देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश में अब पहले चरण का मतदान शुरू होने जा रहा है. एक तरफ जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सत्ता में वापसी की कोशिश में हैं, तो वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी (SP), कांग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) जैसे विपक्षी दल भी सरकार में आना चाहते हैं.
चुनावी कैंपेन में नेताओं की तरफ से किए जा रहे वादे-दावे तो आप सुन ही रहे हैं. सत्ता में बैठे नेता आए दिन अपनी सरकार के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते रहते हैं. विपक्षी नेता भी कई दावे करते हैं. हालांकि, इन दावों की पूरी सच्चाई आम जनता को कम ही पता चल पाती है.
इसलिए हमने GDP, अपराध, बेरोजगारी, इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से जुड़े कुछ आंकड़े खंगाले, जिससे हम उत्तरप्रदेश में पिछले 5 साल सत्ता में रहने वाली योगी सरकार के कार्यकाल की एक सही तस्वीर आपको दिखा सकें. आप आंकड़ों के माध्यम से खुद फैसला ले सकें कि सरकार कितना बेहतर करने में सफल रही.
डेटा के आधार पर ही हमने पिछली समाजवादी पार्टी की सरकार और वर्तमान में सत्ता में मौजूद बीजेपी सरकार के कार्यकाल की तुलना भी की है.
अर्थव्यवस्था और प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income)
योगी आदित्यनाथ अक्सर ये दावा करते नजर आते हैं कि उनकी सरकार ने उत्तरप्रदेश की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में सफलता हासिल की है. हालांकि, आंकड़ों पर नजर डालें तो एक अलग ही तस्वीर दिखती है.
सरकारी डेटा के मुताबिक, उत्तरप्रदेश राज्य की जीडीपी (GSDP) साल 2017-18 में 1,05,774,712 लाख रुपए रही.
वित्तीय वर्ष 2019-20 में ये बढ़कर 1,16,681,747 हो गई. लेकिन, इसके अगले साल यानी कोरोना महामारी वाले साल में राज्य की जीडीपी गिरकर 1,09,262,381 लाख रुपए पर आ गई.
योगी सरकार में 2017-21 के दौरान जीडीपी हर साल औसतन 2 प्रतिशत बढ़ी, जबकि 2012-17 के दौरान यानी समाजवादी पार्टी के कार्य़काल में राज्य की जीडीपी 6% की दर से बढ़ी.
वित्तीय वर्ष 2021 में उत्तरप्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 41,023 रुपए रही. ये राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है. भारत में प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत 86,659 रुपए है.
यूपी की प्रति व्यक्ति आय वित्तीय वर्ष 2021 में उतनी ही रही जितनी वित्तीय वर्ष 2018 में थी, जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था. हालांकि, ये बहस हो सकती है कि इसके पीछ कोरोना महामारी का प्रभाव भी एक बड़ी वजह थी.
वित्तीय वर्ष 2018-20 के दौरान उत्तरप्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 3% की दर से बढ़ी, जो कि न सिर्फ राष्ट्रीय औसत में बढ़ोतरी 4% से काफी कम है. बल्कि 2012-2017 में सपा सरकार के दौरान 5% से भी कम है.
बेरोजगारी के मामले में कहां खड़ा है उत्तरप्रदेश?
सितंबर महीने की शुरुआत में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि 2016 में बेरोजगारी 17% थी और उनकी सरकार ने बेरोजगारी दर को कम करके 4 से 5 प्रतिशत पर ला दिया है.
हालांकि, ये सच है कि बेरोजगारी दर 2016 के अगस्त महीने में 17% पर पहुंची थी, लेकिन इसके बाद जनवरी 2017 में बेरोजगारी दर कम होकर 3.7% पर आ गई थी. यानी योगी सरकार के सत्ता में आने से पहले ही उत्तरप्रदेश में बेरोजगारी दर 3.7% पर आ गई थी. ये आंकड़े सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा हर महीने जारी होने वाली बेरोजगारी से जुड़ी रिपोर्ट से लिए गए हैं.
CMIE एक स्वतंत्र थिंक टैंक है, जो हर महीने देश भर में बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जारी करता है. वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद से बेरोजगारी के मामले में उत्तरप्रदेश का प्रदर्शन देश भर की तुलना में सबसे खराब रहा है.
NSO की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरप्रदेश के शहरी इलाकों में साल 2018 में सबसे ज्यादा बेरोजगारी रही.
CMIE के डेटा के मुताबिक, राज्य में अप्रैल 2020 में बेरोजगारी दर 21.5% रही. ये कोरोना महामारी के दौरान लगे पहले लॉकडाउन के समय की बात है.
हालांकि, उत्तरप्रदेश की ये बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत 23.5% से काफी कम है. देश में बेरोजगारी दर 1991 से अब तक सर्वाधिक 23.5% रही है. कोरोना महामारी के चलते तमिलनाडु, झारखंड और बिहार समेत कई राज्यो में बेरोजगारी बढ़ी है.
