक नहीं देता. रिपोर्ट में बताया गया कि ऐसा इसलिए हुआ होगा कि सरकारी लाभ से जुड़े सवाल पहले पूछ गए और शौचालय से जुड़े सवाल बाद में.
गौर करने वाली बात ये है कि 2019 में ही पीएम मोदी ने 2 अक्टूबर को गुजरात के साबरमती आश्रम से भारत को 'खुले में शौच मुक्त' घोषित किया था. जिसका ये रिपोर्ट खंडन करती है.
हर रिपोर्ट में शौच और स्वच्छता से जुड़े आंकड़े अलग क्यों?
देखा जा सकता है कि ऊपर बताई गई तीनों रिपोर्ट्स में बताया गया कोई भी आंकड़ा दूसरी रिपोर्ट के आंकड़ों से मेल नहीं खाता है.
क्विंट से बात करते हुए, नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन के पूर्व सदस्य और कार्यवाहक चेयरमैन, पीसी मोहनन ने कहा कि ऐसे लोगों की संख्या में काफी बढ़त हुई है, जिनके पास शौचालय की सुविधा है. लेकिन सरकार का ये दावा कि ये संख्या 100 प्रतिशत हो गई है, ''स्वीकार नहीं किया जा सकता''.
ये सैम्पल सर्वे हैं. इनमें हमेशा ही त्रुटि की गुंजाइश रहेगी और आप इनसे एक जैसी जानकारी की अपेक्षा नहीं कर सकते. सर्वे के फोकस का भी फर्क पड़ता है.पीसी मोहनन, नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन के पूर्व सदस्य और कार्यवाहक चेयरमैन
उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, NFHS -5 ने लोगों से पूछा कि क्या उनके पास शौचालय का ऐक्सेस है, जबकि NARSS ने उत्तरदाताओं से इसकी उपयोगिता, सुरक्षा और वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम के बारे में भी पूछा.
उन्होंने कहा, ''मेरे हिसाब से, शौचालयों की सुविधा से जुड़े सर्वे आय और व्यय जैसे दूसरे सर्वे की तुलना में ज्यादा सटीक हैं और बेहतर तरीके से इकट्ठा किए जाते हैं. ये कुछ ऐसा है जिसके बारे में उत्तरदाता जानता है. घर का कोई भी सदस्य जवाब दे सकता है. ऐसा जरूरी नहीं है कि सवाल का जवाब देने के लिए घर का मालिक ही होना चाहिए.''
मोहनन ने आगे कहा कि इस मुद्दे की जड़ ये थी कि सर्व में लोगों से ये पूछा गया कि क्या उनके पास शौचालय तक पहुंच है? जबकि शौचलय तक पहुंच होना और शौचालय का उपयोग दो अलग-अलग चीजें हैं.
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि NFHS ने सर्वे के माध्यम से डेटा इकट्ठा किया, जिसमें कई विवरण शामिल थे जैसे कि शौचालयों तक पहुंच, क्या उन्हें अन्य घरों के साथ शेयर किया गया, और ऐसे शौचालयों में वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम.
इस दौरान, NARSS रिपोर्ट ने सर्वे में शामिल हर घर के लिए शौचालयों की गुणवत्ता, पहुंच और उपयोगिता के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा की.
ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि जो डेटा पेश किया गया वो ग्रामीण परिवारों से संबंधित है. और NARSS ने सार्वजनिक जगहों, आंगनवाड़ियों और स्कूलों के लिए अलग-अलग डेटा दिया है.
क्या है जमीनी हकीकत?
2020 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव से पहले, क्विंट ने बिहार के मधुबनी के राठी नाम के एक गांव में रिपोर्ट की थी और पाया था कि गांव की ज्यादातर महिलाएं खुले में शौच कर रही थीं.
India Today में 2021 में पब्लिश एक दूसरी रिपोर्ट में आगरा में 'खुले में शौच मुक्त होने की स्थिति' की सच्चाई के बारे में बताया गया था कि कैसे ODF टैग के बावजूद सैकड़ों लोग खुले में शौच करते हैं.
इस बारे में मोहनन ने कहा कि उनके अनुभव के मुताबिक, उन्होंने देखा है कि देश के उत्तरी हिस्से ज्यादा सघन हैं यानी वहां घर पास-पास बने हुए हैं, जिससे घर के अंदर शौचालय बनाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. इसलिए, वहां ऐसे शौचालय ज्यादा हैं, जिनका इस्तेमाल कई लोग करते हैं.
"सभी शौचालय घर के अंदर नहीं हैं. मुश्किल से 55 प्रतिशत घरों में आवास के अंदर शौचालय हैं. सरकार ने जो शौचालय बनाए हैं उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल कई लोग करते हैं."पीसी मोहनन, नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन के पूर्व सदस्य और कार्यवाहक चेयरमैन
पीसी मोहनन ने आगे कहा कि लोग अक्सर इन शौचालयों का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि उन्हें इस बात को लेकर झिझक होती है कि दूसरों को पता चलेगा कि वो "कितनी बार और कब" शौच के लिए जा हैं.
हालांकि, ये स्पष्ट है कि सरकार ने देश (शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों) में लोगों को शौचालय तक पहुंच प्रदान करने की दिशा में काम किया है, लेकिन ये कहना कि भारत के सभी गांव ''खुले में शौच से 100% मुक्त हो चुके हैं'' गलत है.
(नोट: हमने इस दावो को लेकर पीएमओ से संपर्क किया है. जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा)
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