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छात्र, प्रदर्शनकारी और पुलिस, CAA पर फेक न्यूज से कोई न बचा

अनवेरिफाइड पोस्ट प्रदर्शनकारी छात्रों और दिल्ली पुलिस को समान रूप से निशाना बना रहे हैं.

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

एंकर: कौशिकी कश्यप

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए फेक वीडियो, पुरानी फोटो और तोड़-मरोड़कर पेश किए जाने वाले कंटेंट की इंटरनेट पर बाढ़ आ गई है. ये अनवेरिफाइड पोस्ट प्रदर्शनकारी छात्रों और दिल्ली पुलिस को समान रूप से निशाना बना रहे हैं.

क्विंट की टीम 'वेबकूफ' ने 1 सप्ताह के भीतर कम से कम 9 फेक न्यूज की पड़ताल की है. उनमें से कुछ पर एक नजर डालते हैं ताकि आप इस चंगुल में न फंसे.

शेयर किए गए कई क्लिप्स में से एक वायरल क्लिप जिसे बीजेपी से जुड़े कई लोगों ने शेयर किया. यहां तक कि पार्टी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने भी इसे शेयर किया था. इस वीडियो में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को निशाने पर लेते हुए बताया गया कि वो 'एंटी-हिंदू' नारे लगा रहे थे.

अपने ट्वीट में मालवीय ने कहा कि "एएमयू के छात्र नारे लगा रहे हैं" हिंदुओं की कब्र खुदेगी, एएमयू की धरती पर". इस ट्वीट को 11,000 से ज्यादा रिएक्शन मिले.. और अभी तक इसे हटाया नहीं गया है.

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि असलियत क्या है?

ये छात्र नारे लगा रहे थे "हिंदुत्व की कब्र खुदेगी, एएमयू की धरती पर" और ट्वीट करने से पहले इसे वेरिफाई करना मुश्किल भी नहीं था. हमें इस वीडियो का क्लीयर वर्जन मिला जिसमें सुना जा सकता है कि छात्र मिस्टर मालवीय के दावे के उलट क्या कह रहे थे.

इसके अलावा एक और फोटो जो खूब शेयर की गई जिसमें एक विशाल मुस्लिम सभा दिखाई गई थी. लोगों ने इसे इस दावे के साथ शेयर किया कि ये मुस्लिम सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ मुंबई के मोहम्मद अली रोड में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.

लेकिन ये फोटो असल में बांग्लादेश के चिट्टगांव से है और ये लोग 'जश्न ए जुलूस' नाम का एक त्योहार मना रहे हैं.

इस तरह के पोस्ट, जिन्हें कहीं से भी निकाला जा रहा है और कुछ भी बताकर शेयर जा रहा है, ये न सिर्फ झूठ फैला रहे हैं बल्कि ये हिंसा को भी उकसा सकते हैं

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हमने कई और पुरानी तस्वीरें भी देखीं, जिनमें विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस पर बर्बरता करने का आरोप लगाया जा रहा है. देश भर के अलग अलग कैंपस से पुलिस की बर्बरता की आ रही खबर और जानकारी जांच का विषय तो है- लेकिन पुलिस को निशाना बनाने के लिए पुरानी पोस्टों का इस्तेमाल करना भी उतना ही गलत है.

उदाहरण के लिए, खूंटी पुलिस की एक मॉक ड्रिल की एक क्लिप को गुवाहाटी में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग बताकर शेयर किया गया था. एक और तस्वीर जिसमें एक पुलिसकर्मी एक प्रदर्शनकारी को बूट थ्रैसिंग- लातों से मारता दिख रहा है, इसे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर शेयर किया गया था, लेकिन ये क्लिप करीब एक दशक पुरानी निकली.

ऐसे समय में जब नागरिकों में डर और असंतोष है, फेक पोस्ट के इस ऑनलाइन दलदल में कोई भी आसानी से फंस सकता है तो इंटरनेट पर आने वाले किसी भी अनवेरिफाइड पोस्ट, फोटो या वीडियो को शेयर न करें.


ठहरे, जांचें, सोचें, और फिर शेयर करें.और अगर आप ऐसे किसी पोस्ट की जांच करने में कोई परेशानी महसूस कर रहे हैं , तो आप इसे हमें WebQoof@thequint.com पर भेज सकते हैं. हम आपकी मदद करेंगे.

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