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World Press Freedom Day पर बुरी खबर: रैंकिंग में 8 पायदान गिर 150 पर पहुंचा भारत

प्रेस स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे सबसे ऊपर है, जबकि उत्तर कोरिया सबसे नीचे 180वें स्थान पर है.

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World Press Freedom Index India: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का तमगा लिए भारत के चौथे स्तंभ को बड़ा झटका लगा है. जिस प्रेस पर भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने का जिम्मा है, वो सत्ता की गुलामी के सागर में गोते लगा रहा है.

3 मई, मंगलवार को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) ने प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में देशों की रैंकिंग जारी की जिसमें भारत को 180 देशों की सूची में 150वां स्थान मिला है. पिछले साल भारत 142वें स्थान पर था.

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'भारत में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है'

RSF ने अपनी रिपोर्ट में भारत की स्थिति में गिरावट का उल्लेख करते हुए कहा है कि "पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया और मीडिया स्वामित्व का कुछ लोगों के हाथों में सिमट जाना, ये सभी चीजें दर्शाती है कि 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र' में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है."

"मूल रूप से उपनिवेश विरोधी आंदोलन का एक उत्पाद होने के चलते भारतीय प्रेस को काफी प्रगतिशील के रूप में देखा जाता था, लेकिन 2010 के दशक के बीच में चीजें मौलिक रूप से बदल गईं, जब नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने और उनकी पार्टी बीजेपी और मीडिया पर हावी हो रहे बड़े परिवारों के बीच एक शानदार तालमेल बैठ गया."
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स

आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा कि, "मुख्य उदाहरण निस्संदेह मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाला रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह है, जो अब मोदी के निजी मित्र हैं, जिनके पास 70 से अधिक मीडिया आउटलेट हैं और जिन्हें कम से कम 800 मिलियन भारतीय फॉलो करते हैं. मोदी ने आलोचक पत्रकारों के खिलाफ एक रुख अपनाया है, जिसमें सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकार, मोदी भक्तों के चौतरफा उत्पीड़न और हमले का शिकार होते हैं."

'भारत मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक'

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपनी 2022 की रिपोर्ट में लिखा है कि भारत में हर साल औसतन तीन से चार पत्रकार अपने काम के सिलसिले में मारे जाते हैं.

"भारत मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है. पत्रकारों को पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के हमले, भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों की प्रताड़ना और हिंसा का सामना करना पड़ता है. सरकार विरोधी हमलों और विरोध प्रदर्शनों को कवर करने की कोशिश करने वाले पत्रकारों को अक्सर गिरफ्तार किया जाता है और कभी-कभी मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जाता है."
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स

इसमें कहा गया है कि बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएं मीडिया स्व-नियामक निकायों (Self Regulatory Bodies), जैसे कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर (EMMC) को कमजोर करते हैं.

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गोदी मीडिया और विज्ञापन

गोदी मीडिया और विज्ञापनों पर RSF वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, शेयर बाजार में अक्सर भारी वैल्यूएशन के बावजूद, मीडिया आउटलेट स्थानीय और क्षेत्रीय सरकारों के विज्ञापन पर निर्भर हैं.

"व्यापार और संपादकीय नीति के बीच स्पष्ट सीमा न होने के चलते, मीडिया अधिकारी अक्सर व्यापार की जरूरतों के अनुसार ही चीजों को देखते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर, केंद्र सरकार ने देखा है कि वह इसका फायदा उठा सकती है. अकेले प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया में विज्ञापनों पर 130 अरब रुपये से अधिक खर्च किया जा रहा है."
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स रिपोर्ट में कहा गया है, "हाल के वर्षों में 'गोदी मीडिया' (मोदी के नाम और लैपडॉग पर एक नाटक) का उदय देखा गया है - टाइम्स नाउ और रिपब्लिक टीवी जैसे मीडिया आउटलेट लोकलुभावनवाद और बीजेपी समर्थक प्रचार को आपसे में मिलाते हैं."

सूचकांक के अनुसार, प्रेस स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे सबसे ऊपर है, जबकि उत्तर कोरिया सबसे नीचे 180वें स्थान पर है.

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