कोरोना महामारी के वक्त के बेरोजगारी के आंकड़े अगर न भी देखा जाए तब भी, भारत में 2017-18 के दौरान बेरोजगारी दर पिछले 45 सालों की तुलना में सबसे ज्यादा रही. 2017-18 में भारत मे 6.1 बेरोजगारी दर रही.
यूपी उन राज्यों में से एक था जिसका एनएसएसओ द्वारा सर्वेक्षण किया गया था और इसकी बेरोजगारी दर लगभग राष्ट्रीय औसत 6.2 प्रतिशत के बराबर ही थी.
उत्तरप्रदेश में अपराध की स्थिति क्या रही?
बेरोजगारी के बाद अब एक नजर डालते हैं अपराध के आंकड़ों पर- यह पता लगाने के लिए कि वर्तमान बीजेपी सरकार अपराध रोकने और कानून व्यवस्था लागू करने में कितनी सफल रही.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तरप्रदेश में अलग-अलग धाराओं में दर्ज होने वाले आपराधिक मामलों की संख्या पिछली सरकार की तुलना में बढ़ी है.
बीजेपी सरकार के दौरान रेप, मर्डर और अपहरण जैसे जघन्य आपराधिक मामलों की संख्या में कमी आई है.
13 सितंबर को लखनऊ में एक सभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार में महिलाओं की सुरक्षा में सुधार आया है.
हालांकि, सच तो ये है कि 2017 के बाद महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या काफी बढ़ी थी. 2020 के बाद इस तरह के अपराधों में कमी आई.
अपराधों में कमी कोरोना महामारी के वक्त देशव्यापी लॉकडाउन के वक्त हुई थी. NCRB के मुताबिक, 28 में से 21 राज्यों में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में कमी आई थी. डिटेल रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं.
हालांकि अपराधियों का दोष सिद्ध होने के मामले में उत्तरप्रदेश नगालैंड, मिजोरम, लद्दाख और लक्षद्वीप के बाद चौथे नंबर पर रहा.
यूपी में साल 2020 में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के खिलाफ होने वाले अपराधों से जुड़े 12,714 मामले दर्ज किए गए.
उत्तरप्रदेश में शिशु मृत्यू दर और जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) की स्थिति
शिशु मृत्यू दर (IMR) का आकलन 1 वर्ष तक उससे कम आयु वाले प्रति 1 हजार बच्चों में से होने वाली मृत्यू के आधार पर होता है. ये दर किसी भी इलाके की सामाजिक, आर्थिक या फिर पर्यावरण की स्थिति के मुताबिक बदलती रहती है.
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे 5 (NFHS- 5) के मुताबिक, यूपी में शिशु मृत्यू दर 50.4 रही. जो कि राष्ट्रीय औसत 35.2 से कहीं ज्यादा है. हालांकि, 2015-16 (NFHS -4) की तुलना में ये काफी कम है, जब प्रति हजार बच्चों पर 63.5 मौतें दर्ज की गई थीं और राष्ट्रीय औसत 40.7 था.
भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट (RBI) पर उपलब्ध सालाना डेटा के मुताबिक, 2016 में शिशु मृत्यू दर 43 थी, जो कि साल 2012 में 53 के मुकाबले कम रही है.
उत्तरप्रदेश में जीवन प्रत्याशा दर राष्ट्रीय औसत से कम है. राष्ट्रीय औसत 68.3 वर्ष (2011-15), 68.7 वर्ष (2012-16), 69 वर्ष (2013-17), और 69.4 वर्ष (2014-18) रहा है.
उत्तरप्रदेश में कितना आसान है व्यापार?
अब जानते हैं कि उत्तरप्रदेश में व्यापार करना कितना आसान है, Ease of Doing Business की रैंकिंग से ये आकलन होता है कि किस राज्य में बिजनेस के लिए ज्यादा अनुकूल और बेहतर माहौल है. उत्तरप्रदेश ने इस मामले में रैंकिंग सुधारी है. 2017 में जहां उत्तरप्रदेश की रैंक 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' में 12वीं थी, 2019 में यूपी दूसरे स्थान पर आ गया.
2020 और 2021 की रैंकिंग उपलब्ध नहीं हैं. सरकार ने रिपोर्ट तैयार की थी, इसने राज्यों की स्थिति में सुधार के लिए कुछ सुधारों की भी सिफारिश की गई थी.
'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' में भारत की रैंकिंग में भी पिछले सालों में काफी सुधार आया है. वर्ल्ड बैंक की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2018 के बाद 14 स्पॉट ऊपर आया है. जिसके बाद बारत की रैंक 190 देशों में 63वीं हो गई थी.
हालांकि, गौर करने वाली बात ये है कि वर्ल्ड बैंक ने 2021 से ईज ऑफ डूइंग रिपोर्ट जारी करना बंद कर दिया है. क्योंकि 2018 और 2020 की रिपोर्ट में डेटा के संकलन को लेकर कुछ दिक्कतें आई थीं, जिनमें सामने आया था कि कुछ सीनियर अधिकारियों ने देशों की रैंकिंग में सुधार लाने के लिए डेटा में हेरफेर की थी.
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