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PM Modi का 'घर वापसी' का आह्वान लेकिन अब भारतीय वॉर जॉन में नौकरी करने को मजबूर

भारत का बेरोजगारी संकट नागरिकों को अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए युद्धग्रस्त देशों में भी काम ढूंढने के लिए मजबूर कर रहा है.

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2015 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने सभी NRIs से भारत लौटने का आह्वान किया था. उन्होंने कहा था, "हमारे पूर्वज नई संभावनाएं तलाशने के लिए विदेशों में गए थे. अब भारत में अवसर आपका इंतजार कर रहे हैं. समय बदल गया है; दुनिया भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है."

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अब लगभग एक दशक बीत गया है और अवसरों की जमीन बनना तो दूर, अब तक बाहर रह रहे भारतीय वापस नहीं लौटे हैं. इसकी बजाय, एक कड़वी सच्चाई हमारे सामने है. केवल गुजारा करने के लिए कई भारतीय अब युद्ध क्षेत्रों में पलायन करके अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं ताकी वे कुछ कमाई कर सकें.
  • 26 फरवरी को, इंडिया टुडे ने बताया कि रूसी सेना के साथ 'हेल्पर' के रूप में काम कर रहे गुजरात के 23 वर्षीय भारतीय हामिल मंगुकिया, यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के दौरान रूस में मारे गए.

  • 5 मार्च को इजरायल में एक खेत में काम करते समय 31 वर्षीय केरल के पैट निबिन मैक्सवेल की मिसाइल हमले में मौत हो गई. इसी हमले में घायल हुए दो अन्य केरलवासियों का इजरायली अस्पताल में इलाज चल रहा है.

  • 6 मार्च को, एक अलग घटना में, कथित तौर पर धोखे से रूसी सेना में भर्ती हुए हैदराबाद के मोहम्मद असफान, यूक्रेन में चल रहे संघर्ष में मारे गए थे.

संक्षेप में बताएं तो, पिछले नौ दिनों में तीन भारतीय नागरिक गोलीबारी में फंस गए और विदेशी जमीन पर मारे गए. रूस में नौकरी को लेकर चल रहे कथित घोटाले के बाद, भारत सरकार ने इसकी जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में खास अधिकारियों को तैनात किया है.

भारत के कई शहरों में जांच के बाद कथित तौर पर ऐसी भर्ती एजेंसियों की पहचान की गई है जिन्होंने नौकरी की तलाश करने वालों को धोखा दिया और झूठ बोलकर उन्हें रूस भेज दिया गया.

कई सारे भारतीय जीवनयापन के लिए काम की तलाश में हैं

सीबीआई ने कहा कि वह दिल्ली, तिरुवनंतपुरम, मुंबई, अंबाला, चंडीगढ़, मदुरै और चेन्नई में लगभग 13 जगहों पर एक साथ तलाशी ले रही है और 50 लाख रुपये से अधिक की नकदी, आपत्तिजनक दस्तावेज और लैपटॉप, मोबाइल, डेस्कटॉप, सीसीटीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बरामद कर लिए गए हैं.

सीबीआई का कहना है कि विदेश भेजे गए पीड़ितों के लगभग 35 मामले सामने आ चुके हैं और अधिक पीड़ितों की पहचान भी की जा रही है.

इस बीच, मनोरमा ऑनलाइन ने 10 मार्च को बताया कि भारत और रूस से जुड़े मानव तस्करी मामले में केरल के दो लोगों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक ने मनोरमा ऑनलाइन से दावा किया कि वह तस्कर नहीं था बल्कि एक पीड़ित था जिसे एजेंटों ने धोखा दिया था और रूस भेजा था और जब उसने रूसी सेना के लिए काम करने से इनकार कर दिया तो उसे वापस भेज दिया गया.

रूस और इजरायल में हुई त्रासदियों में, यह स्पष्ट है कि भारतीय या तो स्वेच्छा से वहां पहुंचे हैं या उन्हें झूठे नौकरी के वादे के साथ एजेंटों ने धोखा दिया और युद्ध क्षेत्र में भेज दिया. दुर्भाग्य से, ये घटनाएं इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती हैं कि कई भारतीय केवल गुजारा करने के लिए काम की तलाश में हैं और युद्धग्रस्त देशों में भी पलायन करने को तैयार हैं.

भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर गौर करने से पहले, ये जानते हैं कि जो मारे गए पीड़ितों का राज्य है वहां बेरोजगारी को लेकर क्या व्यवस्था है:

  • गुजरात में, जहां से हामिल पलायन कर गया और फरवरी में रूस में मारा गया, वहां बेरोजगारी दर खराब है. फरवरी में द वायर ने गुजरात विधानसभा रिकॉर्ड के हवाले से खबर दी थी कि दो साल में दो लाख से अधिक शिक्षित बेरोजगारों में से केवल 32 को ही सरकारी नौकरियां मिलीं.

  • तेलंगाना, जहां से मोहम्मद चले गए और मार्च में रूस में मारे गए, वहां युवा बेरोजगारी दर ऊंची है. इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले साल अक्टूबर में रिपोर्ट दी थी कि तेलंगाना में युवा बेरोजगारी दर 16.2 प्रतिशत दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय दर से अधिक है.

  • केरल में, जहां से निबिन चले गए और मार्च में इजरायल में मारे गए, वहां 15-29 आयु वर्ग के लोगों की श्रेणी में देश में सबसे अधिक बेरोजगारी है.

