अफगानिस्तान (Afghanistan) की राजधानी काबुल (Kabul) के आसानी से तालिबानी कब्जे में जाने से पूरी दुनिया हैरान रह गई है. अमेरिकी सेना की वापसी के बीच तालिबान (Taliban) क्षेत्रों पर कब्जा कर रहा था लेकिन पिछले एक हफ्ते में उसके सैन्य अभियान की रफ्तार अभूतपूर्व थी. काबुल पर कब्जे से कई दिनों पहले कतर (Qatar) के दोहा में एक समझौता हुआ था, जिससे काबुल में अभी मचा कोहराम शायद टल सकता था. लेकिन अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) के देश छोड़ने से समझौता अमल में नहीं आ पाया.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि दोहा में अफगान और तालिबान वार्ताकारों के बीच एक समझौता हुआ था. इसमें दोनों पक्ष दो हफ्ते के सीजफायर पर राजी हुए थे.
ब्लूमबर्ग ने मामले की जानकारी रखने वाले दो लोगों के हवाले से बताया कि सीजफायर के बदले में राष्ट्रपति अशरफ गनी का इस्तीफा होना था और ट्रांजिशनल सरकार पर बातचीत शुरू होती.
कहां गड़बड़ हुई?
रिपोर्ट के मुताबिक, अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के 15 अगस्त को देश छोड़कर चले जाने की वजह से इस समझौते पर अमल नहीं हो पाया. गनी का कहना है कि वो 'खूनखराबा' रोकने के लिए अफगानिस्तान से चले गए हैं.
हालांकि, ब्लूमबर्ग का कहना है कि गनी के इस कदम ने दोहा में उनकी टीम, अमेरिकी राजनयिकों और उनके चीफ ऑफ स्टाफ को हैरान कर दिया था.
अशरफ गनी के देश में न होने की खबर सामने आने के बाद तालिबान ने ट्रांजिशनल सरकार से मना कर दिया था. तालिबान ने 15 अगस्त की देर शाम तक राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया था.
समझौते के तहत क्या होना था?
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, समझौता हुआ था कि सीजफायर के बाद पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजाई और कई पूर्व और मौजूदा अधिकारी तालिबान के साथ किसी तरह की सत्ता-साझेदारी की डील करेंगे. करजाई अभी भी काबुल में हैं.
लेकिन अशरफ गनी के जाने से और तालिबान के अफगानिस्तान पर पूरी तरह कब्जा करने के बाद इस समझौते का मतलब नहीं रह गया है. तालिबान कह रहा है कि वो 'समावेशी इस्लामिक' सरकार बनाएगा, जिसमें 'गैर-तालिबान अफगान' भी शामिल होंगे. हालांकि, तालिबान कितनी सत्ता साझा करता है ये अभी देखना बाकी है.
हामिद करजाई ने नेशनल रिकांसिलिएशन काउंसिल के चेयरमैन अब्दुल्ला अब्दुल्ला और गुलबुद्दीन हिकमतयार के साथ मिलकर एक कोऑर्डिनेशन काउंसिल बनाई है. संभावना है कि तीनों नेता तालिबान से अफगानिस्तान की अगली सरकार बनाने पर बातचीत करेंगे.
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