कहते हैं कि मुसलमानों के लिए हज पर जाना सबसे बड़ी कामयाबी होती है. भारत का ज्यादातर मुसलमान अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा जमा कर हज पर जाता है. हज का महीना शुरू हो चुका है. लाखों मुसलमान दुनिया के अलग-अलग देशों से सऊदी अरब पहुंच रहे हैं. ऐसे में हिन्दुस्तानी मुसलमान भी हज के लिए जा रहे हैं. ऐसे में हम आपको हज पर जाने से जुड़ी हर जानकारी दे रहे हैं.
28 अगस्त को भारत से आखिरी फ्लाइट हज के लिए रवाना होगी. इस साल 30 अगस्त से हज शुरू हो रहा है.
इस्लाम में पांच ऐसे पिलर या फर्ज हैं, जिनके आधार पर इस धर्म की रूप-रेखा तैयार हुई है. इसमें से एक पिलर हज भी है.
बाकी चार हैं-
- तौहीद या शहादा- जिस का अर्थ है सिर्फ ‘अल्लाह’ पर विश्वास करना, कि अल्लाह एक है और मुहम्मद साहब अल्लाह के भेजे गए पैगम्बर हैं.
- नमाज- दिन में पांच वक्त नमाज मुसलमानों पर अनिवार्य है
- रोजा- रमजान के महीने में सूरज निकलने से लेकर सूरज के डूबने तक बिना खाये-पिए रहना.
- जकात- कुरान में लिखा है कि हर मुसलमान को अपनी सालाना आय का 2.5% भाग दान करना चाहिए, जिसे जकात कहा जाता है.
ऐसे में ये जानना जरूरी है कि हज पर जाने का प्रोसेस क्या है.
हज पर जाने के लिए उम्र की ऐसी कोई सीमा नहीं है. बच्चा, बूढ़ा, जवान, औरत, मर्द सब जा सकते हैं. लेकिन बच्चे और औरतें बिना किसी मेहरम, मतलब गार्जियन के नहीं जा सकते हैं.
भारत से हज पर जाने के लिए दो रास्ते
हज के लिए सऊदी अरब हर देश का कोटा तैयार करता है. मतलब कोटे के मुताबिक, एक देश से कितने लोग हज पर जा सकते हैं ये तय होता है.
भारत से हज पर जाने के लिए दो रास्ते होते हैं. एक सरकारी कोटा, दूसरा प्राइवेट. साल 2017 में भारत से 1,70,025 लोगों के जाने की परमिशन मिली है, जिसमें से 1,25,025 लोग सरकारी कोटे से जा रहे हैं. तो बाकी 45,000 लोग प्राइवेट कोटे से ट्रेवल एजेंट की मदद से हज पर जा रहे हैं.
हज पर जाने के लिए एक हज कमिटी ऑफ इंडिया के जरिए एक फॉर्म भरना होता है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में हज के लिए कुल 448,268 लोगों ने फॉर्म भरा था, जिसमें सरकारी कोटे से 1,25,025 लोगों के फॉर्म को सेलेक्ट किया गया. ये सिलेक्शन लॉटरी सिस्टम से किया जाता है. फॉर्म सेलेक्ट होने के बाद हज की तय फीस देनी होती है.
अब बात हज पर जाने के खर्च की
भारत में सरकारी कोटे से हज पर जाने के लिए दो केटेगरी है. एक ग्रीन केटेगरी और दूसरा अज़ीज़िया. ये दोनों केटेगरी मक्का में काबा या ये कहें कि मस्जिद-ए-हरम से दूरी के आधार पर बनाई गई है. ग्रीन केटेगरी मस्जिद-ए-हरम से नजदीक है इसलिए इसकी फीस ज्यादा होती है.
इस साल भारत सरकार ने ग्रीन कैटेगरी के लिए लगभग 2,39,600 रुपये तय किए हैं, वहीं अज़ीज़िया कैटेगरी के लिए ये 2,06,200 रुपये हैं. वहीं वहां खाने-पीने का खर्च हज पर जाने वालों को खुद उठाना पड़ता है.
हालांकि सरकार हज यात्रियों की दी हुई फीस में से ही बहुत मामूली पैसे उन्हें खर्च के लिए देती है. साथ ही वहां जानवरों की कुर्बानी के लिए भी अलग से 7 से 8 हजार रुपया देना होता है.
साल 2016 में ग्रीन कैटेगरी की फीस 2,19,000 रुपये थी और अज़ीज़िया कैटेगरी की फीस 1,85,000 रुपये थी.
सरकारी कोटे से हज पर जाने वालों का करीब 40 से 45 दिन का पैकेज होता है. मतलब सरकारी कोटे से जाने वाले लोग 40 से 45 दिन मक्का और मदीना में रुकते हैं.
प्राइवेट कोटे की फीस रहने के स्टैंडर्ड पर निर्भर करता है
प्राइवेट ट्रेवल एजेंट के जरिए हज पर जाने के लिए अलग-अलग ट्रेवल एजेंट अलग-अलग चार्ज करते हैं. प्राइवेट कोटे से 3 लाख से साढ़े चार लाख रुपये तक का खर्च आता है. यहां होटल के क्वॉलिटी और बाकी फैसिलिटी के आधार पर चार्ज किया जाता है.
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