ADVERTISEMENTREMOVE AD

सहयोग,सुरक्षा,टूरिज्म...भारत-मालदीव के कैसे हैं संबंध? चीन के दखल ने बढ़ाई चिंता

India-Maldives Relations: साल 1966 में ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित किए.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

India-Maldives Relations: भारत और मालदीव के संबंध हमेशा से बेहद अच्छे और सौहार्दपूर्ण रहे हैं. हालांकि, पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गयी है. मालदीव में चीन के बढ़ते दखल और राष्ट्रपति मुइज्जू के चीन समर्थक रवैये से दोनों देशों के बीच दूरी बढ़ती जा रही है. बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच भारत और मालदीव के संबंध बेहतर बने रहें, ऐसे में दोनों देशों के ऐतिहासिक और आर्थिक संबंधों को समझना बेहद जरूरी हो जाता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत-मालदीव संबंध का ऐतिहासिक विकास

भारत और मालदीव का संबंध सदियों पुराना हैं. अगर इतिहास के तहखाने में जाकर देखें तो पता चलता है कि भारत के माध्यम से ही यहां बौद्ध धर्म फला-फूला. हालांकि, 12वीं शताब्दी में इसकी जगह इस्लाम ने ले ली. फिर यहां साल 1887-1965 तक ब्रिटिश हुकूमत रही. साल 1966 में ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित किए. भारत पहला देश था, जिसने मालदीव की स्वतंत्रता को मान्यता दी.

ब्रिटिश शासन के दौरान भी मालदीव आवश्यक चीजों के लिए भारत पर निर्भर था. आज दक्षिण एशिया में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाला देश मालदीव है. विदेश मंत्रालय के अनुसार, फरवरी 1974 से, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने मालदीव के विकास और समुद्री उत्पादों के निर्यात में महत्वपूर्ण सहायता की है. इसके अलावा बैंक ने लोन देकर भी लोकल उद्योग के विकास में काफी योगदान दिया है.

फिर चाहे वह 1988 में हुआ तख्तापलट हो, 2004 में आई सुनामी की त्रासदी हो, 2014 में पानी की कमी का संकट या फिर 2020 के COVID-19 संकट के दौरान वित्तीय मदद, दवाई और रसद पहुंचाने की बात हो, अलग-अलग संकटों में भारत हमेशा मालदीव के साथ खड़ा रहा.

भारत और मालदीव के बीच व्यापारिक संबंध

भारत और मालदीव ने वर्ष 1981 में एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे जो आवश्यक वस्तुओं के निर्यात का प्रावधान करता है. दोनो देशों के बीच शुरुआत छोटे लेवल पर हुई थी पर आज भारत, मालदीव का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बन कर उभरा है.

भारत सरकार के मुताबिक, दोनों देशों के बीच व्यापार साल 2021 में पहली बार 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा पार कर गया. साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंचा.

भारत मुख्य रूप से मालदीव से स्क्रैप धातुएं आयात करता है. जबकि मालदीव को भारत विभिन्न प्रकार की धातुएं, इंजीनियरिंग और औद्योगिक उत्पादों जैसे ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स, रडार उपकरण, रॉक बोल्डर, सीमेंट, चावल, मसाले, फल, सब्जियां आदि निर्यात करता है.

मालदीव के पर्यटन में भारत का योगदान

मालदीव की अर्थव्यवस्था अपने पर्यटन सेक्टर पर सबसे अधिक निर्भर है. टूरिज्म ही इसके विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange) और राजस्व (Revenue) का मुख्य सोर्स है.

मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब चौथाई हिस्सा और लगभग 70 फीसदी रोजगार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन के क्षेत्र से आता है.

हर साल भारत से लाखों की संख्या में लोग घूमने-फिरने और छुट्टियां बिताने मालदीव जाते हैं. ऐसे में पूरी दुनिया से मालदीव आने वाले कुल पर्यटकों की संख्या में सर्वाधिक संख्या भारतीयों की रहती हैं. भारत सरकार के मुताबिक,

  • 2023 में, भारत से 1.93 लाख पर्यटक (13 दिसंबर तक) मालदीव गये, जो यहां आये कुल पर्यटकों की संख्या में भारत दूसरा देश था.

  • 2022 में, 2.41 लाख पर्यटक भारत से मालदीव गये, जो यहां आये कुल पर्यटकों की संख्या में भारत पहला देश था.

  • 2021 में, 2.91 लाख पर्यटक भारत से मालदीव गये, जो यहां आये कुल पर्यटकों की संख्या में भारत पहला देश था.

मालदीव की चीन से बढ़ती नजदीकी पर भारत की चिंता

भारत-मालदीव संबंधों को तब आघात लगा जब मालदीव ने वर्ष 2017 में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर साइन किया. हाल के दिनों में मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोइज्जू के चीन समर्थक रूख ने भारत की चिंताएं और बढ़ा दी हैं.

चीन ने मालदीव में भारी निवेश किया है. उसने अपने "स्ट्रिंग ऑफ द पर्ल्स" (String of the Pearls) पहल के तहत मालदीव में बंदरगाहों, हवाई अड्डों, पुलों और अन्य महत्त्वपूर्ण अवसंरचनाओं के विकास के लिए भारी रकम दिया है.

चीन अपने कर्ज के जाल (Debt Traps) में धीर-धीरे मालदीव को उलझा रहा है, जैसा वो पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ कर चुका है. मालदीव, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में भी भागीदार बन गया है.

इन सभी परियोजनाओं से चीन हिंद महासागर क्षेत्र में अपना दबदबा स्थापित करके भारत को बैकफुट पर भेजने की कोशिश में है. चीन की महत्वाकांक्षा मालदीव में लोकतंत्र के विकास के लिये भी संभावित खतरा पैदा कर सकती है. ऐसे में भारत कभी नहीं चाहता की एक अलोकतांत्रिक देश उसका पड़ोसी हो.

भारत हिंद महासागर क्षेत्र में विशेषकर श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव जैसे देशों में चीन की बढ़ती मौजूदगी से चिंतित होता है. इन क्षेत्रों में चीन द्वारा नियंत्रित बंदरगाहों और सैन्य अड्डों के विकास को भारत रणनीतिक हितों एवं क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये एक खतरे के रूप में देखता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×