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कोरोना वैक्सीन: महामारी को लेकर महामूर्खता करने जा रहे अमीर देश?

कोरोना वैक्सीन और अमीर देशों में दूरदृष्टि दोष का संक्रमण

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दुनिया भर के नेताओं ने कोरोना (Coronavirus) से जंग में कई गलत फैसले लेकर पहले ही दुनिया और खुद अपने देशों को मुसीबत में डाला है. भारत समेत कई देशों में कोरोना का दूसरा अटैक आ चुका है. भारत की राजधानी में मौतों के पिछले आंकड़े पिछड़ते जा रहे हैं. लेकिन अब लग रहा है कि कुछ अमीर देश एक बार फिर बड़ी मूर्खता करने जा रहे हैं. इस गलती की न सिर्फ दुनिया को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है बल्कि खुद उन देशों के लिए भी आत्मघाती साबित हो सकती है.

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अमीर देश चाहते हैं वैक्सीन पर एकाधिकार

अमीर देश कोरोना की दवा या वैक्सीन पर अपने इंटिलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स नहीं छोड़ना चाहते. इससे उन्हें कोई मतलब नहीं कि मानवता को रोज कोरोना थोड़ा-थोड़ा कर लील रहा है. उन्हें अपने मुनाफे से मतलब है. न्यूज एजेंसी राइटर्स के मुताबिक शुक्रवार को एक सीक्रेट मीटिंग में अमीर देशों खासकर यूरोपीय यूनियन और अमेरिका ने इंटिलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स छोड़ने के प्रस्ताव का विरोध किया. अगर उनका ये रुख जारी रहता है तो ये मुद्दा अगले महीने होने जा रही विश्व व्यापार संगठन विश्व व्यापार जनरल काउंसिल में उठ सकता है. अगर वहां इसपर आम सहमति नहीं बनी तो फिर इसका निपटारा वोट के जरिए होगा जो कि रेयर होगा.

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एकाधिकारों में ढील के पैरोकारों का कहना है कि अगर अमीर देश नहीं माने तो ये कोरोना से जंग की राह में बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है. इनकी दलील है कि जैसे AIDS के मामले में अधिकार छोड़े गए, वैसे ही कोरोना के मामले में भी छोड़ने चाहिए. इनका आरोप है कि ये देश लोगों की जिंदगी से ज्यादा अपने मुनाफे पर ध्यान दे रहे हैं. 

कौन और क्यों मांग रहा छूट?

अधिकारों में छूट का प्रस्ताव सबसे पहले भारत और साउथ अफ्रीका जैसे देशों ने किया था. पांच कोरोना वैक्सीन पर रिसर्च का दावा करने वाले चीन ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया है. दरअसल जिन देशों में सबसे पहले वैक्सीन बनने की उम्मीद है कि उनमें से ज्यादातर अमीर देश हैं. किसी आविष्कार पर आम तौर पर इस तरह के अधिकारों का दावा किया जाता है. इसमें होता ये है कि आविष्कारक को एक तय समय तक उस चीज के इस्तेमाल के एक्सक्लूसिव राइट्स मिलते हैं.

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कैसे आत्मघाती साबित हो सकती है अधिकारों की ये जिद

दुनिया अब सही मायने में एक ग्लोबल विलेज है. अमेरिकी शेयर बाजार गिरेंगे तो उसका असर सुदूर पूर्व के इंडेक्स पर दिखेगा. चीन में कोई वायरस हमला करेगा तो सबसे ज्यादा लोग पश्चिम के देश अमेरिका में मारे जाएंगे. जैसे इंसानों का दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर में जाना आसान और इस वजह से तेज हुआ है उसी तरह से किसी भी अच्छी और बुरी चीज का एक से दूसरी जगह पहुंचना चंद घंटों की बात है. लेकिन दूरदृष्टि दोष से संक्रमित वर्ल्ड लीडर ये बात नहीं समझ पाते.

  • चीन ने अपनी इमेज बचाने के लिए कोरोना के प्रकोप के बारे में बताने में देरी की, आज दुनिया भुगत रही है. चीन का भी कूटनीतिक से लेकर आर्थिक मोर्चे पर कम नुकसान नहीं हुआ. मामला दबाने की उसकी गलती आत्मघाती साबित हुई.
  • अमेरिका ने ट्रंप के नेतृत्व में इस महासंकट में महाशक्ति की भूमिका निभाने के बजाय महामूर्ख की भूमिका निभाई. अपनी ऊर्जा चीन को गलत ठहराने में लगाई. विश्व स्वास्थ्य संगठन के संसाधन रोके. आज दुनिया का सबसे संक्रमित देश खुद अमेरिका है.
  • दुनिया के कई राष्ट्रध्यक्षों ने कोरोना को लेकर दूरदृष्टि रखने के बजाय निकट के सियासी मुनाफे पर नजर गड़ाई, कोरोना से जंग में साधन जुटाने के बजाय जुमलों से काम चलाया और आज उनके देश बड़ा खामियाजा भुगत रहे हैं.
  • देशों के बीच कोरोना के खिलाफ जंग में तालमेल की साफ कमी दिखी और नतीजा ये हुआ कि आज 13 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं संक्रमितों की संख्या 6 करोड़ होने वाली है.

अमीर देश का दृष्टिदोष ही है कि वो सोचते हैं कि एक्सक्लूसिव राइट्स के चलते वो अपने देश के नागरिकों को पहले वैक्सीन मुहैया कराकर वाहवाही लूट लेंगे. अपने देश की कंपनियों को मुनाफा दिलवाएंगे. लेकिन इस वायरस पर वो पुराना विज्ञापन सटीक बैठता है- 'एक भी बच्चा छूटा तो सुरक्षा चक्र टूटा'. जितना कोरोना का वायरस लोगों को मार रहा है उतना ही कोरोना के कारण आई आर्थिक तबाही भी खतरनाक है.

अब ज्यादा से ज्यादा देशों के लिए कारोबार और व्यापार रोकना मुश्किल हो रहा है. आप वैक्सीन नहीं देंगे लेकिन व्यापार जारी रखेंगे और जारी रखना होगा संक्रमण का जरिया. फिर क्या करेंगे? ये वक्त मुनाफे और स्वार्थी होने का नहीं, बड़ा दिल रखने का है. उस लोक के लिए नहीं, इसी लोक के लिए, कल के लिए नहीं, आज के लिए.

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