दिल्ली सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली का आयोजन किया. इस दौरान सुरक्षा बल और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच से ही झड़प की खबरें भी आ चुकी हैं. जाहिर है इन खबरों के साथ आपके वॉट्सएप नंबर औऱ फेसबुक फीड पर भी ऐसे कई वीडियो और फोटोज का अंबार लग चुका होगा, जिन्हें दिल्ली के घटना क्रम से जोड़कर शेयर किया जा रहा होगा. यही मौका है जब आपको अपनी समझदारी का परिचय देना है. यहीं आपको खबर और फर्जी खबर में अंतर पहचानना है.
हम बता रहे हैं आपको वे तरीके, जिनके जरिए आप सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावों का सच पता लगा सकते हैं. क्योंकि न तो हर सोशल मीडिया पोस्ट सच है न ही इंटरनेट पर उपलब्ध सारा कंटेंट विश्वसनीय. किसानों की ट्रैक्टर रेली से जुड़ी कोई भी फोटो, वीडियो सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड करने से पहले उसे नीचे दिए गए फैक्ट चेक के तरीकों से वेरिफाई करें. अगर आपने कुछ भी फॉरवर्ड करने से पहले इन सावधानियों पर अमल कर लिया, तो गर्व से कह सकेंगे कि फेक न्यूज नामक इस बीमारी को फैलाने में आपका कोई योगदान नहीं.
1. वॉट्सऐप इस्तेमाल कर रहे हैं? तो अपना ब्राउजर भी इस्तेमाल करें.
अगर आपकी फैमिली और स्कूल के वॉट्सऐप ग्रुप में कोई मैसेज आता है, तो क्या आप जानते हैं कि ये कितना सच या झूठ है?
आप वॉट्सऐप इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप वाई-फाई या मोबाइल इंटरनेट भी इस्तेमाल कर रहे होंगे.
इसका मतलब है कि आप गूगल सर्च करके चेक कर सकते हैं कि बात सच है या झूठ. अगर बात सच है तो देश-विदेश की दस-बीस भरोसेमंद साइटों में से किसी पर जरूर होगी.
आप लेखक का नाम या जानकारी देने वाली साइट को भी सर्च कर सकते हैं, ताकि पता चल सके कि उसने और क्या-क्या किया है. इससे आपको पता चल जाएगा वो इसी तरह की दूसरी अफवाहें भी फैला रहे होंगे.
फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च कर ये पता लगाया जा सकता है कि वह वाकई हालिया घटना की है या पुरानी.
2. सोर्स और यूआरएल पता करें
जब आप कुछ भी ऑनलाइन पढ़ते हैं तो देखें कि इसे किसने पब्लिश किया है.
क्या वो कुछ समय से स्थापित न्यूज पब्लिशर हैं और क्या उनका नाम चर्चित है जिस पर भरोसा किया जा सकता है.
लेकिन अगर आपने पब्लिशर के बारे में कभी नहीं सुना है, तो चौकन्ने हो जाएं. सिर्फ पब्लिशर पर भी भरोसा ना करें.
कोई भी पेशेवर संस्था ये जरूर बताती है कि उसकी जानकारी का स्रोत क्या है. बिना स्रोत बताए जानकारी देने वालों से सावधान रहें. वेबसाइट का यूआरएल भी देखें.
आपको लग सकता है कि आप बीबीसी, द क्विंट, द गार्डियन या द टाइम्स ऑफ इंडिया की साइट देख रहे हैं, लेकिन 'डॉट कॉम,' के अंत में 'डॉट को' या 'डॉट इन' का मामूली-सा बदलाव साइट के पेज को पूरी तरह बदल देता है.
मिसाल के तौर पर www.bbchindi.in बीबीसी हिंदी की ऑफिशियल वेबसाइट नहीं है.
3. तारीख चेक करें!
कोई चीज एक बार वर्ल्ड वाइड वेब में आ जाए, तो फिर ये हमेशा वहां रहती है. ये बात समाचारों के लिए भी लागू होती है.
शुक्र मनाइए कि सभी विश्वसनीय समाचारों में सोर्स के साथ उनके पब्लिश होने की तारीख भी दी जाती है. कोई भी चीज शेयर करने से पहले इसे जरूर जांचें.
पुराने लेख, खासकर आतंकवाद से लड़ाई या आर्थिक विकास जैसी लगातार बदलने वाली खबर की कुछ समय बाद कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती है.
4. पक्का कर लें कि ये मजाक तो नहीं
फेकिंग न्यूज और ओनियन जैसी वेबसाइटों पर छपने वाले लेख घोषित रूप से मजाक उड़ाने वाले होते हैं.
ये वास्तविक तथ्यों पर आधारित नहीं होते और संभव है कि ये किसी ताजा घटना पर केंद्रित हों. हमेशा ध्यान रखें कि आपके समाचार का जरिया कोई व्यंग्य वाली वेबसाइट तो नहीं.
5. साइट का 'अबाउट' पेज देखें
हर विश्वसनीय पब्लिशर का खुद के बारे में बताने वाला 'अबाउट' पेज होता है. इसे पढ़ें.
पब्लिशर की विश्वसनीयता के बारे में बताने के साथ ही यह ये बताएगा कि संस्था को कौन चलाता है. एक बार ये पता चल जाने पर उसका झुकाव समझ पाना आसान होगा.
6. समाचार पर आपकी प्रतिक्रिया
खबर झूठी है या नहीं ये जानने का एक तरीका है कि इसके असर को खुद पर परखें. देखें कि समाचार पर आपकी कैसी प्रतिक्रिया है.
क्या इसे पढ़ने से आप गुस्से, गर्व या दुख से भर उठे हैं. अगर ऐसा होता है तो इसके तथ्यों को जांचने के लिए गूगल में सर्च करें.
झूठी खबरें बनाई ही इस तरह जाती हैं कि उन्हें पढ़कर भावनाएं भड़कें, जिससे कि इसका फैलाव अधिक हो.
आखिर आप इसे तभी शेयर करेंगे, जब आपकी भावनाएं इससे गहराई से जुड़ेंगी.
7. हेडलाइन के परे भी देखें
अगर आप पाएं कि भाषा और वर्तनी की ढेरों गलतियां हैं और फोटो भी घटिया क्वॉलिटी की हैं तो तथ्यों की जरूर जांच करें.
झूठी खबरें फैलाने वाली साइटें ये काम गूगल के ऐड से पैसा बनाने के लिए करती हैं, इसलिए वो साइट की क्वॉलिटी सुधारने पर ध्यान नहीं देतीं.
सारी बातों के अंत में, डिजिटल वर्ल्ड में सारी खबरें उसके दर्शक-पाठक पर निर्भर करती हैं कि आप इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट या चैट में शेयर करते हैं या नहीं.
लेकिन अगर आप जान-बूझकर झूठ या नफरत शेयर करते हैं, तो इसके नतीजे भी भुगतने पड़ सकते हैं, आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. इसलिए शेयर करें मगर जिम्मेदारी से.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)