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हिंद-प्रशांत अवधारणा चीन को किनारा करने की कोशिश-रूसी विदेश मंत्री

वैश्विक सम्मेलन ‘रायसीना डायलॉग’ में को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हिंद-प्रशांत अवधारणा पर निशाना साधा

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दुनिया की राजनीति पर हो रहे भारत के वैश्विक सम्मेलन ‘रायसीना डायलॉग’ में बुधवार को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हिंद-प्रशांत अवधारणा पर निशाना साधते हुए कहा कि यह नई अवधारणा लाने की कोशिश मौजूदा संरचना में व्यवधान डालने और चीन को किनारे करने का प्रयास है.

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‘रायसीना डायलॉग’ में लावरोव ने कहा कि समानता पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था को क्रूर बल का उपयोग कर प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और ब्राजील की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का भी समर्थन किया.

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लावरोव ने हिंद-प्रशांत अवधारणा पर कहा कि अमेरिका, जापान और दूसरे देशों की तरफ से की जा रही नई हिंद-प्रशांत अवधारणा लाने की कोशिश मौजूदा संरचना को नया आकार देने का प्रयास है. 

उन्होंने कहा,

‘‘ हमें एशिया प्रशांत को हिंद प्रशांत कहने की क्या जरूरत है? जवाब स्पष्ट है, ताकि चीन को बाहर किया जा सके. शब्दावली जोड़ने वाली होनी चाहिए, विभाजनकारी नहीं. ना तो एससीओ और ना ही ब्रिक्स किसी को अलग-थलग करता है.’’

उन्होंने कहा,

जब हम हिंद-प्रशांत के पहलकर्ताओं से पूछते है कि यह एशिया प्रशांत से अलग क्यों है, तो हमें कहा जाता है कि यह अधिक लोकतांत्रिक है. हम ऐसा नहीं सोचते. यह तो छल है. हमें शब्दावली को लेकर सावधान होना चाहिए जो कि अच्छी लगती तो है पर है नहीं.
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हिंद-प्रशांत पिछले कुछ सालों में भारत की विदेश नीति का प्रमुख केन्द्र रहा है और देश इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा दे रहा है.

रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि किसी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, हम भारत की स्थिति का समर्थन करते हैं. 

रायसीना डायलॉग के पांचवें संस्करण का आयोजन विदेश मंत्रालय और ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ सम्मिलित रूप से कर रहा है. इसमें सौ से ज्यादा देशों के 700 अंतरराष्ट्रीय भागीदार हिस्सा लेंगे और इस तरह का यह सबसे बड़ा सम्मेलन है.

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मंगलवार से शुरू हुए इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 12 विदेश मंत्री हिस्सा ले रहे हैं. इनमें रूस, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, एस्तोनिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, लातविया, उज्बेकिस्तान और ईयू के विदेश मंत्री शामिल हैं.

ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ की भागीदारी का इसलिए महत्व है क्योंकि ईरान के कुद्स फोर्स के कमांडर कासीम सुलेमानी की हत्या के बाद वह इसमें हिस्सा ले रहे हैं.

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