एंगेला मर्केल एक बार फिर इतिहास दोहरा चुकी हैं. वह जर्मनी के संघीय चुनाव में जीत दर्ज कर चौथी बार देश की चांसलर बनने जा रही हैं.
हालांकि मर्केल की यह जीत उतनी आसान नहीं रही. इस बार शरणार्थी संकट, बेरोजगारी और हिचकोले खाती देश की अर्थव्यवस्था जैसे कुछ ऐसे मुद्दे थे, जो मर्केल की उम्मीदों पर पानी फेर सकते थे. लेकिन मर्केल ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व के दम पर यह कड़ी परीक्षा पास कर ली.
एंगेला की पर्सनैलिटी है बेमिसाल
एंगेला दुनिया की एकमात्र ऐसी महिला नेता हैं, जो अपने बूते परिवर्तन लाने का माद्दा रखती हैं. वह कई मायनों में दुनिया के अगुवा पुरुष नेताओं को भी पीछे छोड़ देती हैं. उन्हें जमीन से जुड़ी हुई नेता के तौर पर देखा जाता है, जो हर चीज पर कड़ा होमवर्क करती हैं.
एंगेला के व्यक्तित्व के बारे में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर हर्ष पंत कहते हैं,
एंगेला मर्केल की गिनती उन गिने-चुने नेताओं में की जाती है, जिनके बिना कोई भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अधूरा माना जाता है. उनका हर मुद्दे पर अपना रुख है, जिस पर वह अडिग रहती हैं.
एंगेला को राजनीतिक गुर विरासत में मिले हैं. उनकी मां सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य थीं, जो महिलाओं के मुद्दे पर काफी मुखर थीं. यही गुर एंगेला में भी हैं. वह महिलाओं की समस्याओं को कभी नजरअंदाज नहीं करतीं और महिला वर्ग में उनकी अच्छी पैठ होने का यही कारण है.
एंगेला साल 2000 से क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) पार्टी से जुड़ी थीं. वे 2005 में देश की पहली महिला चांसलर बनीं. उन्होंने साल 2013 में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी पर फोन टेप करने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी. वह यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने यूरोपीय सम्मेलन में अमेरिका पर तंज कसते हुए कहा था, "दोस्तों में जासूसी कभी स्वीकार नहीं की जाती."
एंगेला की सीडीयू और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) पार्टी के गठबंधन को लगभग 34 फीसदी वोट मिले हैं. हालांकि एंगेला की पार्टी का जनाधार पिछले चुनाव की तुलना में घटा है.
फैसले से डिगना एंगेला की फितरत नहीं
जनाधार घटने के सवाल पर प्रोफेसर पंत कहते हैं, "एंगेला असल मायने में आयरन लेडी हैं. उन्होंने दबना कभी सीखा ही नहीं, चाहे सामने अमेरिका ही क्यों न हो. शरणार्थी संकट पर उनका अडिग रुख भौंहे फैलाने वाला था. शरणार्थी मुद्दे पर उनके फैसले से जनता के एक बड़े वर्ग में रोष था, लेकिन इस नाराजगी के बावजूद वह अपने फैसले से डिगीं नहीं."
वह कहते हैं कि जनाधार घटने के बावजूद एंगेला का जादू एक बार फिर चला है. वह इतनी असरदार नेता हैं कि उन्होंने देश की राजनीति में किसी भी दमदार नेता को उभरने का मौका ही नहीं दिया."
एंगेला के व्यक्तित्व को करीब से समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि 'फोर्ब्स' पत्रिका ने उन्हें दो बार दुनिया की दूसरी सबसे प्रभावशाली शख्स का तमगा दिया है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि आमतौर पर 'लीडर ऑफ द फ्री वर्ल्ड' के नाम से लोकप्रिय एंगेला मर्केल राजनीति में आने से पहले वैज्ञानिक थीं. इस पर चुटकी लेते हुए पंत कहते हैं, "वैज्ञानिक होने के इसी गुण की वजह से वह हर मुद्दे की तह तक जाने और उसका समाधान खोजने की आदी हैं."
(IANS से)
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