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ट्रंप ने चुनाव देर से कराने का ‘सुझाव’ दिया,मेल-इन वोटिंग का जिक्र

कोरोना वायरस का प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में ही है

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 30 जुलाई को पहली बार राष्ट्रपति चुनाव में 'देरी' करने का इशारा किया. ट्रंप ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा कि यूनिवर्सल मेल-इन वोटिंग से देश के इतिहास के सबसे 'गलत और धोखा देने वाले' चुनाव होंगे. अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं. हालांकि, कोरोना वायरस का प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में ही है.

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डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विटर पर लिखा, "यूनिवर्सल मेल-इन वोटिंग (एब्सेंटी वोटिंग नहीं, जो कि अच्छा है) के साथ 2020 इतिहास में सबसे 'गलत और धोखा देने वाले' चुनाव होगा. ये USA के लिए बहुत शर्म की बात होगी. चुनाव में देरी की जाए जिससे कि लोग ठीक और सुरक्षित तरह से वोट कर सकें???"

इससे पहले भी ट्रंप मेल-इन वोटिंग को लेकर एक ट्वीट कर चुके हैं और इसे 'विनाशकारी आपदा' बता चुके हैं.

क्या राष्ट्रपति ट्रंप चुनाव टाल सकते हैं?

अमेरिका का संविधान राष्ट्रपति को चुनाव टालने की ताकत नहीं देता है. ये ताकत कांग्रेस के हाथों में हैं और कांग्रेस दो सदनों से मिलकर बनी है- हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट. हाउस में इस समय डेमोक्रेट्स बहुमत में हैं और वो कांग्रेस को ऐसा करने नहीं देंगे.

मेल-इन वोटिंग और एब्सेंटी वोटिंग क्या होता है?

एब्सेंटी वोटिंग उसे कहा जाता है, जब वोटर बैलट के लिए निवेदन करता है और योग्य पाए जाने पर उसे ये बैलट ईमेल या मेल के जरिए भेजा जाए. पारंपरिक तौर पर वोटर को ये बताना होता है कि वो 'चुनाव के दिन पोलिंग बूथ पर क्यों नहीं जा सकता है' यानी कि उसे अपने गैरमौजूद होने की वजह बतानी होती है. सभी राज्य किसी न किसी तरह से एब्सेंटी वोटिंग को मंजूरी देते हैं. 2019 के अंत तक 32 राज्य और कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट ने 'बिना वजह के एब्सेंटी वोटिंग' को मंजूरी दे दी है और इन राज्यों में वोटर बिना वजह बताए बैलट मांग सकता है. 17 राज्यों में अब भी वजह बतानी पड़ती है.

वहीं, मेल-इन वोटिंग या वोट-बाय-मेल एक प्रक्रिया है, जिसमें हर रजिस्टर्ड वोटर के पास बिना निवेदन किए बैलट आता है. कोलोराडो, हवाई, ओरेगॉन, वाशिंगटन और यूटाह में मेल-इन वोटिंग डिफ़ॉल्ट प्रैक्टिस है. इन राज्यों के अलावा 21 अतिरिक्त राज्यों में ये सुविधा छोटे चुनावों के लिए दी जाती है. मेल-इन वोटिंग में वोटर के पास चुनाव के दिन से पहले बैलट आ जाता है और उसे वो भरकर दोबारा भेजना होता है या चुनाव के दिन वो पोलिंग बूथ जाकर एक ड्रॉपबॉक्स में उसे डाल सकता है.

मेल-इन-वोटिंग पर हमलावर क्यों है ट्रंप?

डोनाल्ड ट्रंप काफी पहले से ही मेल-इन-वोटिंग को 'फ्रॉड' बताते आए हैं. ट्रंप का कहना है कि इससे चुनाव में धांधलेबाजी हो सकती है. हालांकि ट्रंप के दावे और इस प्रक्रिया को लेकर की गई स्टडीज मेल नहीं खाती हैं. मई में ट्रंप ने कहा था कि मेल-इन वोटिंग होगी तो लोग जालसाजी करेंगे और मेलबॉक्स से बैलट को निकाल सकते हैं. लेकिन कई स्टडी में ये सामने आया है कि अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में फ्रॉड न के बराबर होता है.

चाहे वो लोयोला लॉ कॉलेज के जस्टिन लेविट की स्टडी हो, या पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की कमीशन की हुई स्टडी, सभी में पता चला कि अमेरिकी चुनाव में फ्रॉड बहुत ही मामूली है और मेल-इन वोटिंग में ये और भी न के बराबर ही है.   

लेकिन ट्रंप इस प्रक्रिया पर हमलावर क्यों होते हैं? इसका जवाब शायद उनकी गिरती अप्रूवल रेटिंग और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन के मजबूत होने से जुड़ा है. मई में CNN में एडिटर क्रिस सिलीजा ने लिखा था कि ट्रंप हार बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इसलिए वो ये ड्रामा कर रहे हैं कि अगर उनके हारने की नौबत आती है तो वो ये दिखाएंगे कि लोगों ने बाइडेन को नहीं चुना, बल्कि डेमोक्रेट्स ने चुनाव में धांधली की थी.

ट्रंप की अप्रूवल रेटिंग में गिरावट

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अप्रूवल रेटिंग में रिकॉर्ड गिरावट आई है. एक नए सर्वे में बताया गया है कि 6 स्विंग राज्यों में संभावित वोटरों के बीच उनकी अप्रूवल रेटिंग 45 पर्सेंट है. सीएनबीसी-चेंज रिसर्च पोल सर्वे ने पूरे देश में 1,258 संभावित वोटरों और छह राज्यों अरिजोना, फ्लोरिडा, मिशिगन, नार्थ कैरोलिना, पेंसिलवेनिया, विस्कॉन्सिन के 4322 वोटरों के बीच यह सर्वे किया. स्विंग राज्यों के चुनाव में जो बाइडेन डोनाल्ड ट्रंप से आगे चल रहे हैं.

सर्वे में पता चला कि 45 पर्सेंट लोगों ने ट्रंप के काम को हरी झंडी दी जबकि 55 पर्सेंट लोगों ने इसे नकार दिया. पोल में हिस्सा लेने वाले लोगों ने ट्रंप के कोरोना वायरस महामारी को हैंडल करने के तरीके की निंदा की और इसे ठीक से हैंडल करने के लिए बाइडेन में भरोसा दिखाया.

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