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महिलाओं को हक देने की बात कर रहा तालिबान, चरित्र बदला या ये भी है एक चाल?

क्या हिंसक इतिहास वाले Taliban पर विश्वास किया जा सकता है?

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"हम महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करते हैं... हमारी नीति है कि महिलाओं को शिक्षा और काम तक पहुंच दी जाए."
तालिबान

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) शासन वापस आ गया है. राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) देश छोड़ चुके हैं. संगठन ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है. राजधानी काबुल (Kabul) में अफरातफरी और कोहराम मचा हुआ है. तालिबान वादा कर रहा है कि आने वाले दिनों में 'समावेशी सरकार' बनेगी, जिसमें गैर-तालिबानी अफगान भी शामिल होंगे. लेकिन क्या हिंसक इतिहास वाले इस समूह पर विश्वास किया जा सकता है? क्या तालिबान बदल गया है या ये सिर्फ एक दिखावा है?

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तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने अल जजीरा से कहा है कि 'युद्ध अब खत्म हो चुका है और अफगानिस्तान में अब 'समावेशी इस्लामिक सरकार' बनाई जाएगी.

नईम का कहना है कि अफगानिस्तान में नई सरकार का 'प्रकार और स्वरुप' क्या होगा, ये जल्दी साफ किया जाएगा. नईम ने कहा, "तालिबान पूरी दुनिया से कटा हुआ नहीं रहना चाहता है और हम शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय रिश्ते चाहते हैं."

वहीं, तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने CNN से कहा, "जब हम समावेशी इस्लामिक सरकार कह रहे हैं तो इसका मतलब है कि बाकी अफगानों की भी सरकार में हिस्सेदारी होगी."

तालिबान पर विश्वास कर सकते हैं?

तालिबान को जांचने या मापने का पैमाना 90 के दशक का उनका शासन ही है. 1996 में काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने दुनिया की सबसे दमनकारी शासन चलाया था.

1996 से लेकर 2001 में अमेरिका के हमले तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया है. शरिया कानून को उसके सबसे सख्त प्रारूप में लागू किया गया था. लोगों की सार्वजानिक तौर पर हत्या, पत्थर मारना और कोड़े मारना आम था.

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तालिबान की पुलिस सड़कों पर होती थी और सही साइज की दाढ़ी, टखना दिखाने वाले कपड़े पहनने वाले मर्दों को मारा-पीटा करती थी. महिलाओं के लिए वो दौर सबसे खराब था. वो मर्दों की बिना लिखित इजाजत के बाहर नहीं जा सकती थीं और उन्हें बुर्का पहनना पड़ता था. लड़कियों की स्कूली शिक्षा बंद कर दी गई थी.

15 अगस्त को तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में मचा कोहराम 90 के दशक की इसी याद से प्रभावित था. तालिबान ने बयान जारी कर कहा था कि 'वो काबुल को ताकत के दम पर नहीं लेंगे', लेकिन फिर भी अफरातफरी मची रही क्योंकि लोगों के जहन में पुरानी यादें ताजा हो गई थीं.

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क्या उदार बन गया है तालिबान?

तालिबान ने हाल में कई ऐसे बयान जारी किए हैं, जिनमें वो अपनी छवि एक नए और उदार संगठन की पेश करता है. 2001 में अमेरिकी हमले के बाद तालिबान सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तालिबान अलग-थलग पड़ गया था. उसके कई नेताओं को बंदी बनाया गया था. तालिबान शायद ये सब दोहराना नहीं चाहता है.

कतर के दोहा में अफगान शांति प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए भी तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया. हालांकि, इस बार समूह ने हिंसा को प्रमुखता देने की बजाय विरोधियों को अपने पाले में लाने की नीति ज्यादा अपनाई है.

इसके अलावा तालिबान ने कई ऐसे वादे भी किए हैं, जो उसकी उदार दिखने की कोशिश को साफ जाहिर करते हैं.

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  • तालिबान ने अपने एक बयान में लोगों की जिंदगी, संपत्ति और गरिमा की सुरक्षा का आश्वासन दिया है. साथ ही अफगानिस्तान के लिए एक 'शांतिपूर्ण और सुरक्षित माहौल' बनाने पर जोर दिया है.

  • तालिबान ने एक बयान में अमेरिकी और NATO सेनाओं के साथ काम कर चुके या काबुल शासन के अधिकारियों की रक्षा करने का भी आश्वासन दिया है.

  • तालिबान ने कहा है कि वो किसी की भी निजी संपत्ति को हड़पने के पक्ष में नहीं है. समूह ने अफगानिस्तान के लोगों और उनकी संपत्तियों की सुरक्षा को अपनी प्रमुख जिम्मेदारी बताया है.

  • संगठन ने एक बयान में कहा कि हमारे नियंत्रण वाले इलाकों में लोग 'शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सामान्य जिंदगी जी सकेंगे.'

  • तालिबान ने राजनयिकों, दूतावासों, कॉन्सुलेट और चैरिटेबल वर्कर्स को आश्वासन दिया है कि उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी और उनके लिए एक सुरक्षित माहौल बनाया जाएगा.

  • तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने बीबीसी से बातचीत में कहा था, "हम महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करते हैं... हमारी नीति है कि महिलाओं को शिक्षा और काम तक पहुंच दी जाए."

तालिबान के बयानों पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हाल की कई घटनाएं उनके वादों से उलट तस्वीर पेश करती हैं. सरकार द्वारा संचालित फिल्म निर्माण कंपनी की महानिदेशक सायरा करीमी ने बताया है कि 'कुछ हफ्तों में ही तालिबान ने कई स्कूलों को नष्ट कर दिया है और अब 20 लाख लड़कियों को स्कूल से बाहर कर दिया गया है.'

भारतीय फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की मौत भी तालिबान के मंसूबों पर शक पैदा करती है. दानिश स्पिन बोल्डक क्षेत्र में मारे गए थे. पहले तालिबान ने हत्या में हाथ होने से इनकार किया था. फिर मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि दानिश की क्रूर हत्या हुई है. तालिबान ने भी अपना बयान पलटा और कहा कि सिद्दीकी बिना इजाजत इलाके में आए थे, इसलिए मारे गए.

अभी के लिए तालिबान के वादों पर उनका इतिहास हावी है. तालिबान आने वाले दिनों में कैसी सरकार बनाते हैं और किस तरह शासन चलाते हैं, इसी से तय होगा कि क्या ये नया और 'उदार' तालिबान है या सारे बयान और आश्वासन सिर्फ दिखावा थे.

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