केपी ओली के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद नेपाल में शुरू हुई राजनीतिक उठापठक अब सामान्य हो रही है. माओवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड को नया प्रधानमंत्री चुन लिया गया है.
प्रधानमंत्री बनने के लिए प्रचंड ने मधेशी पार्टियों और अन्य विपक्षी दलों से 3 सूत्रीय गठबंधन किया है. आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के सफरनामे से जुड़ी खास बातें...
क्यों पड़ा पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' नाम?
एक शिक्षक ने प्रचंड को पुष्प कमल नाम दिया था. यह नाम उनके सौम्य तरीकों के चलते दिया गया था. वहीं प्रचंड नाम गुरिल्ला युद्ध के दौरान पड़ा.
61 साल के प्रचंड ने 1996 से 2006 तक गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व किया था.
माओत्से तुंग से मिली प्रेरणा !
कहा जाता है कि चीनी नेता माओ के चित्र को देखने के बाद प्रचंड में माओवादियों के प्रति आकर्षण पैदा हुआ. हालांकि अब प्रचंड कठोर माओवाद छोड़ चुके हैं.
प्रचंड 1979 में राजनीति में आए. 1989 में वे कम्युनिस्ट पार्टी अॉफ नेपाल (मशाल) के महासचिव बने. 1996 तक वो नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक बन चुके थे.
एग्रीकल्चर विभाग में की थी पहली नौकरी
प्रचंड ने इंस्टीट्यूट अॉफ एग्रीकल्चर एंड एनिमल साइंस से डिप्लोमा किया है. बाद में अमेरिका द्वारा प्रायोजित विकास प्रोजेक्ट में नौकरी भी की.
...लेकिन अमेरिका ने नहीं हटाया आतंकी होने का तमगा !
प्रचंड के नेतृत्व में माओवादियों ने 2006 में हथियार डाले. इसके बाद 2008 में वो चुनाव भी जीत गए. लेकिन मजे की बात यह है कि माओवादी नेपाल में सरकार बना चुके थे और अमेरिकी सरकार ने उन्हें अभी भी आतंकवादी समूहों की लिस्ट में ही रखा था.
2009 में नेपाली सेना प्रमुख रुकमांगुड़ कटवाल को हटाने के मुद्दे पर राष्ट्रपति रामबरन यादव से तकरार हुई थी, जिसके कुछ समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था.
भारत विरोधी हैं प्रचंड ?
प्रचंड को चीन का दोस्त माना जाता है. 2008 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत से पहले उन्होंने चीन की यात्रा की थी. प्रचंड भारत की यात्रा करने के पहले हमेशा चीन की यात्रा करते हैं.
प्रचंड ने 2015 में नेपाल में आए भूकंप के बाद भारतीय प्रयासों की आलोचना की थी. उनके मुताबिक, ऐसा करने से देश की सुरक्षा-व्यवस्था को खतरा बढ़ता है
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