मान लीजिए आप किसी रविवार को अपनी छुट्टी का लुत्फ उठा रहे हैं और बेड पर पड़े-पड़े रेडियो सुन रहे हैं. आपका मिजाज पुराने गानों को सुनने का हो और तभी मुहम्मद रफी साहब रेडियो में से गा उठें- बागों में बहार है.. अब इससे पहले कि लता मंगेशकर ताई इस सवाल का जवाब हां में देतीं, आप शायद बोल उठेंगे कि बागों में बहार का तो पता नहीं लेकिन आंख-नाक में जलन और फेफड़ों को बैठा देने वाली धुंध भरी हवा तो जरूर है. यकीन मानिए हम आपके वीकेंड को नीरस नहीं कर रहे हैं बल्कि बस जो दिख रहा है (वैसे दिल्ली के धुंध में देखना भी मुश्किल है) उससे वाकिफ करा रहे हैं.
आज यानी रविवार, 6 नवंबर को ही दुनियाभर के नेता मिस्र के Sharm El Sheikh में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (UN climate summit) के 27वें संस्करण, COP27 में भाग ले रहे हैं. यहां दुनियाभर की सरकारें वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा करती हैं.
ऐसा सम्मलेन हर साल होता है और हर साल दुनिया भर की सरकारें जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए यहां बड़े-बड़े वादे करती हैं. पिछले साल COP26 के दौरान भी ऐसा ही वादा किया गया जिनमें से अधिकतर पूरे नहीं हुए. लेकिन ये 'वादा खिलाफी' हमारे लिए और उससे भी ज्यादा हमारी आने वाले पीढ़ी के लिए नासूर बनती जा रही है. आइए यहां समझने की कोशिश करते हैं कि अगर हम इंसान अभी नहीं संभले तो आने वाले वक्त में किन 5 दुष्परिणामों को झेलना पड़ेगा.
1. ग्लोबल वार्मिंग का दंश, गर्मी का मौसम असहनीय होगा, जंगल का जलना आम
जलवायु विज्ञानी (Climatologist) मार्क मस्लिन की किताब How to Save Our Planet: The Facts के अनुसार अगर 21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए तो 22वीं सदी की शुरुआत में दुनिया के औसत तापमान में पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 4 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हो जाएगी. ऐसी स्थिति में कई देशों में, गर्मी के मौसम में तापमान लगातार 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रह सकता है और उष्ण कटिबंधीय देशों में 50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान वाली हीटवेव आम हो जाएगी.
जब दुनिया के इतने देशों में गर्मी के मौसम में औसत तापमान इस हद तक बढ़ जायेगा तब, अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप में जंगल की आग भड़कने की घटना आम हो जाएगी, जिससे धुएं के गुबार उठेंगे और लोगों के लिए घर के बाहर सांस लेना असहनीय होगा, वैश्विक स्वास्थ्य संकट पैदा होगा.
2. कोरल रीफ के बिना दुनिया
कोरल रीफ के इकोसिस्टम पर 50 करोड़ से अधिक लोग निर्भर हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इनपर मौत का पैगाम बनकर आया है. कोरल रीफ को लंबे समय से ग्लोबल वार्मिंग के सबसे शुरुआती और सबसे बड़े इकोलॉजिकल/पारिस्थितिक शिकार में से एक माना जाता है.
जर्नल PLOS Climate में प्रकाशित नए रिसर्च में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए इन उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्रों का भविष्य अनुमान से भी बदतर है.
2018 की रिपोर्ट में, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने भविष्यवाणी की थी कि ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस के कारण दुनिया की 70 से 90% कोरल रीफ गायब हो जाएंगी. लेकिन अब PLOS Climate में छपी रिसर्च के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस होने पर ( मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए 2030 के दशक की शुरुआत में) दुनिया की 99% चट्टानें हीटवेव का अनुभव करेंगी जो कोरल रीफ को पूरी तरफ खत्म कर सकती है.
मार्क मस्लिन ने भी अपनी किताब में ये अनुमान लगाया है कि 22वीं सदी में ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया जायेगा.
3. जानलेवा बाढ़ आम बात होगी और पीने को पानी नहीं होगा
भविष्य की बात करें उससे पहले खौफनाक वर्तमान पर नजर डालते हैं. इस साल पाकिस्तान में बाढ़ ने हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली और नाइजीरिया में 600 से अधिक लोग मर गए. द गार्डियन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक का अनुमान है कि जब तक बड़े स्तर पर कार्रवाई नहीं की जाती, लगभग 21.6 करोड़ लोग, ज्यादातर विकासशील देशों से, 2050 तक बाढ़, सूखे, हीटवेव और आंधी के कारण भागने के लिए मजबूर हो जाएंगे. इसकी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 23 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा और संभावित रूप से यह कई और बढ़ सकता है.
