पिछले साल लॉकडाउन के दौरान प्रकृति में सकारात्मक बदलाव की तस्वीरें दुनियाभर में देखने को मिली थीं. नदियों, हवा और शोरगुल की स्थिति में सुधार हुआ था. कार्बन उत्सर्जन की बात करें तो द्वितीय विश्व युद्ध यानी 76 वर्ष बाद इसमें रिकॉर्ड 7 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी. इस भयंकर महामारी ने जहां दुनिया की बड़ी आबादी को प्रभावित किया है, वहीं जलवायु पर भी इसकी असर पड़ा है. आइए जानते हैं इस महामारी ने पृथ्वी में क्या कुछ बदला है.
76 साल बाद कार्बन उत्सर्जन में रिकॉर्ड कमी, लेकिन इस साल हो सकती है सबसे तेजी से बढ़ोत्तरी.
कोरोना महामारी के कारण एक साल की अवधि में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के पुराने सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए हैं. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में सात प्रतिशत की रिकॉर्ड कमी आई है. इससे पहले दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति यानी 1945 के दौरान 0.9 अरब मीट्रिक टन की गिरावट देखी गई थी. इस गिरावट की वजह दुनिया भर के देशों में लगे लॉकडाउन को माना गया है.
2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के कारण कार्बन उत्सर्जन में 0.5 अरब मीट्रिक टन की कमी आई थी. लेकिन 2020 में यह गिरावट 2.4 अरब मीट्रिक टन तक जा पहुंची. रिसर्चर के अनुसार उत्सर्जन में गिरावट इस वजह से आई, क्योंकि ज्यादातर लोग अपने घरों पर ही थे और उन्होंने इस साल कार या फिर विमान से बहुत कम यात्राएं कीं.
वहीं वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 22 प्रतिशत होती है. कुछ देशों में सख्त लॉकडाउन की वजह से इस क्षेत्र के उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कमी आई. उत्सर्जन में सबसे ज्यादा कमी अमेरिका और यूरोपीय संघ में दिखी. वहां क्रमशः 12 और 11 प्रतिशत की गिरावट आई. लेकिन चीन में यह गिरावट सिर्फ 1.7 प्रतिशत की रही, क्योंकि वह तेजी से आर्थिक रिकवरी की तरफ बढ़ रहा है.
पिछले साल ही इंग्लैंड की एक्सटर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक पीयरे फ्रेडलिंगस्टन ने कहा था कि पर्यावरण में यह सुधार कुछ ही अरसे के लिए है. चूंकि कोविड-19 महामारी के बाद विश्व में आर्थिक संकट से निपटने के लिए दुनिया फिर से अपनी पुरानी दिनचर्या पर चल देगी. अगले साल यानी 2021 तक कार्बन उत्सर्जन की स्थिति फिर वहीं की वहीं पहुंच जाएगी.
वहीं अब इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में 2021 में ऊर्जा खपत से 1.5 अरब टन ज्यादा कार्बन उत्सर्जन का अनुमान जताया है. ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार ऊर्जा उत्सर्जन में यह इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि होगी. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के कार्यकारी निदेशक का कहना है कि कोरोना महामारी से बाहर आ रही अर्थव्यवस्था हमारी जलवायु के लिए बिलकुल भी टिकाऊ नहीं है. अगर सरकारें तेजी से कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करेंगी तो 2022 में हमें ज्यादा खराब स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष वैश्विक लॉकडाउन के कारण गैसीय उत्सर्जन कम हो गया था, लेकिन जैसे ही लोगों की आवाजाही शुरू हुई और औद्योगिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ने लगीं तो इसमें तेजी आने लगी. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि इस साल (2021 में) वैश्विक ऊर्जा मांग 2019 से स्तर को पार करते हुए 4.6 फीसदी तक बढ़ेगी. इसका कारण विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्था में ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ना है.