  • यानी जिन तीन राज्यों का यहां जिक्र है - जहां से नौकरी के इच्छुक लोग युद्ध क्षेत्रों में चले गए, वहां बेरोजगारी दर अधिक है.

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'जॉबलेस ग्रोथ', फ्रंटलाइन जॉब में गिरावट

अब, अगर हम बेरोजगारी को लेकर पूरे भारत की स्थिति पर विचार करें, तो आईआईएम और बिट्स पिलानी का एक हालिया अध्ययन चिंताजनक प्रवृत्ति पर बताता है: 2004-05 और 2017-18 के बीच भारत में आर्थिक विकास के बावजूद, भारत के नौकरी बाजार ने गति नहीं पकड़ी है. इसी का मतलब जॉबलेस ग्रोथ होता है.

अध्ययन से पता चलता है कि 1990 के दशक से रोजगार में गिरावट आई है, 2004-05 में आंशिक सुधार हुआ और उसके बाद 2011-12 तक लगभग स्थिरता ही आ गई.

"जॉबलेस ग्रोथ" की वजह से हो ये रहा है कि जब काम करने के लिए तैयार आबादी (15-64 वर्ष) बढ़ रही है लेकिन इनका एक श्रमिक के रूप में इस्तेमाल कम हो पा रहा है. अध्ययन में ये भी बताया गया कि गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरी के प्रति लोगों की अनिच्छा है लेकिन यही सेक्टर अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देने की क्षमता रखता है.

भारत में, लगभग 40 प्रतिशत वर्कफोर्स कृषि क्षेत्र में काम करता है और बाकी दो अन्य क्षेत्रों में - उद्योग और सेवा (इंडस्ट्री और सर्विस). इन दोनों में लगभग समान रूप से काम करने वालों की आबादी बंटी है. दुर्भाग्य से, पिछले 10 सालों में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के बावजूद, द वायर की रिपोर्ट है कि 2013-14 के बाद से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर औसतन 5.9 प्रतिशत रही है.

नौकरियों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है, 2022-23 में ये दर 16.4 प्रतिशत पर है, और 2016 और 2021 के बीच मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नौकरियां आधी हो गई हैं.

मेक इन इंडिया को एक दशक हो गया लेकिन वर्कफोर्स में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 2011-12 में 12.6 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 11.6 प्रतिशत हो गई है.

मेक इन इंडिया को बहुत धूमधाम से लॉन्च किया गया था और सरकार ने अपने लिए तीन प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किए:

  1. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि को 12-14 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ाना

  2. 2022 तक जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी को 25 प्रतिशत तक बढ़ाना

  3. 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 100 मिलियन नौकरियां पैदा करना

सरल शब्दों में कहें तो न तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर उम्मीद के मुताबिक बढ़ा और न ही वादे के मुताबिक रोजगार पैदा कर सका. इस बीच, आईटी, बैंकिंग और वित्त क्षेत्रों में सर्विस सेक्टर की कंपनियों ने कुछ नौकरियां पैदा कीं, जहां केवल स्किल लोगों की जरूरत थी.

इसके अतिरिक्त, ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि 2023 में नई फ्रंटलाइन नौकरियां 17 प्रतिशत घटकर 62,000 हो गईं. फ्रंटलाइन नौकरियों में ऐसे काम शामिल हैं जिसमें आपका कस्टमर या क्लाइंट से सीधे सामना होता है, जैसे सेल्स और बिजनेस डेवलपमेंट एक्सिक्यूटिव, कॉल सेंटर कर्मचारी, डिलीवरी कर्मी, मार्केटिंग अधिकारी और हाउसकीपिंग.

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भारत सरकार आंखें मूंद रही है

भारत का बेरोजगारी संकट नागरिकों को अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए युद्धग्रस्त देशों में भी काम ढूंढने के लिए मजबूर कर रहा है. इसके बावजूद भारत सरकार युद्धग्रस्त देशों में जाने वाले भारतीयों को लेकर अपनी आंखें मूंद रही हैं.

इजरायल में चल रहे संघर्ष से अवगत होने के बावजूद, भारत सरकार ने एक प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप कंपनी को इजरायल के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की भर्ती के लिए अधिकृत किया है.

इससे पहले, विदेश मंत्रालय युद्धग्रस्त देशों में श्रमिकों के प्रवास को रोकता था. भारतीयों को रोजगार के लिए यमन, अफगानिस्तान, सूडान, दक्षिण सूडान और यहां तक ​​कि इराक के कुछ हिस्सों में प्रवास करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि, रूस और इजरायल के मामले में सरकार चुप्पी साधे हुए है.

जनवरी में, मैंने एक प्रवासी को मीडिया में यह कहते हुए पढ़ा कि वह "हमास के साथ युद्ध के कारण इजरायल में खतरे से अवगत है, लेकिन हमारे राज्य (हरियाणा) में बिना नौकरी के भूख से मरने से बेहतर है कि काम करते हुए मर जाए."

(रेजिमोन कुट्टप्पन एक स्वतंत्र पत्रकार, श्रमिक प्रवासन विशेषज्ञ और अनडॉक्यूमेंटेड [पेंगुइन 2021] के लेखक हैं. यहां एक राय प्रस्तुत की गई है और ये विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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