विश्व के तमाम लोकतांत्रिक देशों में आमतौर पर गठबंधन सरकारों को सरकार का अस्थिर रूप और विकास के प्रतिकूल माना जाता है. लेकिन विश्व युद्धों की समाप्ति के बाद से लेकर हाल ही में हुए आम चुनाव तक, एक अपवाद छोड़ जर्मनी (Germany) ने सिर्फ गठबंधन सरकारों को ही देखा है .
जर्मन चांसलर के रूप में एंजेला मर्केल के 16 साल के कार्यकाल के बाद हाल ही में चुनाव हुए हैं. 299 सीटों वाले इस आम चुनाव में हर सीट के नतीजे भी घोषित कर दिए गए हैं. इसमें SPD को 206 , CDU/CSU को 196 , ग्रीन पार्टी को 118 जबकि FDP को 92, AfD को 83 और लिंक पार्टी को 39 सीटों पर जीत मिली है.
यानी एक बार फिर कोई भी पार्टी सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत के जादुई आंकड़े (368) के आसपास भी नहीं है. चुनाव परिणाम और पार्टियों के बीच हो रही बातचीत देखते हुए लगता है कि सरकार अंततः सोशल डेमोक्रेट पार्टी के नेता ओलाफ स्कोल्ज के नेतृत्व में बनेगी.
सवाल है कि जर्मनी की जनता किसी एक पार्टी के हाथ में पूरी तरह सत्ता क्यों नहीं सौंपती ? क्या यह जर्मन जनता की उस सोच के बारे में कुछ बताता है कि वो अपने नेताओं को “कल्ट फिगर” में बदलने के खिलाफ हैं ? क्या जर्मनी ने विश्व युद्धों से सीख ली है जहां उसने हिटलर को एक “कल्ट फिगर” बनाने की गलती की थी?
जर्मनी में गठबंधन सरकारों का इतिहास
1919 में वाइमर गणराज्य (पहला लोकतांत्रिक जर्मन राज्य) की शुरुआत से 1933 में हिटलर के सत्ता में आने से कुछ समय पहले तक, जर्मनी के वाइमर गणराज्य में सभी सरकारें गठबंधन वाली थीं.
1949 में स्थापित जर्मनी का संघीय गणराज्य भी इसी परंपरा को जारी रखे हुए है. उस समय से सभी जर्मन संघीय सरकारें, एक अपवाद (1957 से 1961 के बीच) के अलावा गठबंधन में बनी हैं.
(1949-1957)- गठबंधन सरकार- CDU/CSU - FDP - DP
(1961-1966) - गठबंधन सरकार - CDU/CSU - FDP
(1966-1969) -गठबंधन सरकार - CDU/CSU - SPD
(1969-1982) - गठबंधन सरकार - SPD - FDP
(1982-1998) - गठबंधन सरकार - CDU/CSU - FDP
(1998-2005) - गठबंधन सरकार - SPD - Green Party
(2005-2009) - गठबंधन सरकार - CDU/CSU - SPD
(2009-2013)- - गठबंधन सरकार - CDU/CSU - FDP
(2013-2021) - गठबंधन सरकार - CDU/CSU - SPD
क्या “एक और हिटलर” बनाने से डरती है जर्मन जनता ?
14 सितंबर, 1930 को एडॉल्फ हिटलर के नेतृत्व में नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी ने 60 लाख से अधिक वोटों और सौ से अधिक सीटें जीतकर अपनी पहली राष्ट्रीय जीत हासिल की थी. नेशनल सोशलिस्ट की यह सफलता मुख्य रूप से हिटलर के द्वारा जर्मन मध्यम वर्ग की चिंताओं और दबी महत्वाकांक्षाओं को वोट में बदलने की क्षमता से मिली थी.
1933 में नाजी पार्टी द्वारा चुनावी जीत की एक श्रृंखला के बाद एडॉल्फ हिटलर को जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया गया था. अप्रैल 1945 में आत्महत्या कर अपनी मृत्यु तक उसने पूरी तरह से जर्मनी पर शासन किया और पूरी तरह उसके हाथ में सत्ता सौंपने का अंजाम पूरी दुनिया और मानवता ने भुगता.
युद्ध के दौरान हिटलर के सैन्य बलों ने 11 मिलियन लोगों को मार डाला, जिन्हें उसने हीन या अवांछनीय समझा - उनमें अधिकतर यहूदी शामिल थे.
हिटलर के कर्मों की सजा आज भी जर्मनी भुगत रहा है और कई बार वहां के राष्ट्राध्यक्षों ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इसके लिए माफी मांगी है. क्या किसी एक दल या नेता को पूर्ण बहुमत न देने के पीछे अपनी उसी गलती से ली गयी सीख है ?
भारत में है 'फैन भक्ति'
भारत के लिए गठबंधन सरकारों का यह अनुभव जर्मनी की अपेक्षा काफी नया है और हमारी जनता ने अपने नेताओं को “कल्ट फिगर” बनाने में हिचक नहीं दिखाई है- चाहे जनता को उन्हीं नेताओं के द्वारा कई बार घोषित और कई बार अघोषित आपातकाल का सामना ही क्यों न करना पड़े.
विद्वान एम. माधव प्रसाद ने इस राजनीतिक कल्चर को 'फैन भक्ति' कहा है. डॉ. प्रसाद का मानना है कि 'फैन भक्ति' उन संस्कृतियों में फलता-फूलता है जहां राजनीति लोगों को सार्थक शक्ति प्रदान करने में विफल रहती है. भारत के लोग इस प्रकार “एक देवता” के सामने “भक्त” के रूप में सिमट कर रह जाते हैं और उपकार के लिए उसकी याचना करते हैं.
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