लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और हिज्बुल मुजाहिदीन (HM) जैसे आतंकी संगठन कोरोना वायरस संकट को अपने फायदे के लिए भुना सकते हैं. कई एंटी टेरर ऑब्जर्वर्स ने इस बात की आशंका जताई है.
इन ऑब्जर्वर्स को आशंका है कि COVID-19 संकट के बीच बेरोजगार युवा, आतंकी संगठनों के लिए आसान शिकार हो सकते हैं, ये संगठन मुश्किल वक्त में ऐसे युवाओं को खाना और पैसा देकर उनके हाथों में हथियार थमा सकते हैं.
साउथ एशिया डेमोक्रेटिक फ्रंट के रिसर्च डायरेक्टर सीजफ्रीड वोल्फ ने इस मामले पर कहा, ''साउथ एशिया खासकर, अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र में अपनी आतंकी गतिविधियों, नई भर्तियों और प्रोपेगैंडा कैंपेन्स के लिए संकट के वक्त को भुनाने की जिहादी ग्रुप्स की लंबी परंपरा रही है.''
पाकिस्तान की बात करते हुए वोल्फ ने कहा कि वहां का प्रशासन एक बार फिर सिविलियन क्राइसिस ने निपटने में असमर्थ दिखा है, ऐसे में कट्टरपंथियों को अपना प्रोपेगैंडा बढ़ाने का मौका मिल गया है.
फ्रांस में रह रहे पाकिस्तानी पत्रकार तहा सिद्दीकी ने कहा, ''इस्लामिक कट्टरपंथी इस संकट को डिवाइन पनिशमेंट बताकर मुस्लिमों से उनके तथाकथित सच्चे रास्ते पर लौटने को कह रहे हैं, जो आम तौर पर हिंसक व्यवहार से जुड़ा होता है.''
तहा ने कहा, ''सिक्योरिटी एंजेसियों और सोशल मीडिया नेटवर्क्स को साथ आकर ऐसे ग्रुप्स को रोकने की जरूरत है.''
यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्डटीज के डायरेक्टर जुनैद कुरैशी ने कहा, ''यह सुनना वाकई डरावना है कि जब दुनिया COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ रही है, आतंकी संगठन इस संकट को भुनाने की कोशिशों में हैं.''
उन्होंने कहा कि हालांकि यह चौंकाने वाला नहीं है क्योंकि आतंकी संगठनों के काम करने का तरीका ही यही होता है.
कुरैशी ने कहा, ‘’वे (आतंकी संगठन) अस्तित्व में ही इसलिए हैं क्योंकि वे धर्म, अशिक्षित लोगों, गरीब लोगों, क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता का दोहन करते हैं.’’
उन्होंने कहा, ''हम इस मुश्किल वक्त में आतंकी संगठनों से नैतिकता की उम्मीद नहीं कर सकते और हमें करनी भी नहीं चाहिए. हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि इन संगठनों को ये न लगे कि जब हम कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं तो हमारा ध्यान उन पर से हट गया है.''
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)