पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता की वापसी हुई, तब से इस देश के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. देश एक गहरे आर्थिक, सामाजिक, मानवीय और मानवाधिकार संकट में डूब गया है. जहां एक ओर देश में गरीबी और भुखमरी जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं वहीं दूसरी तरफ तालिबानी सत्ता के फरमानों से महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गई हैं. शिक्षा और रोजगार भी प्रभावित हो रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हालात इस कदर खराब हो रहे हैं कि घरवाले अपने भूखे बच्चों को नींद की दवा देकर सुला रहे हैं. लोग अपनी बेटियों और अंगों को बेच रहे हैं. आइए जानते हैं तालिबानी शासन आने के बाद अफगानिस्तान के हालात कैसे बदतर होते जा रहे हैं.
दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकटों का सामना कर रहा है अफगानिस्तान
15 अगस्त, 2021 के बाद से आफगानिस्तान और वहां के लोगों के जीवन में उलट-पलट होने लगा था, क्योंकि इस दिन वह फिर से तालिबान के नियंत्रण में आ गया था. एक ऐसा देश जो पहले ही कई संकटों से जूझ रहा था, ऐसे में तालिबानी सत्ता ने उसकी स्थिति को और ज्यादा बदतर बनाने का काम किया.
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (वर्ल्ड फूड प्रोग्राम WFP) के अनुसार अफगानिस्तान की आधी आबादी (लगभग 20 मिलियन लोग) खाद्य असुरक्षा का समाना कर रहे हैं, जबकि 95 फीसदी आबादी के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है. इस देश में पांच वर्ष से कम आयु के 10 लाख से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं.
यहां आर्थिक संकट भी गहरा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय सहायताएं अफगान सरकार के बजट का 80 फीसदी थीं. लेकिन जब से तालिबान शासन आया तब से इसमें कटौती हो गई. यहां से आर्थिक पतन तेजी से हुआ. लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करने लगे.
ह्यूमन राइट्स वॉच के एक्सपर्ट का कहना है कि "15 अगस्त, 2021 से अफगानों का जीवन उलट गया था. यह देश दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकटों में से एक भुखमरी से जूझ रहा है. लोग भूख से मर रहे हैं."
एक रिपोर्ट में एक्शन अगेंस्ट हंगर नामक एनजीओ की रीजनल डायरेक्ट की ओर से कहा गया है कि
"कई अफगानों ने अपनी नौकरी खो दी है और जो लोग अभी भी काम कर रहे हैं, उनके वेतन में भारी गिरावट देखी गई है. अंतर्राष्ट्रीय सहायता में कटौती होने से नकदी संकट बढ़ गया है. लोग अपनी सेविंग्स को बैंकों से निकाल भी नहीं सकते हैं. और जो अफगान देश छोड़कर चले गए हैं उन्हें अपने रिश्तेदारों को पैसे वापस भेजने में काफी मुश्किल हो रही है."
एक तरफ यह संकट चल ही रहा था कि दूसरी ओर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया, जिससे खाद्य वस्तुओं की कीमतें ने आसमान छू लिया. कुछ खाद्य वस्तुओं की कीमत दोगुनी तक हो गई.
महिलाएं और बच्चे हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था के एक्सपर्ट कहते हैं कि इस आर्थिक और मानवीय संकट की पहली शिकार महिलाएं एवं बच्चे हैं. बच्चों को स्कूल से निकालकर काम पर लगा दिया जाता है. उनको भी घर की कमाई बढ़ाने के लिए काम पर धकेल दिया जाता है. अक्सर बच्चों को सस्ता मजदूर बनने के लिए बेच दिया जाता है. लड़कियों को जबरन शादी के लिए भी बेच दिया जाता है. हालांकि बच्चों और लड़कियों को बेचने की प्रथा इस देश में पहले चली आ रही है लेकिन हालिया स्थिति में ये घटनाएं आम हो रही हैं.
“अफगान महिलाओं ने सब कुछ खो दिया है; उन्होंने बहुत सारे मौलिक मानवाधिकार खो दिए हैं."ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था के एक्सपर्ट
तालिबान ने अफगान महिलाओं पर प्रतिबंध कड़े कर दिए हैं. अफगान समाज में अब पुरुषों और महिलाओं के बीच एक स्पष्ट अलगाव दिख रहा है. अफगानिस्तान में स्वास्थ्य प्रणाली चरमरा गई है.
एक क्लिनिक में अब हर दिन 800 मरीज आते हैं
फ्रांस 24 डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में बताया गया है मेडिसिन सैन्स फ्रंटियर्स (MSF या डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स) के अफगानिस्तान सेक्शन के डिप्टी हेड अंबर अलय्यान 2011 से वहां काम कर रहे हैं. रिपोर्ट में अलय्यान की ओर से कहा गया है कि "जैसे-जैसे कुपोषण बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. इससे हेल्थ सिस्टम भी प्रभावित हो रहा है."
