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‘कोरोना को तबाही बनने से रोक सकते थे’- एक्सपर्ट पैनल की बड़ी बातें

पैनल की अध्यक्षता संयुक्त रुप से न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व लाइबेरियाई राष्ट्रपति कर रहे हैं.

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कोरोना वायरस महामारी को कहर ढाने और तबाही बनने से रोका जा सकता था. एक इंडिपेंडेंट पैनल ने बुधवार को ये निष्कर्ष जारी करते हुए कहा कि बिखरे और खराब समन्वय की वजह से चेतावनी को नजरंदाज कर दिया गया, जिसका खामियाजा दुनिया भुगत रही है.

द इंडिपेंडेंट पैनल फॉर पेनडेमिक प्रिपर्डनेस एंड रिस्पॉन्स (IPPPR) ने कोरोना के शुरुआत से लेकर अबतक हुए नुकसान के अलग-अलग पहलुओं पर स्टडी करने के बाद रिपोर्ट जारी किया है.

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  • रिपोर्ट का कहना है कि खराब फैसले की एक पूरी सीरीज ने कोविड-19 को इतना घातक बनाया कि 33 लाख लोगों की जान गई साथ ही ग्लोबल इकनॉमी चौपट हो गई, संस्थाएं लोगों की सुरक्षा में नाकाम रहीं.
  • IPPPR ने अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट में ये भी कहा कि साइंस पर भरोसा करने वाले नेताओं ने हेल्थ सिस्टम पर जनता के भरोसा को खत्म करके रख दिया है.
  • पैनल का मानना है कि दिसंबर, 2019 में चीन के वुहान में जब Covid 19 डिटेक्ट हुआ था, उस वक्त 'अर्जेंसी में कमी' दिखी, फरवरी, 2020 आते-आते इस महामारी ने कहर ढाने की शुरुआत कर दी, क्योंकि देश खतरा भांपने में नाकाम रहे थे.
  • इस वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए पैनल ने दुनिया के अमीर देशों को गरीब देशों के लिए अरबों वैक्सीन डोज देने की अपील की है.
  • ये भी अपील है कि दुनिया के सबसे अमीर देश महामारी से लड़ने की तैयारी कर रहे नए संगठनों को फंड दें.

रिपोर्ट क्यों और किसने तैयार की?

रिपोर्ट को तैयार करने की अपील विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने पिछले साल मई में की थी.पैनल की अध्यक्षता संयुक्त रुप से न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलेन क्लार्क और पूर्व लाइबेरियाई राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सरलीफ कर रहे हैं. जॉनसन को 2011 में नोबल पीस प्राइज भी दिया गया था.

"Covid-19: Make it the Last Pandemic" नाम की इस रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि इस तरह की महामारी को फिर कभी न होने देने से रोकने के लिए दुनिया को 'अलार्म सिस्टम' को फिर से ठीक करने की जरूरत है.

  • एलेन जॉनसन सरलीफ ने पत्रकारों से कहा- 'जिस हालात में हम आज खुद को पा रहे हैं, उसे टाला जा सकता था, ये कई नाकामियों की वजह से है, जैसे तैयारी और रिस्पॉन्स में देरी.'
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण के उभार में कई तरह की बातें देखीं गईं.' कहीं रैपिड एक्शन दिखा तो साथ ही देरी भी दिखी, हिचकिचाहट और डिनायल मोड भी देखा गया'. खराब रणनीतिक विकल्प, असमानता से निपटने की इच्छा नहीं होना और सिस्टम में को-ऑर्डिनेशन की कमी ने ऐसा 'जहरीला कॉकटेल' बना दिया कि एक महामारी पूरी मानवता के लिए तबाही बन गई.
  • महामारी के खतरे को नजरंदाज किया गया और देश इसे पूरी ताकत से निपटने के लिए तैयार नहीं दिखे.

पैनल ने WHO को भी नहीं छोड़ा

पैनल ने WHO को भी नहीं छोड़ा. रिपोर्ट में कहा गया कि WHO हालात को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न (PHEIC) के तौर पर 22 जनवरी, 2020 को घोषित कर सकता था. ये सबसे ऊपर के स्तर की चेतावनी होती है. लेकिन इसकी जगह WHO ने 8 और दिन का इंतजार किया.

क्लार्क का कहना है कि WHO ने मार्च में जाकर इसे ‘महामारी’ घोषित किया. शुरुआती आउटब्रेक के वक्त ही चीन में साफ तौर पर देरी हुई लेकिन ये देरी सिर्फ चीन में ही नहीं हर जगह हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के अमीर देशों को 92 गरीब देशों को 1 सितंबर तक 1 अरब वैक्सीन के डोज देने चाहिए और 2022 के बीच तक 2 अरब डोज. साथ ही रिपोर्ट में G7 और G20 जैसे देशों के समूहों को आगे बढ़कर फंड डोनेट करने के लिए कहा गया है.

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