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हार्ट ऑफ एशिया समिट में पाकिस्‍तान के शिरकत करने को लेकर सस्‍पेंस

उरी हमले के बाद पहली बार पाक के सीनियर ऑफिशियल की हो सकती है भारत यात्रा. 

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भारत में तीन दिसंबर को होने वाली हार्ट अॉफ एशिया कॉन्‍फ्रेंस में पाकिस्तान के हिस्सा लेने की संभावना के मद्देनजर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप का बयान आया है.

विकास स्वरूप के मुताबिक, अभी पाकिस्तान की ओर से 'हार्ट अॉफ एशिया' में हिस्सा लेने संबंधी कोई अॉफिशियल जानकारी नहीं मिली है. समिट का आयोजन अमृतसर में होने जा रहा है.

सरताज अजीज ने कही थी भारत आने की बात

मीडिया रिपोर्टों में सरताज अजीज के हवाले से भारत आने संबंधी बात कही गई थी. उनके मुताबिक यह समिट भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव को कम करने का एक अच्छा मौका है.

उरी हमले के बाद भारत का दौरा करने वाले सरताज पहले सीनियर पाकिस्तानी ऑफिशियल होंगे. 18 सितंबर को हुए उरी हमले की जिम्मेदारी भारत ने पाकिस्तान द्वारा पनाह दिए गए आतंकियों पर डाली थी.

इसके बाद से ही सीमा पर दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. यह तनाव भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चरम पर पहुंच गया था. इसके बाद से सीमा पर पाकिस्तान लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है. हालांकि भारत ने इसका हर बार मजबूती से जवाब दिया है.

भारत ने किया था सार्क समिट का बहिष्कार

उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में नवंबर में होने वाली सार्क समिट में भाग लेने से मना कर दिया था. साथ ही पाकिस्तान को डिप्लोमेटिक लेवल पर अलग-थलग करने की रणनीति में भारत ने दूसरे देशों पर भी समिट का बहिष्कार करने का दवाब बनाया था.

इसके बाद बांग्लादेश, भूटान, अफगानिस्तान और श्रीलंका ने समिट में हिस्सा लेने से मना कर दिया था, जिसके बाद समिट रद्द कर दी गई थी.

अजीज ने मीडिया से बातचीत में कहा था-

भारत ने पाकिस्तान में होने वाली सार्क समिट का बहिष्कार किया था. लेकिन पाकिस्तान हार्ट अॉफ एशिया में हिस्सा लेगा जो भारत में होने वाली है.
सरताज अजीज, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार

हालांकि अभी अजीज ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि वे भारत में अपने समकक्षों से मुलाकात करेंगे या नहीं.

क्‍या है हार्ट अॉफ एशिया समिट

हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल समिट अफगानिस्तान और तुर्की की पहल पर 2011 में शुरू की गई थी. इसका उद्देश्य अफगानिस्तान में क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टीविटी का विकास है.

साथ ही इसमें क्षेत्रीय देश अफगानिस्तान में विकास और शांति को प्रोत्साहन देने के लिए चर्चा करते हैं.

अफगानिस्तान के 14 पड़ोसी और क्षेत्रीय देशों के विदेश मंत्री इसमें हिस्सा लेते हैं. इसमें चीन, तुर्की और रूस भी शामिल हैं. इसके अलावा 17 सहयोगी देश, जिनमें अमेरिका भी शामिल है, वे भी इसमें शिरकत करते हैं.

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