सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल है, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) मंच पर कागज फाड़ते दिख रहे हैं.
दावा : वीडियो को सोशल मीडिया पर हाल में राहुल गांधी को गुजरात कोर्ट द्वारा सुनाई गई 2 साल की सजा के मामले से जोड़कर शेयर किया जा रहा है. इस फैसले के बाद 24 मार्च को राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई थी.
वीडियो के साथ शेयर हो रहे मैसेज में लिखा है कि UPA सरकार ऐसा अध्यादेश लेकर आई थी, जो सुप्रीम कोर्ट के 2013 के उस फैसले को पलटता था जिसके तहत सांसद को 2 साल की सजा सुनाए जाने पर उनकी सदस्यता रद्द हो जाएगी. दावा किया जा रहा है कि राहुल गांधी ने वही अध्यादेश फाड़ा, जिसके पास न होने के चलते उनकी सांसदी रद्द हुई है.
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दावा ट्विटर के अलावा फेसबुक पर भी किया जा रहा है अर्काइव यहां देख सकते हैं.
क्या ये सच है ? : नहीं, ये सच है कि राहुल गांधी ने 2013 में UPA सरकार के लाए गए उस अध्यादेश का विरोध किया था जो दोषी करार दिए गए सांसदों की तत्काल सदस्यता रद्द होने से बचाने के लिए लाया गया था. लेकिन, राहुल ने इस दौरान अध्यादेश फाड़ा नहीं था. वायरल फोटो 2012 की है जब राहुल ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए चुनावी भाषण के दौरान कथित तौर पर अखिलेश और मायावती के वादों की लिस्ट फाड़ी थी.
हमने ये सच कैसे पता लगाया? : वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें NDTV पर 16 फरवरी 2012 को अपलोड किया गया एक वीडियो मिला. इसमें राहुल कागज फाड़ते देखे जा सकते हैं.
वीडियो रिपोर्ट के टाइटल और डिस्क्रिप्शन से पता चला कि इसमें राहुल गांधी एक चुनावी भाषण के दौरान अखिलेश यादव और मायावती पर वादे पूरे ना करने का आरोप लगाते हैं. इसके बाद वो एक लिस्ट मंच से पढ़कर सुनाते हैं जो राहुल के मुताबिक अखिलेश यादव और मायावती के जनता से किए गए वादे थे. इसके बाद राहुल उस लिस्ट को मंच पर फाड़ देते हैं.
2012 के वीडियो को राहुल गांधी की वायरल हो रही फोटो से मिलाने पर साफ हो रहा है कि ये उसी वक्त ली गई है. 2012 के वीडियो में राहुल गांधी के पीछे उनकी सुरक्षा में वही अफसर खड़ा दिख रहा है, जो वायरल फोटो में है.
मतलब साफ है, फोटो में राहुल गांधी जो कागज फाड़ते दिख रहे हैं, वो UPA सरकार का अध्यादेश नहीं था.
क्या है UPA सरकार के अध्यादेश का मामला : साल 2013 में केंद्र की तत्कालीन UPA सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी, जिसकी राहुल ने सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी. अब क्या था ये अध्यादेश?
2013 तक जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) के तहत अगर किसी सांसद को निचली अदालत में दोषी करार दिया जाता है, तो वह फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में जा सकता है और जब तक अदालत का फैसला ना आ जाए सांसद की सदस्यता रद्द नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इस कानून को रद्द कर दिया. *
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए UPA सरकार एक अध्यादेश लेकर आई. इस अध्यादेश में व्यवस्था की गई थी कि सजा सुनाए जाने के 3 महीने बाद तक सांसद को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता. और 3 महीने के भीतर अगर सांसद ऊपरी अदालत में जाता है, तो तब तक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता जब तक ऊपरी अदालत का फैसला ना आ जाए.
राहुल गांधी ने किया था अध्यादेश का विरोध : 2013 की मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है किराहुल गांधी ने UPA सरकार के लाए गए अध्यादेश का विरोध किया था.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी ने अध्यादेश को 'बेतुका' करार देते हुए कहा कि इसे फ़ाडकर फेंक देना चाहिए.'. साथ ही राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये भी कहा कि 'कांग्रेस समेत सारी पार्टियों को राजनीति के नाम पर ऐसा करना बंद करना चाहिए.'
राहुल की इस तल्ख टिप्पणी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आश्वासन दिया था कि वह कैबिनेट और राहुल गांधी से इसपर चर्चा करेंगे. इस विवाद के बाद UPA सरकार ने ये अध्यादेश वापस ले लिया था.
क्या राहुल ने अध्यादेश फाड़ा था ? : नहीं, हमने राहुल गांधी की वो प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी, जिसमें उन्होंने UPA सरकार के लाए गए अध्यादेश की आलोचना की थी. राहुल ने ये जरूर कहा कि इस अध्यादेश को फाड़ देना चाहिए. लेकिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहीं भी कोई कागज नहीं फाड़ा. अध्यादेश के विवाद से जोड़कर जो फोटो शेयर हो रही है वो वैसे भी इस विवाद से एक साल पहले की साल 2012 की है, ये साबित हो चुका है.
पड़ताल का निष्कर्ष : सोशल मीडिया पर किया जा रहा ये दावा गलत है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी वायरल फोटो में 2013 का वही अध्यादेश फाड़ते दिख रहे हैं, जो UPA सरकार सांसदों को सजा होने पर तत्काल सांसदी रद्द होने से बचाने के लिए लाई थी.
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