भारत के 72वें गणतंत्र दिवस के मौके पर मंगलवार को दिल्ली में प्रदर्शनकारी किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई जगह झड़प हुई. इस बीच, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए आंसू गैस छोड़ी और कई जगह लाठी-चार्ज भी किया, मगर बहुत से प्रदर्शनकारी रैली का तय रूट तोड़कर लाल किले तक पहुंच गए. बता दें कि केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे कई किसान नेताओं ने हिंसक प्रदर्शनकारियों से खुद को अलग किया है.
ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने विस्तृत तरीके से कवर किया है. चलिए, कुछ बड़े अंतरराष्ट्रीय अखबारों और मीडिया संस्थानों की रिपोर्टिंग के एक हिस्से पर नजर दौड़ाते हैं:
'नाराज किसान दिल्ली की सड़कों पर उतरे, प्रदर्शन हुआ हिंसक'
अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि हजारों प्रदर्शनकारी किसानों ने मंगलवार को अपने ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में आकर बैरिकेड्स को हटा दिया और उन सरकारी फोर्सेज को चुनौती दी, जिन्होंने राजधानी में स्थिति को काबू में करने के लिए आंसू गैस छोड़ी और लाठी-चार्ज किया.
अखबार ने लिखा है कि यह उस शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दो महीनों में सबसे ज्यादा हिंसक पल था, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की अभूतपूर्व तरीके से परीक्षा ली है, जिससे मजबूर होकर देश के कृषि क्षेत्र की कायापलट के इरादे से नए बाजार-अनुकूल कानूनों पर नाराज किसानों को रियायत देने की पेशकश की गई थी. लेकिन किसानों ने जोर देकर कहा है कि उन्हें इन कानूनों के रद्द होने के अलावा कुछ और मंजूर नहीं है.
'वो प्रदर्शन जिसने कम्युनिटी को मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया है'
बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के कृषि सुधारों के खिलाफ एक रैली मंगलवार को हिंसक हो गई, जब प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ दिए और वे दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के परिसर में पहुंच गए. उसने लिखा है कि बहुत से प्रदर्शकारी तय रूट को बदलकर आगे बढ़ गए और उनकी पुलिस के साथ झड़प हो गई. एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई, जबकि 80 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए.
रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार का कहना है कि जिन सुधारों के चलते विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, वो कृषि क्षेत्र को उदार बनाएंगे, लेकिन किसानों का कहना है कि वे अपनी आय खो देंगे.
इसके आगे लिखा गया है कि किसानों के नेतृत्व में यह भारत के सबसे लंबे प्रदर्शनों में से एक है, जिसने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ कम्युनिटी को खड़ा कर दिया है.
'सरकार के लिए चुनौती बनकर दिल्ली में घुसे नाराज किसान'
अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि भारत की राजधानी में मंगलवार को किसानों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं, जब देश के नेतृत्व के लिए एक नई चुनौती बनकर ट्रैक्टरों पर दिल्ली में प्रदर्शनकारियों की एक लहर आ गई.
अखबार ने लिखा है कि इस अभूतपूर्व रैली का मकसद प्रदर्शनकारी किसानों की ओर से अपनी ताकत दिखाना था, जिन्होंने नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए शहर की सीमाओं पर दो महीने बिताए हैं, उनका मानना है कि ये कानून उनकी आजीविका के लिए खतरा हैं.
इसके अलावा उसने लिखा है कि यह प्रदर्शन तब हिंसक हो गया, जब कुछ किसान पुलिस की ओर से मंजूर किए गए रूट से अलग चले गए, उन्होंने शहर के केंद्र की ओर अपना रास्ता तय किया और वे 17वीं शताब्दी में बनाए गए दिल्ली के प्रसिद्ध लाल किले की प्राचीर पर चढ़ गए.
'PM मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक'
पाकिस्तानी अखबार डॉन ने लिखा है कि कृषि सुधारों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हजारों भारतीय किसानों ने मंगलवार को राजधानी में ऐतिहासिक लाल किला परिसर में प्रवेश करने के लिए बैरिकेड्स को तोड़ दिया और पुलिस के साथ झड़प के बाद झंडे फहराए, पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस छोड़ी थी.
डॉन ने लिखा है कि ये किसान उन कानूनों से नाखुश हैं, जिन्हें लेकर उनका कहना है कि इन कानूनों से निजी खरीदारों को ज्यादा फायदा होगा. अखबार ने लिखा है कि ये किसान करीब दो महीनों से दिल्ली के बाहर डेरा डाले हुए हैं, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 में सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मिली है.
'उस लाल किले तक पहुंचे प्रदर्शनकारी, जहां 15 अगस्त को तिरंगा फहराते हैं PM'
अल जजीरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के लिए हजारों भारतीय किसान राष्ट्रीय राजधानी में मुगल-कालीन लाल किला के परिसर में घुस गए, यह प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें कम से कम एक शख्स की मौत हुई है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि किसान दो महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से विवादित कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
इसके अलावा कहा गया है कि गणतंत्र दिवस की सैन्य परेड के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ते हुए, प्रदर्शनकारियों ने लाल किले में प्रवेश किया, जहां मुख्य रूप से सिख किसानों ने एक धार्मिक झंडा भी लहराया. यह वही लाल किला है कि जहां हर साल भारतीय प्रधानमंत्री 15 अगस्त को भारतीय तिरंगा फहराते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)