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ढाका के वरिष्ठ पत्रकार-‘अल्पसंख्यक बांग्लादेश में ज्यादा सुरक्षित’

रियाज अहमद जोर देते हुए कहते हैं कि पलायन मुख्य रूप से आर्थिक, व्यवसायिक और रोजगार के अवसरों की चाहत में होता है.

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नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पास हो चुका है अब 11 दिसंबर को ये राज्यसभा में पेश होगा. लोकसभा में इस बिल पर काफी विवाद देखने को मिला है. इस बिल के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के शरणार्थियों को उनकी धार्मिक आस्था के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है. बांग्लादेश के संपादक भी इस बिल की कई स्तरों पर आलोचना करते हैं.

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ढाका ट्रिब्यून के संपादक और बांग्लादेश के क्षेत्रीय मुद्दों के जानकार ने क्विंट को बताया- बांग्लादेश के अल्पसंख्यक आज के भारत में अल्पसंख्यकों से ज्यादा सुरक्षित हैं.

भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि गैर मुस्लिम बांग्लादेशियों को धार्मिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी है. ढाका ट्रिब्यून के एक्जीक्यूटिव एटिडर रियाज अहमद जोर देते हुए कहते हैं कि पलायन मुख्य रूप से आर्थिक, व्यवसायिक और रोजगार के अवसरों की चाहत में होता है.

नागरिकता संशोधन बिल के मद्देनजर भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर क्या असर पड़ेगा? इस पर दो बांग्लादेशी संपादकों ने अपनी दलीलें रखीं हैं-

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जफर शोभन: “गैर-मुस्लिम प्रवासियों को बेहतर आर्थिक अवसर की उम्मीद”

रियाज अहमद जोर देते हुए कहते हैं कि पलायन मुख्य रूप से आर्थिक, व्यवसायिक और रोजगार के अवसरों की चाहत में होता है.
जफर शोभन, ढाका ट्रिब्यून के एटिडर
(Photo Courtesy: Dhaka Tribune)

जफर शोभन बताते हैं कि नागरिकता संशोधन बिल के जरिए ये बात साफ होती है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है. ये जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत की जीत है. पाकिस्तान की बजाय बांग्लादेश के लंबे वक्त तक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहा है और हमने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की है. ये भारत के हित में है कि भारत के पूर्व में एक दोस्ताना, धर्मनिरपेक्ष देश हो.

लेकिन भारत ने अब खुद को एक हिंदू राष्ट्र के जैसे परिभाषित करना शुरू कर दिया है. आप सोच सकते हैं इसका बांग्लादेश पर क्या असर होगा. खासतौर पर अगर ये योजना बनती है कि मुसलमानों को बांग्लादेश की तरफ ढकेला जाए? अगर ऐसा होता है तो ये बांग्लादेश के लिए भयानक होगा. लेकिन मेरा मानना है कि ये भारत के लिए भी खतरनाक साबित होगा. लेकिन ये दिल्ली की सत्ता में बैठे लोगों को समझ में नहीं आ रहा है. 
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बांग्लादेश नागरिकता संशोधन बिल पर भारत के नजरिए को कैसे देखता है? भारत के गृह मंत्री ने कहा है बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की हालत खराब है?

ये बकवास दुर्भाग्यपूर्ण है. बांग्लादेश की मौजूदा सरकार भारत की अब तक की सबसे अच्छी दोस्त है. मौजूदा सरकार ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए सबसे ज्यादा काम किया है. इस बात की को हमें मानना होगा.

अमित शाह ने कहा कि “क्या बांग्लादेश में मुसलमानों पर अत्याचार हो सकता है, कभी नहीं” क्या ये सही है?

मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या भारत में  हिंदूओं के खिलाफ अत्याचार हो सकता है. हम जानते हैं कि उनका इस पर क्या जवाब होगा.

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रियाज अहमद: ‘बीजेपी का नैरेटिव अतार्किक और गलत है’

रियाज अहमद जोर देते हुए कहते हैं कि पलायन मुख्य रूप से आर्थिक, व्यवसायिक और रोजगार के अवसरों की चाहत में होता है.
रियाज अहमद, एक्जीक्यूटिव एडिटर, ढाका ट्रिब्यून
(Photo Courtesy: Reaz Ahmad)

रियाज अहमद कहते हैं कि बीजेपी और भारत की सरकार नागरिकता बिल को लेकर जो नैरेटिव पेश कर रही है ये कहीं से भी तार्किक और सही नहीं है. ये कहना सही नहीं है कि गैर इस्लामिक लोग इसलिए पलायन कर रहे हैं क्यों कि यहां धार्मिक प्रताड़ना हो रही है.

भारत और बांग्लादेश के बीच जो भी क्रॉस बॉडर पलायन होता है वो दोनों तरफ से होता है. मतलब भारत और बांग्लादेश दोनों तरफ से लोग आते जाते हैं. पलायन का दूसरा कारण बेहतर आर्थिक अवसर और रोजगार है. 

उदाहरण के तौर पर भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत के 10,000 से ज्यादा नागरिक बांग्लादेश में रह रहे हैं. इन लोगों में से ज्यादातर लोग रेडीमेड कपड़ों के बिजनेस और नौकरियों में लगे हुए हैं. हालांकि अनाधिकारिक आंकड़े के मुताबिक इस इंडस्ट्री में 1 लाख से 5 लाख भारतीय शामिल हैं. अगर हम ये कहें कि ये पलायन आर्थिक प्रताड़ना की वजह से हुआ है तो ये कहना गलत होगा.

भारत की मौजूदा सरकार हिंदू उभार की तरफ बढ़ रही है. इसका बांग्लादेश की अल्पसंख्यक आबादी पर भी असर देखने को मिलेगा. भारत के तार्तिक लोगों में शामिल शशि थरूर ने कहा है कि ये भारत के संविधान के लिए काला दिन है.

धर्म के आधार पर लोगों को बांटने का विचार अच्छा नहीं है ये कभी हो भी नहीं सकता है. भारत को अपने खुद के प्रताड़ित किए हुए अल्पसंख्यक समुदाय पर नजर डालनी चाहिए. 

ऐसा कोई भी कारण नहीं है जिससे इस नागरिकता बिल को बांग्लादेश के हित में समझा जाए.

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