पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार गिर गई है. अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 174 वोट पड़े. वोटिंग से पहले नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद अयाज सादिक ने आगे की कार्यवाही शुरू की. ऐसे में समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर वह कौन सा ऐसा टर्निंग पॉइंट था जिसकी वजह से इमरान को आज इस स्थिति का सामना करना पड़ रह है?
ISI प्रमुख को लेकर सेना से हुई तकरार, इमरान को मिली चुनावी हार
ऐसा कहा जाता है कि इमरान खान को प्रधानमंत्री की गद्दी तक पहुंचाने में सेना का अहम हाथ था. पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियां लगातार आरोप लगाती रही हैं कि इमरान को जीत दिलाने और फिर उनकी सरकार बनाने में सेना की अहम भूमिका रही है. कई विश्लेषकों का मानता है कि सेना और इमरान के बीच पिछले साल अक्टूबर (2021) के बाद से रिश्ते खराब होना शुरू हो गए थे. तब इमरान ने पाकिस्तान की ताकतवर खुफिया एजेंसी इंटर स्टेट इंटेलिजेंस यानी आईएसआई ISI के नए चीफ की नियुक्ति पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था. इमरान खान इस पद पर अपने वफादार फैज हमीद को ही कायम रखना चाहते थे, जबकि सेना प्रोटोकॉल के तहत इस पद के लिए लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम की नियुक्ति के पक्ष में थी.
इमरान खान की ओर से ISI के नए चीफ की नियुक्ति पर फैसले में देरी की गई जिसे सेना ने अपने अपमान के तौर पर देखा, लेकिन वह शांत रही. इसके जवाब में सेना ने खैबर पख्तूनख्वा के चुनाव में अपनी भूमिका अदा की. जिसका असर यह हुआ कि पिछले साल के आखिरी में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हुए स्थानीय निकाय चुनाव के पहले चरण में पार्टी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था. इमरान की पार्टी 2013 से ही इस प्रांत पर शासन करती रही है. फिर भी इस चुनाव में उसे प्रांत के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण शहरों में हार का मुंह देखना पड़ा था.
इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की खैबर पख्तूनख्वा के स्थानीय चुनावों में हार के बाद से यह चर्चा जोरों पर रही कि सेना और इमरान के बीच चल रही तकरार की वजह से पार्टी को हार मिली. सिंगापुर पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक खैबर पख्तूनख्वा में हार के पीछे अन्य वजहों के साथ-साथ सेना से बिगड़ते संबंध भी एक वजह है. इस हार के बाद इमरान खान ने बौखलाहट में आकर पीटीआई की सभी राजनीतिक इकाईयों को भंग कर दिया था.
सहयोगियों का साथ छोड़ना, विपक्ष का एकजुट होना; इमरान द्वारा इन सबको अनदेखा करना
इमरान खान नया पाकिस्तान का वादा करके सत्ता में आए थे लेकिन उनके काम से ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला था. जिसकी वजह से जहां एक ओर विपक्ष उन्हें जमकर घेरता रहता था. कोविड में इमरान खान सरकार ने जिस तरीके बेहुदा प्रबंधन किया उससे पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों और जनता ने मोर्चा खाेलते हुए विरोध प्रदर्शन किया लेकिन पाकिस्तान के पीएम इमरान खान इन सबको अनदेखा करते गए. वे अपने विरोधियों के लिए कहते थे कि इन चोरों, डाकुओं और देश का खजाना लूटने वालों से मैं क्या बात करूं. राजनीतिक विरोधियों को तरह-तरह के नामों से संबोधित करते थे. नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी को 'चोर' और 'डाकू', फजल-उर-रहमान को डीजल, बिलावल भुट्टो जरदारी को टांगे कांपने वाला और मरियम नवाज को मरियम बीबी कहते हुए उनका मजाक उड़ाते थे वे विरोधियों को गंभीरता से नहीं लेते थे.
पीएम इमरान नये पाकिस्तान की विफलताओं का ठीकरा कोरोना महामारी पर फोड़ रहे थे. जबकि उन्होंने बढ़ती बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई और विदेशी कर्ज के लिए कोई खास उपाय नहीं किए. जिसकी वजह से पीओके से लेकर सिंध तक जनाक्रोश देखने को मिला. पीएम इमरान द्वारा बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां राज्य बनाने के विरोध में वहां की सड़कों पर लोग उतर आए थे. वहीं विदेश नीति में भी इमरान फेल रहे जिसकी वजह से दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका की पाकिस्तान की दूरियां बढ़ गई.
सितंबर-अक्टूबर 2020 के दौरान पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने इमरान को अपनी ताकत बताने के लिए एकजुट हुईं और इमरान सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी का ऐलान किया. कई विपक्षी पार्टियों ने मिलकर इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए गठबंधन किया और पाकिस्तान के अलग अलग हिस्सों में रैलियां कीं जिससे कि इमरान खान को बेनकाब किया जा सके. कराची में हुई गठबंधन रैली में 11 विपक्षी पार्टियां शामिल थीं और इन सभी पार्टियों का नेतृत्व मौलाना फजलुर रहमान ने किया था. विपक्ष के इस नए गठबंधन को पाकिस्तान डेमोक्रैटिक मूवमेंट (पीडीएम) का नाम दिया.
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी, पीएमएल-एन पार्टी की उपाध्यक्ष मरियम नवाज ने हाथ मिलाया और इमरान सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया.
पाकिस्तान की पॉलिटिक्स पर बारीक नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस ढंग से मरियम नवाज और बिलावल भुट्टो ने अन्य विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया, उससे इमरान खान के पतन की शुरूआत हो चुकी थी.
वहीं जब विपक्षी एकजुट हो रहा था तब इमरान खान के राजनीतिक सहयोगी उनसे अलग हो रहे थे. इमरान से नाखुश सहयोगियों का आरोप है कि अबतक लगभग 3.5 से अधिक समय की सरकार में इमरान खान ने सहयोगियों पर ध्यान नहीं दिया, उनकी मांगों पर कुछ नहीं किया गया. ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस (जीडीए) के अन्य तीनों प्रमुख सहयोगी एमक्यूएम, बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) और पीएमएल-क्यू उनसे नाराज थे.
मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) उनसे अलग हो गया.
जम्हूरी वतन पार्टी (जेडब्ल्यूपी) सरकार से अलग हुई.
एमक्यूएम-पी, पीएमएल-क्यू और बीएपी ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को अपना समर्थन देने की बात कही थी.
पार्टियों के अलावा इमरान की खुद की पार्टी के सांसद उनसे अलग हाे गए.
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