साल 2020 कई अहम घटनाओं के लिए याद रखा जाएगा, इसमें एक बड़ी घटना भारत-चीन सीमा विवाद या गलवान घाटी की रक्तरंजित घटना भी है. इस घटना के बाद से भारत-चीन के रिश्ते पर एक बार फिर बड़ी दरार आ गई है. अब यह देखना बहुत अहम होगा कि आने वाला साल एशिया के दो शक्तिशाली देशों के रिश्ते को क्या रंग देता है.
2021 भारत और चीन के बीच राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होगा.
रिश्ते सुधरने में लगेगा समय, भारत शांति का पक्षधर
हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लॉवी इंस्टीट्यूट के ऑनलाइन सत्र को संबोधित करते हुये कहा है कि सीमा पर अपनी मूवमेंट को लेकर चीन कइ अलग-अलग तरह की सफाई दे चुका है. इससे दोनों देशों के संबंधों पर खराब असर हुआ है. हमारे रिश्ते पिछले 30-40 साल के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. अब हमारे सामने सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कैसे दोनों देशों के बीच बिगड़े रिश्तों को पटरी पर लाया जाये.
एस. जयशंकर ने यह भी कहा कि हम सीमा पर शांति और सौहार्द्र बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि हमारे बीच जैसे भी रिश्ते बचे हैं, वह आगे बढ़ते रहें. बॉर्डर पर हमारे सामने ऐसे हालात नहीं हैं, जिसके साथ हम आगे बढ़ सकते हों.
भारतीय सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान के अनुसार भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच लद्दाख की गलवान घाटी में जून में हुई झड़प के बाद विश्वास खत्म हो गया. विश्वास को फिर से बनने में समय लगेगा.
“आत्मनिर्भर भारत” से कम नहीं होगी चीन पर निर्भरता
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को आगे बढ़ाने के लिये और निर्यात में कमी करने के लिये आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है, लेकिन चीन के आंकड़ों के अनुसार, इस साल त्योहारी माह अक्टूबर में भारत ने चीन से पिछले साल इसी माह की तुलना में अधिक सामान आयात किया. यानी सरकार की आत्मनिर्भरता की नीति अब तक असरदार साबित नहीं हो सकी है.
अभी भी अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स साइट के जरिए भारतीय ग्राहक बहुतायत में मेड इन चाइना उत्पादों की खरीदी कर रहा है। यह खरीदी आगे भी जारी रहने की उम्मीद है. इस तरह 2021 में भी चीनी उत्पादों के आगे आत्मनिर्भर मंत्र काम नहीं करेगा.
भारत के कई उद्योग चीन से आयातित सामानों पर निर्भर हैं. कच्चा माल और मटेरियल की आपूर्ति गड़बड़ाने से भारत में स्टील, ऑयल एंड गैस, फार्मा, ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेब्ल्स, आईटी सर्विस और केमिकल सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. भारत मोबाइल हैंडसेट, टीवी सेट और कई अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के मामले में भी चीन पर निर्भर है. फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसीडेंट विरेन शाह के मुताबिक चाइनीज सामानों का भारत में बायकॉट लगभग असंभव है.
तनातनी के माहौल में भारत-चीन के बीच बढ़ा व्यापार, 2021 में भी बढ़ने की संभावना
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और चीन के बीच पिछले 11 महीने में व्यापार लगभग 78 अरब अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि साल 2019 में यह आंकड़ा 84.4 अरब डॉलर का रहा था.
बीबीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन का सरकारी डेटा दर्शाता है कि चीन के निर्यात में नवंबर में 21.1% की वृद्धि हुई. रॉयटर्स के अनुसार, फरवरी 2018 के बाद से यह सबसे तेज वृद्धि है. चीनी निर्यात में आयी यह वृद्धि अक्टूबर की तुलना में लगभग दोगुनी है.
वैश्विक स्तर की आर्थिक सुस्ती और महामारी के प्रभाव के बावजूद, चीन ने नवंबर महीने में अधिक निर्यात किया है. यह लगभग 268 अरब डॉलर का रहा.
पिछले महीने ही चीन भारत से चावल का आयात करने के लिए तैयार हुआ है. विगत तीन दशकों में ऐसा पहली बार है, जब चीन भारत से चावल आयात करने वाला है. ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चावल का सौदा एक व्यावसायिक कदम था, क्योंकि यह घरेलू समकक्षों की तुलना में सस्ता था. चावल निर्यातकों के मुताबिक चीन चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है और भारत सबसे बड़ा निर्यातक देश. राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के मुताबिक एक लाख टन चावल की आपूर्ति के बाद आगे भी चीन से आर्डर मिलना जारी रह सकता है.
एक ओर भारत चीन के निवेश को लेकर सतर्कता बरत रहा है तो वहीं दूसरी ओर चीन भारत से जमकर स्टील खरीद रहा है. रॉयटर्स के अनुसार ऐसा कम कीमत के कारण हो रहा है.
अमेरिका में हुए बदलाव का भारत पर असर
अमेरिका को जो बाइडेन के तौर पर अब एक नया राष्ट्रपति मिल गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नए राष्ट्रपति के आने से भारत-चीन पर प्रभाव पड़ेगा? नई सरकार का दोनों देशों के प्रति क्या रुख रहेगा?
बाइडेन ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि चीन जिस प्रकार से काम कर रहा है, इसके लिए वह उसे दंडित करना चाहते हैं.
अमेरिका के संभावित विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी गठबंधन को कमजोर कर चीन की महत्वपूर्ण रणनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद की और दुनिया में शून्यता छोड़ी ताकि चीन उसे भर सके. ब्लिंकेन ने कहा है कि हमारी (भारत-अमेरिका) एक समान चुनौती, तेजी से मुखर होते चीन से निपटने की है. इसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के प्रति उसकी आक्रामकता शामिल है. चीन अपनी आर्थिक ताकत के दम पर दूसरों को दबाना चाहता है. वह अपने हितों का विस्तार करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों को नजरअंदाज कर रहा है.
ब्लिंकेन ने कहा है कि राष्ट्रपति के तौर पर बाइडेन लोकतंत्र को नवीनकृत करने के लिए काम करेंगे. साथ ही भारत जैसे करीबी साझेदारों के साथ काम करेंगे. चीन समेत कोई भी देश अपने पड़ोसियों को धमका नहीं सकता है. बाइडेन के प्रशासन में हम चाहेंगे कि भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भूमिका अदा करे और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को सदस्यता दिलाने में मदद करेंगे.
ब्लिंकेन ने कहा कि हम भारत की रक्षा को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करेंगे और आतंकवाद निरोधक साझेदार के रूप में उसकी क्षमताओं को बढ़ाएंगे. बाइडन प्रशासन दक्षिण एशिया में आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा.
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