फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) और कई न्यूज ऑर्गनाइजेशन ने भी 21 फरवरी को घोषणा की कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) को बेस्ट फिल्म कैटेगरी में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड 2023 मिला है.
फिल्ममेकर अग्निहोत्री ने अवॉर्ड की फोटो भी ट्वीट की है.
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सच क्या है?: ये दावा भ्रामक है, क्योंकि फिल्म ने दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड नहीं जीता है. बल्कि, फिल्म को दादा साहेब इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड्स 2023 में ''बेस्ट फिल्म'' चुना गया है.
क्या है दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड?:
दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड सबसे पहले भारत सरकार की ओर से 1969 में दिया गया था. ये अवॉर्ड भारतीय सिनेमा में फिल्म निर्माता दादासाहेब फाल्के के योगदान को याद करने के लिए दिया जाता है.
फाल्के ने भारत की 1913 में आई पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद का निर्देशन किया था.
ये अवॉर्ड हर साल भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए किसी एक को दिया जाता है.
ये अवॉर्ड पहली बार देविका रानी को दिया गया था.
साल 2020 में आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया गया था.
ये अवॉर्ड सूचना एव प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डायरेक्टरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल की तरफ से दिए जाते हैं.
वेबसाइट के मुताबिक, इस अवॉर्ड में एक स्वर्ण कमल पदक, एक शॉल और 10 लाख रुपये का कैश प्राइज दिया जाता है.
बॉलीवुड एक्टर अमिताभ बच्चन की ओर से शेयर की गई तस्वीरों में भी ये देखा जा सकता है. अमिताभ ने ये अवॉर्ड साल 2019 में जीता था.
दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल क्या है?
दादा साहेब फाल्के की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए साल 2012 में दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (DPIFF) की स्थापना की गई थी. DPIFF की वेबसाइट के मुताबिक (आर्काइव), ये भारत का ''एकमात्र स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल'' है.
इसकी स्थापना अनिल मिश्रा (जो इसके मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं) ने की थी. वो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत सलाहकार पैनल के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
दादा साहेब फाल्के के पोते चंद्रशेखर पुसालकर जूरी के अध्यक्ष हैं.
वेबसाइट में पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित कई दूसरे बीजेपी नेताओं को ''वेल विशर्स'' के तौर पर दिखाया गया है. इसके होमपेज पर 2023 के अवॉर्ड्स को लेकर अमित शाह का एक लेटर भी है.
ये अवार्ड, सरकार की ओर से दिए जाने वाले दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से अलग है.
आप यहां आर्टिकल में 2022 के विजेताओं के बारे में पढ़ सकते हैं.
पहले भी हो चुका है नाम को लेकर भ्रम:
पहले भी नाम को लेकर भ्रम की स्थिति रही है. 2018 में भी की न्यूज ऑर्गनाइजेशन ने अवॉर्ड को लेकर गलत जानकारी दी थी. तब CBFC बोर्ड मेंबर वाणी त्रिपाठी टीकू ने ट्विटर के सहारे इस भ्रम को दूर करने की कोशिश की थी.
टीकू ने लिखा था, ''दादा साहेब फाल्के" अवॉर्ड सिर्फ एक ही है, जिसे @MIB_India की ओर से गठित किया गया है. अगर कोई और इस नाम का इस्तेमाल करता है तो वो इस प्रतिष्ठित अवॉर्ड और इसके नाम का घोर उल्लंघन होगा.''
Hindustan Times की 2018 की एक रिपोर्ट में भी इस भ्रम पर बात की गई थी.
रिपोर्ट में तत्कालीन जॉइंट सेक्रेटरी (फिल्म) अशोक कुमार परमार के हवाले से लिखा गया था, ''मंत्रालय क्या कर सकता है? और किस नियम के तहत हम कार्रवाई कर सकते हैं? आप उन्हें तब तक रोक नहीं सकते, जब तक वो आपके नाम को पूरी तरह से कॉपी न कर लें. वो तोड़-मरोड़ के नाम इस्तेमाल करते हैं और समारोह का आयोजन करते हैं.''
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