अलय्यान ने कहा कि "पश्चिमी अफगनिस्तान के हेरात क्षेत्र में MSF का क्लिनिक है. मैं यहां प्रतिदिन लगभग 800 पेशेंट्स को देखता हूं, जबकि कुछ महीने पहले यह आंकड़ा लगभग 100 मरीजों का था. MSF सेंटर में केवल लगभग 60 बिस्तर हैं. हम पहले की तुलना में बहुत दूर से लोगों को आते हुए देख सकते हैं. लोग हमारी सुविधाओं के लिए आ रहे हैं, क्योंकि अधिकांश स्थानीय अस्पतालों में कर्मचारी गंभीर रूप से कम हैं और वहां एंटीबायोटिक्स जैसी महत्वपूर्ण दवाओं की भी कमी है."
ह्यूमन राइट्स वॉच के एक्सपर्ट कहते हैं कि "तालिबान अफगानों की स्थितियों में सुधार के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मांगों को स्वीकार करने के बजाय अधिक से अधिक दमनकारी बन गए हैं."
भूखे बच्चे को सुलाने के लिए दवा दे रहे हैं
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अफगानिस्तान के कई घरों में खाना नहीं, बच्चे भूखे रहते हैं जिससे उन्हें नींद भी नहीं आती है. ऐसे में घर वाले बच्चों को सुलाने के लिए दवाएं दे रहे हैं. बीबीसी ने जिस अफगानी नागरिक से बात की उसने बताया कि अकेला मैं ही नहीं, कई सारे लोग यह कर रहे हैं. वहां मौजूद एक शख्स ने अपनी जेब से दवा निकालकर दिखाई. दवा का नाम था अल्प्राजोलम, जोकि आम तौर पर एंजायटी डिसऑर्डर के लिए दी जाती है. वहीं एक शख्स ने बताया कि वह सेराट्रलाइन दवा देता है, यह भी आमतौर पर डिप्रेशन या एंजायटी के लिए दी जाती है. ये लोग पास के ही मेडिकल स्टोर से यह दवा लाते हैं और बच्चों को देते हैं.
अफगानिस्तान में कई परिवार ऐसे हैं जो सुबह सूखी रोटी खाते हैं और रात को पानी में भिगोकर खाते हैं.
एक स्थानीय दवा की दुकान में पांच गोलियां 10 अफगानीज (लगभग 18 रुपये) में मिल जाती हैं. डॉक्टरों का कहना है कि जब छोटे बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है तब इस तरह की दवाएं उनके लीवर को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इसके अलावा नींद और अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं.
भुखमरी से परिवार को बचाने के लिए किडनी बेची
बीबीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि लोग अपने परिवारों को भुखमरी से बचाने के लिए काफी दुखद कदम उठाने के लिए भी मजबूर हो रहे हैं. एक शख्स ने तीन महीने पहले अपनी किडनी निकलवाने के लिए सर्जरी करवायी थी. उसने कहा कि उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था. उसने सुना था कि पास के एक अस्पताल में किडनी बेच सकते हैं. उसके बाद वह अस्पताल गया और बोला कि मैं किडनी बेचना चाहता हूं. कुछ दिनों बाद हॉस्पिटल से कॉल आया और उसे बुलाया गया, जहां उसकी किडनी निकाली गई.
किडनी के बदले में उस शख्स को लगभग 3100 डॉलर का भुगतान किया गया. जिसमें से अधिकांश पैसा उधारी चुकाने में चला गया, जो उसने अपने परिवार के भोजन खरीदने के लिए थे.
एक महिला ने सात महीने पहले ही अपनी किडनी बेची थी. उसे भी कर्ज चुकाना था. किडनी के बदले उसे 2700 डॉलर मिले थे, जो उसके कर्ज चुकाने के लिए काफी नहीं थे.
एक शख्स ने अपनी बेटी को लगभग 93 हजार रुपये (1,00,000 अफगानी ) में बेचा था. यहां के लोगों ने जिस इज्जत के साथ जीवन बिताया था, उसे भूख तोड़ रही है.
गरीबी की ओर बढ़ती आबादी
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के एक अनुमान के अनुसार अफगानिस्तान की लगभग 90 प्रतिशत आबादी वर्ष के अंत तक गरीबी रेखा से नीचे रहेगी. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अफगानिस्तान के सभी 34 प्रान्तों में लोगों को आपात सहायता की बेहद आवश्यकता है, क्योंकि देश की करीब 59 प्रतिशत आबादी, अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहायता और आपात राहत पर निर्भर है.
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