यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के अमेरिका के फैसले का विरोध थमते नहीं दिख रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले को वापस लेने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव रखा गया, अमेरिका ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वीटो का इस्तेमाल किया है.
पिछले 6 सालों में पहली बार अमेरिका ने किसी प्रस्ताव को वीटो किया है. 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद में अमेरिका के बेहद करीबी सहयोगियों ब्रिटेन, फ्रांस और जापान ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.
‘दुनिया को तनाव में डाल रहे हैं ट्रंप'
मिस्र की ओर से तैयार किए गए इस एक पन्ने के प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद के पिछले 50 साल के कई प्रस्तावों के रुख को दोहराया गया था, जिनमें यरूशलम पर इजरायल की संप्रभुता के दावों को खारिज किया गया है.
प्रस्ताव में चेताया गया है कि यरूशलम के मामले में अमेरिका की दशकों पुरानी नीति से अलग हटकर ट्रंप द्वारा की गयी घोषणा दुनिया के सबसे जटिल तनाव को सुलझाने के प्रयासों को कमजोर करेगी.
वीटो के बचाव में अमेरिका का बयान
वीटो का बचाव करते हुए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने कहा, वास्तविकता ये है कि इस वीटो का प्रयोग अमेरिका की संप्रभुता की रक्षा और पश्चिम एशिया की शांति प्रक्रिया में अमेरिकी की भूमिका के बचाव के लिए किया गया है. ये हमारे लिए शर्मिंदगी की बात नहीं है, ये सुरक्षा परिषद के दूसरे सदस्यों के लिए शर्मिंदगी का कारण होना चाहिए.
मसौदा प्रस्ताव पर हेली ने कहा, आज सुरक्षा परिषद में जो हुआ वो अपमान है. इजरायल-फलस्तीन मामले में संयुक्त राष्ट्र फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है, इसका एक बड़ा उदाहरण ये प्रस्ताव है.
उन्होंने कहा, अमेरिका को कोई देश यह नहीं बता सकता है कि वो अपना दूतावास कहां स्थापित करे. अपना दूतावास कहां रखना है, सिर्फ इस फैसले पर अमेरिका को अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए आज विवश होना पड़ा है. रिकार्ड दिखाएगा कि हमने ये गर्व के साथ किया है. यरूशलम में अमेरिकी दूतावास की स्थापना और शहर को इजरायल की राजधानी घोषित करने के ट्रंप के फैसले को वापस लेने संबंधी प्रस्ताव का अमेरिका के करीबी सहयोगियों ब्रिटेन, फ्रांस और जापान ने भी समर्थन किया है.
फिलीस्तीन में इस फैसले का भारी पैमाने पर विरोध हो रहा है.
6 दिसंबर को ट्रंप ने लिया था फैसला
ट्रंप ने 6 दिसंबर को अपनी घोषणा में कहा था कि वो यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देंगे और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से हटाकर यरूशलम में करेंगे. उनकी घोषणा के बाद लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और इसकी कड़ी आलोचना की जा रही है. ट्रंप ने इस घोषणा को ऐसा वादा बताया था जो कई सालों से अटका हुआ था. उनके मुताबिक पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति हमेशा इजरायल से ये वादा करते रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1980 में एक प्रस्ताव के जरिए सदस्य देशों को जेरूसलम में एम्बेसी न खोलने की अपील की थी.
(इनपुट: भाषा)
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