ऊर्जा और जलवायु अनुसंधान समूह एम्बर की तरफ से प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक चीन ने 2020 में दुनिया की कुल कोयला-आधारित बिजली का 53 फीसदी से अधिक उत्पादन किया. इसमें 2015 के बाद से नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. "2021 ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यू’ में चीन कोयला आधारित बिजली उत्पादन में एक महत्वपूर्ण छलांग लगाने वाला जी20 का अकेला देश था. यह छलांग चीन में पवन और सौर ऊर्जा में प्रभावशाली उत्पादन दर्ज करने के बावजूद कोयले से बिजली उत्पादन में वृद्धि देखी गई. एम्बर के आंकड़ों के मुताबिक चीन में साल 2020 में पवन ऊर्जा से 71.7 गीगावट और 48.2 गीगावाट बिजली सौर ऊर्जा से पैदा की गई.
पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार इस दशक में हर साल उत्सर्जन में एक से दो अरब मीट्रिक टन की कटौती जरूरी है, तभी पृथ्वी की तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखा जा सकता है. लेकिन 2015 में हुए समझौते के बाद उत्सर्जन हर साल लगातार बढ़ा है.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2030 तक उत्सर्जन में हर साल 7.6 प्रतिशत की कटौती से ही तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही सीमित रखने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाया जा सकता है.
जलवायु परिवर्तन और अर्थव्यवस्था
कुछ दिन पहले ही ‘द स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2020 ' The State of the Global Climate 2020 की रिपोर्ट ही जारी की गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 के साथ मिलकर बदलते मौसम ने 2020 में लाखों लोगों को दोहरा झटका दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल मई में भारत और बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में आया चक्रवाती तूफान अम्फान उत्तरी हिंद महासागर में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला था. इस चक्रवात के कारण भारत को लगभग 14 अरब अमेरिकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुयी है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि महामारी से संबंधित आर्थिक मंदी जलवायु परिवर्तन कारकों पर काबू लगाने में विफल रही है.
WMO की रिपोर्ट स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2020 के अनुसार महामारी से संबंधित आर्थिक मंदी जलवायु परिवर्तन कारकों पर काबू लगाने में विफल रही है.
जर्नल ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के संयुक्त कार्यक्रम के शोधकर्ताओं ने 2035 तक दुनिया भर की आर्थिक गतिविधि के अनुमानों की तुलना की है. इस अध्ययन में पाया गया है कि कोविड-19 के कारण 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.2 प्रतिशत की कमी आई, लेकिन 2035 में केवल 2 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है. पेरिस 2030 के माध्यम से राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आर्थिक व्यवधान के बावजूद पूरा किया जा सकता है. जीडीपी में कमी के परिणामस्वरूप 2020 में वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 3.4 प्रतिशत की कमी आई, लेकिन 2030 में केवल 1 प्रतिशत की कमी का अनुमान है.
अध्ययनकर्ताओं ने इस बात पर भी अधिक ध्यान दिया कि अर्थव्यवस्था में विभिन्न संरचनात्मक परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप महामारी के दौरान जैसे, हवाई यात्रा, आवागमन में कमी और रेस्तरां में व्यावसायिक गतिविधि के साथ-साथ बड़े सरकारी घाटे का प्रभाव भी हो सकता है. इन सभी ने उत्सर्जन को कम किया 2020 के बाद, महामारी के बाद की तुलना में ये कटौतियां कम हो जाएंगी.
एमआईटी के अध्ययनकर्ता के अनुसार महामारी के साथ और बिना किसी महामारी के दुनियाभर की आर्थिक गतिविधियों के लिए हमारे अनुमान 2030 और उससे आगे के उत्सर्जन पर कोविड-19 का केवल बहुत कम प्रभाव दिखाते हैं. हालांकि महामारी से प्रेरित आर्थिक झटके लंबे समय तक उत्सर्जन पर थोड़ा सीधा प्रभाव डालेंगे, वे अच्छी तरह से निवेश के स्तर पर एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकते हैं जो राष्ट्र अपने पेरिस उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तैयार हैं.
