क्या जल्द ही ईरान (Iran) के पास भी अपना न्यूक्लियर (Nuclear) हथियार होगा ? यह सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि ईरान के न्यूक्लियर एजेंसी के प्रमुख ने अपने सरकारी टेलीविजन को बताया है कि ईरान के पास 120 किलोग्राम से अधिक 20% इनरिच्ड यूरेनियम (Uranium) है. यह मात्रा 2015 के ईरान न्यूक्लियर डील में सहमत स्तर से काफी ऊपर है.
ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रमुख मोहम्मद एस्लामी ने कहा,
“हम 120 किलोग्राम पार कर चुके हैं..“हमारे पास उस आंकड़े से अधिक है. हमारे लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि (पश्चिमी देश) हमें तेहरान रिएक्टर में प्रयोग करने के लिए 20% इनरिच्ड फ्यूल देने वाले थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.”मोहम्मद एस्लामी
2015 न्यूक्लियर डील से कितना आगे निकल गया ईरान ?
2015 के समझौते के तहत चीन, फ्रांस, जर्मनी, UK और अमेरिका ने ईरान के खिलाफ कुछ प्रतिबंधों को हटाने पर सहमति व्यक्त की थी और बदले में तेहरान (ईरान की राजधानी) को अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम और हथियार बनाने के सपने को तिलांजलि देनी थी.
2015 के इस न्यूक्लियर डील के तहत ईरान यूरेनियम को 3.67% से अधिक इनरिच्ड (शुद्ध) नहीं बना सकता था. गौरतलब है कि परमाणु हथियारों में उपयोग के लिए 90% इनरिच्ड यूरेनियम की आवश्यकता होती है.
लेकिन जब से डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका 2018 में इस न्यूक्लियर डील से बाहर निकाला, ईरान ने अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम में तेजी लाई है और अमेरिका ने जवाब में नए प्रतिबंध लगाए.
सितंबर 2021 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने बताया कि ईरान ने यूरेनियम के अपने स्टॉक को बढ़ाया है और 2015 की डील में बताए प्रतिशत से अधिक यूरेनियम शुद्ध किया है
IAEA ने यह अनुमान लगाया गया था कि ईरान में 84.3 किलोग्राम 20% इनरिच्ड यूरेनियम था. जबकि मई में यह केवल 62.8 किलोग्राम ही था. लेकिन अब ईरान सरकार ने ही स्वीकार कर लिया है कि उसके पास 120 किलोग्राम से अधिक 20% इनरिच्ड यूरेनियम है.
क्या अमेरिका- ईरान दोनों 2015 के डील पर वापस आना चाहते हैं ?
तेहरान का कहना है कि वह अपने ऊपर लगे अमेरिकी प्रतिबंध को हटाने की मांग रहा है. वहीं वाशिंगटन का कहना है कि ईरानी परमाणु कार्यक्रम को रोकना उसके राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्राथमिकता है. इसीलिए दोनों देश 2015 के न्यूक्लियर डील को पुनर्जीवित करना चाहते हैं.
यहां तक कि शुक्रवार, 8 अक्टूबर को ईरान के विदेश मंत्री, होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने कहा कि वह आशावादी हैं कि 2015 के डील को पुनर्जीवित करने पर हो रही बातचीत आगे बढ़ेगी, बशर्ते वाशिंगटन पूरी तरह से अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करते हुए प्रतिबंध वापस ले.
लेकिन इस साल की शुरुआत से अब तक वियना में हुए छह दौर की वार्ता भी इस बहुपक्षीय समझौते को बहाल करने में विफल रही है.
2015 न्यूक्लियर डील पर वापस आना मुश्किल क्यों है ?
ईरान में रूढ़िवादी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के चुनाव जीतने ने स्थिति को और जटिल कर दिया है.
ईरान में अभी सरकार ट्रांजीशन पीरियड (संक्रमण) से गुजर रही है. पिछले हफ्ते ईरान की संसद ने इब्राहिम रायसी के कैबिनेट को मंजूरी दे दी, लेकिन पार्टियां अभी तक वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए ठोस योजना नहीं बना पाई है.
यही कारण है कि जून से वियना में कोई बातचीत नहीं हुई है और न्यूक्लियर डील ठंडे बस्ते में है. ईरान में कट्टरपंथियों का मजबूत होना और अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन का अफगानिस्तान से लेकर कोविड और इंफ्रास्ट्रक्चर बिल पास कराने में हो रही फजीहत-विश्लेषकों का कहना है कि ये बस्ता देर तक ठंडा रहने वाला है.
ईरान और अमेरिका के बीच विश्वास की कमी
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 2018 में न्यूक्लियर डील बाहर निकलने के बाद से अमेरिका ईरान पर प्रतिबंध लगा रहा है. बदले में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज गति दी है.
यहां तक कि तेहरान ने संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था (IAEA) के निरीक्षकों की अपनी न्यूक्लियर साइट तक पहुंच को भी प्रतिबंधित कर दिया है.
एक सवाल यह भी है कि क्या ईरान खुद न्यूक्लियर डील पर वापस जाना चाहेगा, यह देखते हुए ही हाल में अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद उसकी इकनॉमी पटरी पर लौटी है. विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिकी प्रतिबंधों और कोरोना वायरस महामारी के बावजूद ईरान की GDP सुधर रही है.
ईरान के लिए न्यूक्लियर डील पर लौटने का एक मतलब यह भी होगा कि उसे न केवल अपने परमाणु संवर्धन के स्तर को गिराना होगा बल्कि मौजूदा 120 किलोग्राम से अधिक 20% इनरिच्ड यूरेनियम को हटाना भी होगा. साथ ही IAEA को अपने न्यूक्लियर साइट तक खुली पहुंच भी देनी होगी.
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