पिघलते ग्लेशियर के कारण बढ़े समुद्र के जलस्तर से सबसे बड़ा खतरा मुंबई, हांगकांग, रियो डी जनेरियो और मियामी जैसे समुद्र किनारे बसे शहरों पर है. साथ ही मालदीव, मार्शल द्वीप समूह, तुवालु और कई अन्य छोटे द्वीप राष्ट्रों के भविष्य पर भी संकट है.
दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति यही रही तो मार्क मस्लिन के अनुसार अधिकांश पर्वतीय ग्लेशियर 22वीं सदी में पूरी तरह से पिघल चुके होंगे, स्कीइंग मुख्य रूप से एक इनडोर खेल होगा जिसे आर्टिफीसियल सतह पर किया जाएगा. सबसे बड़ा संकट यह होगा कि हिमालय के पठार की अधिकांश बर्फ गायब हो गई जाएगी, जिससे सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुना नदियों का प्रवाह कम हो जायेगा, जिन पर 60 करोड़ से अधिक लोग पानी के लिए निर्भर हैं.
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 वर्षों में इंसानों के लिए उपलब्ध स्थलीय जल का कुल स्तर 1 सेमी प्रति वर्ष की दर से गिरा है और अगले तीन दशकों के भीतर पांच अरब से अधिक लोगों के लिए जल आपूर्ति अपर्याप्त होने की उम्मीद है.
4. भुखमरी से मचेगा त्राहिमाम
खाद्य उत्पादन, लागत और सुरक्षा पर इसके प्रभाव के कारण जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा (फूड सेक्युरिटी) के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण अत्यधिक गर्मी या पानी की कमी फसल की वृद्धि में बाधा डाल सकती है, पैदावार कम कर सकती है और सिंचाई, मिट्टी की गुणवत्ता और उस इकोसिस्टम को प्रभावित कर सकती है जिस पर कृषि निर्भर करती है
वर्ल्ड बैंक के अनुसार अगर समाधान नहीं निकाला गया तो फसल की पैदावार में गिरावट (विशेष रूप से दुनिया के सबसे अधिक खाद्य-असुरक्षित क्षेत्रों में) लोगों को गरीबी में धकेल देगी - अकेले अफ्रीका में अनुमानित 43 मिलियन लोग 2030 तक गरीबी रेखा से नीचे आ सकते हैं.
वर्ल्ड बैंक के अनुसार फसल खराब होने और जलवायु परिवर्तन से भुखमरी से सबसे अधिक जोखिम वाली वैश्विक आबादी का लगभग 80% उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में है, जहां किसान परिवार असमान रूप से गरीब और कमजोर हैं.
मार्क मस्लिन ने भी अपनी किताब में ये अनुमान लगाया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण 22वीं सदी में मछलियों का स्टॉक गिर जायेगा, समुद्र की अम्लता/एसिडिटी में 125% की वृद्धि हो जाएगी. दरअसल समुद्री खाद्य श्रृंखला के आधार माने जाने वाले छोटे समुद्री जीव बढ़ी एसिडिटी की स्थिति में अपने कैल्शियम कार्बोनेट के शेल बनाने में संघर्ष करते हैं और उनके लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है. यही कारण है कि समुद्री खाद्य श्रृंखला पर निर्भर लोगों और देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के बीच भविष्य मुश्किल होगा.
5. होगी तबियत नासाज, गरीब देशों पर सबसे अधिक प्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार जलवायु परिवर्तन मानवता के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने निष्कर्ष निकाला है कि विनाशकारी स्वास्थ्य प्रभावों को रोकने और लाखों जलवायु परिवर्तन से संबंधित मौतों को रोकने के लिए, दुनिया को तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना ही होगा. लेकिन हम इस लक्ष्य के आसपास भी नहीं हैं.
जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य के सामाजिक और पर्यावरणीय निर्धारकों- जैसे स्वच्छ हवा, सुरक्षित पेयजल, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित आवास को प्रभावित करता है. WHO के अनुसार 2030 और 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी के तनाव से प्रति वर्ष लगभग 2.5 लाख अतिरिक्त मौतों का कारण बनने की उम्मीद है.
कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे वाले देश- ज्यादातर विकासशील और गरीब देशों में- जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा इस स्वास्थ्य संकट का सामना करने में सबसे कम सक्षम होंगे.
मार्क मस्लिन ने भी अपनी किताब में ये अनुमान लगाया है कि यही हालत रही तो 22वीं सदी में गर्मी की लहरों और सूखे से लेकर तूफान और बाढ़ तक की घटना बड़े पैमाने पर जीवन का नुकसान कर रही होगी और लाखों लोगों को बेघर कर रही होगी.
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