राजनीतिक बदलाव
पिछले साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बाइडेन ने कहा था कि अगर वह जीतते हैं तो जलवायु परिवर्तन के समझौते में अमेरिका को फिर से शामिल करेंगे. एक सवाल के दौरान उन्होंने कहा था कि मेरा पहला काम जो होगा वह यह कि पेरिस समझौते में शामिल होना. सबको पता है कि ट्रंप के जाने और बाइडेन के आने के पीछे एक वजह ये भी रही कि ट्रंप महामारी को ठीक से हैंडल नहीं कर पाए.
अमेरिकी प्रशासन महामारी से पुनरूद्धार की प्रक्रिया के हिस्से के तहत जलवायु एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है. बाइडेन ने सत्ता संभालते ही 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में शामिल होने के लिए एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किया, जिससे ट्रंप ने औपचारिक रूप से पिछले साल अमेरिका को वापस ले लिया था.
पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने के 107 दिनों के बाद अमेरिका एक बार फिर से आधिकारिक तौर पर इसमें शामिल हो गया है. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने इसे दुनिया के लिए ‘आशा का दिन' बताया है.
वहीं कुछ दिन पहले चीन और अमेरिका ने कहा है कि दोनों देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आपस में और दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध हैं. चीन के जलवायु दूत शी झेनहुआ और उनके अमेरिकी समकक्ष जॉन केरी के बीच शंघाई में पिछले हफ़्ते हुई कई बैठकों के संयुक्त बयान में कहा गया, "अमेरिका और चीन जलवायु संकट से निपटने के लिए एक-दूसरे और अन्य देशों के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इस संकट को गंभीरता से और तुरंत दूर करने की जरूरत है.’
आबादी पर कोरोना महामारी का असर
हमारी धरती (Earth) कराह रही है तो एक वजह ये भी है कि आबादी बेतहाशा बढ़ रही है. पिछले साल कोरोना के शुरुआती दौर में लॉकडाउन के दौरान यूनिसेफ समेत कई एजेंसियों ने अनुमान जताया था कि दुनिया में जन्म दर तेजी से बढ़ेगी और अगले साल आबादी पर इसका असर दिखेगा, लेकिन कोरोना के बढ़ते कहर के साथ मई, जून और जुलाई आते-आते अमेरिका, यूरोप और तमाम एशियाई देशों में जन्म दर में 30 से 50 फीसदी तक कमी की अनुमान जताया गया था. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के सर्वे में कहा गया था कि कोरोना का दौर जनसंख्या में उछाल की बजाय गिरावट का कारण बनेगा.
इस सर्वे में कहा गया था कि यूरोपीय देश इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और ब्रिटेन में 18-34 साल की उम्र के 50 से 60 फीसदी युवाओं ने परिवार आगे बढ़ाने की योजना को एक साल तक के लिए टालने की बात कही थी.
फ्रांस और जर्मनी में 50 फीसदी युवा दंपतियों ने कहा था कि वे महामारी के कारण बच्चे की योजना को टाल रहे हैं. ब्रिटेन में 58 फीसदी ने कहा कि वे परिवार आगे बढ़ाने के बारे में फिलहाल सोचेंगे भी नहीं. इटली में 38 फीसदी और स्पेन में 50 फीसदी से ज्यादा युवाओं ने कहा कि उनकी आर्थिक और मानसिक स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि वे बच्चे का ख्याल रख भी पाएंगे. सिर्फ 23 फीसदी ने इससे अंतर न पड़ने की बात कही थी.
अमेरिका के जनगणना ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 से 2020 के बीच अमेरिका की आबादी में पिछले 120 वर्षों में सबसे कम वृद्धि हुई है. अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि यह देश में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या को दर्शाता है. ब्रुकिंग इंस्टीट्यूशन मेट्रोपॉलिटन पॉलिसी प्रोग्राम से जुड़े शोधकर्ता विलियम फ्रे ने कहा है कि जनसंख्या वृद्धि दर में कमी दर्शाती है कि कोरोना ने हमें किस हद तक प्रभावित किया है. फ्रे ने यह भी कहा कि ‘मेरी नजर में यह पहली झलक है कि हम कहां जा रहे हैं, क्योंकि जनसंख्या की दर कम हुई है. आंकड़े बता रहे हैं कि कोरोना का जनसंख्या वृद्धि दर पर प्रभाव पड़ा है’
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