इन दिनों देश में जगह-जगह रामलीला की धूम मची है. नवरात्रि के दौरान होने वाली रामलीला हिन्दू संस्कृति से जुड़ी मान्यताओं का प्रतीक है. ये न केवल आध्यात्मिक तौर पर बल्कि भारत की लोक कला संस्कृति का जीवंत उदाहरण है.
भारत में रामलीला की शुरुआत कब और कैसे हुई?
इसके पीछे कोई ठोस तथ्य तो नहीं है, लेकिन इतिहास में कई कहानियां दर्ज हैं. कथाओं की माने तो 16वीं सदी में तुलसीदास के शिष्यों ने रामलीला मंचन की शुरूआत की थी. कहा जाता है कि उस समय जब गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस पूरी की थी तब काशी के नरेश ने रामनगर में रामलीला करवाई थी. तभी से देशभर में रामलीला का मंचन शुरू हुआ.
देश की सबसे पुरानी रामलीला, गंगा- जमुना तहजीब
लखनऊ के ऐशबाग में होने वाली रामलीला 500 साल से होती आई है. कहा जाता है कि खुद तुलसीदास ने इसकी शुरुआत की थी और नवाब असफउद्दौला ने लखनऊ के ऐशबाग इलाके में रामलीला के लिए साढे़ छह एकड़ जमीन दी थी. नवाब असफउद्दौला को इस गंगा-जमुनी तहजीब का जनक माना जाता है, क्योंकि वह खुद भी इसमें शिरकत करते थे.
इन दिनों अयोध्या में चल रही रामलीला को लोग इतना पसंद कर रहें हैं कि डीडी नेशनल के यूट्यूब चैनल पर पहली वीडियो कुछ ही मिनटों में मिलियन व्यूज क्रास कर गई. रामलीला का क्रेज विदेशों भी बढ़ चढ़कर रहा है. इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते है कि रामलीला के 40% विदेशी व्यूअर्स हैं.
जिस तरह रामलीला हमारी संस्कृति का हिस्सा है ठीक उसी तरह विदेशों में भी इसकी मान्यताएं हैं. भारत के अलावा कई देशों में लोग अपनी - अपनी संस्कृति, पहनावे और नजरिए से इसका मंचन करते हैं. कही किरदारों के नाम अलग तो कही कहानी में बदलाव जरूर देखने को मिलेंगे लेकिन अंत में अधर्म पर धर्म की जीत ही दिखाई देती है. विदेश में होने वाली रामलीला को कितना जानते - समझते हैं आप?
देखिए थाईलैंड की म्यूजिकल रामलीला "रामकेन"
दशहरे या रामलीला की धूम भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब देखने को मिलती है. बात करें थाईलैंड की तो यहां बौद्ध धर्म के बाद हिन्दू धर्म से जुड़ी संस्कृति का भी पालन होता होता है. उनमें से एक है श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण 'रामकेन' जिसे आर्टिस्ट म्यूजिक, डांस और एक्सप्रेशन से सांझा करते हैं.
थाईलैंड का “Khon” आर्ट पूरे विश्व में काफी फेमस है. यूनेस्को ने इसे लोक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में दर्ज किया है. इसमें आर्टिस्ट चेहरे पर नकाब लगाकर म्यूजिकल बीट पर रामलीला करते हैं.
थाई रामलीला में सीता रावण की बेटी होती है, जिन्हें एक भविष्यवाणी के बाद रावण ने जमीन में दफना दिया था. भविष्यवाणी में कहा गया था कि 'यही लड़की तेरी मृत्यु का कारण बनेगी", बाद में देवी सीता जनक को मिलीं. यही कारण था कि रावण ने कभी भी देवी सीता के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया. वहीं, ऐसा भी माना जाता है कि सीता देवी दुर्गा का रूप थीं और लंकापति रावण का संहार करने की वजह बनी थीं.
इस्लाम धर्म है और रामायण संस्कृति - इंडोनेशिया
90 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया पर रामायण की गहरी छाप है. रामायण को वहां रामायण काकाविन (काव्य) कहा जाता है.मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में लोग न केवल बेहतर इंसान बनने के लिए रामायण पढ़ते हैं बल्कि इसके किरदार वहां की स्कूली शिक्षा का भी अभिन्न हिस्सा हैं.
कंबोडिया में किरदार अलग पर सीख वही
कंबोडिया बौद्ध देश है, लेकिन यहां हिंदू कल्चर की भी छाप देखने को मिलती है. कंबोडिया के रामायण को ’Reamker’ कहा जाता है, जिसमें भगवान राम को "Preah Ream" सीता को "Neang Seda" और लक्ष्मण को "Preah Leak" के नाम से जाना जाता है. इसका चलन थिएटर तक फैला हुआ है.
मॉरीशस में रामलीला को मिल रहा प्रोत्साहन
मॉरीशस में रामलीला मंचन की बहुत ही पुरानी परम्परा है. यहां झाल और ढोलक पर रामायण गीत भी काफी चलन में हैं. मॉरीशस सनातन धर्म मंदिर संघ और मॉरीशस कला - संस्कृति मंत्रालय रामलीला परंपरा को देश में बढ़ावा देते हैं.मॉरीशस अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन की भी मेजबानी कर चुका है.
म्यांमार की रामलीला है पुरानी परम्परा
म्यांमार में रामायण यानी "यामा जाटडॉ/Yama Zatdaw" अनौपचारिक तौर पर देश का राष्ट्रीय महाकाव्य है. "Yama" का अर्थ है नाटक और "Zatdaw"का मतलब राम है. रामलीला की परम्परा यहां 11 शताब्दी से चली आ रही है. पहले यह राजाओं के दरबार में इस नाट्य का प्रचलन था. आज भी यह देश की संस्कृति और कला का अनूठा हिस्सा है.
फिजी में हर बस्ती की अपनी रामायण मंडली
फिजी 300 द्वीपों का ऐसा समूह है जहां कई सालों से रामलीला होती चली आ रही है. खास यह है कि यहां हर बस्ती की अपनी ‘रामायण मंडली’ है जो रामायण की संस्कृति और मूल्यों को कला के माध्यम से उकेरती है. फिजी भारत में फरवरी 2015 में आयोजित पहले अंतर्राष्ट्रीय रामायण फेस्टिवल ’में भाग लेने वाले आठ देशों में से एक था.
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