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Afghanistan: तालिबान शासन में जनता पर दोहरी मार,भूखे अफगानियों की बाढ़ ले रहा जान

Afghanistan Economic & Natural crisis: 43% आबादी एक दिन में एक से भी कम वक्त का भोजन कर जिंदा रहने को मजबूर

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भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को एक साल से अधिक का समय गुजर (Afghanistan Under Taliban Rule) गया है. तालिबानी सरकार के मानवाधिकार विरोधी फरमानों की मार कम थी कि वहां की आम जनता को आर्थिक संकट से लेकर जानलेवा बाढ़ जैसे प्राकृतिक संकटों का भी सामना करना पड़ रहा है. अफगानिस्तान के सरकारी न्यूज एजेंसी बख्तर ने सोमवार को बताया कि उत्तरी अफगानिस्तान के परवान प्रांत में अचानक आई बाढ़ में कम से कम 31 लोगों की मौत हो गई.

आइए आपको बताते हैं कि कैसे एक तरफ आर्थिक संकट के बीच अफगानिस्तान की जनता भूखे पेट सोने को मजबूर है वहीं दूसरी तरफ बाढ़ ने कई इलाकों में उनकी जिंदगी को तबाह कर दिया है.

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बाढ़: तालिबानी शासन में प्रकृति की दोहरी मार

जिस दिन अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी को ठीक एक साल पूरे हो रहे थे वहीं दूसरे तरफ उत्तरी अफगानिस्तान का परवान प्रांत बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा था. भारी बारिश के कारण अचानक से आई बाढ़ में कम से कम 31 लोगों की मौत हो गई और इस उत्तरी अफगानिस्तान में दर्जनों लोग लापता हो गए.

ऐसा नहीं है कि अफगानियों पर यह प्राकृतिक आपदा हाल में पहली बार आई हो. इससे पहले अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत नूरिस्तान में जुलाई महीने के आखिर में आई बाढ़ से मरने वालों की आधिकारिक संख्या कम से कम 113 थी जबकि 1 अगस्त तक दर्जनों लोग लापता थे.

अफगानिस्तान में तालिबानी शासन ने बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में राहत एवं बचाव कार्य को और दुष्कर बना दिया है. जब नूरिस्तान में बाढ़ आई थी तब अफगानिस्तान के आपदा प्रबंधन मंत्रालय के प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया था कि "दुर्भाग्य से यह क्षेत्र तालिबान के नियंत्रण में है और हम अपनी प्रांतीय टीमों को क्षेत्र में भेजने में असमर्थ थे"

मालूम हो कि अफगानिस्तान अक्सर मौसमी बाढ़ की चपेट में आता है जो घरों, कृषि भूमि और सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाता है. अगस्त 2020 में अफगानिस्तान के 13 प्रांतों में अचानक आई बाढ़ से 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. अल-जरीरा की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में औसतन हर साल 2 लाख लोग प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होते हैं.

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अर्थव्यवस्था खस्ताहाल, भूखे सो रहे अफगानी

ऐसा नहीं है कि एक साल पहले तक अफगानिस्तान की आर्थिक हालत बहुत अच्छी थी लेकिन तालिबानी शासन की वापसी ने अफगानिस्तान में अर्थव्यवस्था को खस्ताहाल कर दिया है. इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में महिलाओं के जॉब करने पर लगे बैन के कारण देश को 1 अरब डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ा है.

कमिटी के अनुसार अफगानिस्तान की 43% आबादी एक दिन में एक से भी कम वक्त का भोजन कर जिंदा रहने को मजबूर है. खाद्य पदार्थों की आसमान छूती कीमतों के कारण घरेलू कर्ज का स्तर बढ़ रहा है, और बाल विवाह के साथ-साथ अंगों की बिक्री की रिपोर्टें बढ़ रही हैं. अफगान लोग अब अपनी आय का 90% भोजन पर खर्च कर रहे हैं. इस साल की दूसरी छमाही तक 97% आबादी के गरीबी रेखा से काफी नीचे रहने की उम्मीद है.

अफगानिस्तान के लिए इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी के डायरेक्टर विकी एकेन का कहना है कि

"जैसे वैश्विक नेताओं ने तालिबान को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने का विकल्प चुना है, उनके नीतिगत दृष्टिकोणों ने यहां की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया, बैंकिंग क्षेत्र को नष्ट कर दिया और देश को एक मानवीय तबाही में डुबो दिया है. इसने प्रत्येक दिन खाने के लिए पर्याप्त भोजन के बिना 24 मिलियन से अधिक लोगों को छोड़ दिया है"

तालिबान के कब्जे के पहले दो दशकों से अफगानिस्तान विदेशी सहायता पर बहुत अधिक निर्भर रहा है. अब, इस सहायता का अधिकांश भाग निलंबित या रोक दिया गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने सोमवार, 15 अगस्त को अमेरिका में मौजूद 3.5 बिलियन डॉलर की धनराशि को अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक को जारी करने से इंकार कर दिया.

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