आयरलैंड में गर्भपात कराने को लेकर महिलाओं को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है. 35 साल पहले आयरलैंड में अबॉर्शन यानी गर्भपात पर रोक लगाते हुए उसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था. लेकिन अब देश के 66.40 फीसदी मतलब 30 लाख लोगों ने जनमत संग्रह में वोट करके इस कानून को बदलने की राय जाहिर कर दी है.
मतलब गर्भपात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की इच्छा जाहिर कर दी है. इस जीत की खास बात ये है कि इस पूरी मुहिम के पीछे एक भारतीय महिला की कहानी है.
क्या है इस लड़ाई के पीछे का ‘भारत’ कनेक्शन
दरअसल आयरलैंड यूरोप के सबसे धार्मिक देशों में से एक है. जहां कैथोलिक मान्यताओं की वजह से गर्भपात को सही नहीं माना जाता है.
साल 2012 में भारतीय मूल की एक डेंटिस्ट सविता हलप्पनवार 17 महीने की गर्भवती थीं. लेकिन उसी दौरान उनकी तबीयत खराब हो गई और उन्होंने डॉक्टर से गर्भपात की इजाजत मांगी. लेकिन डॉक्टरों ने एक कैथोलिक देश का हवाला देकर सविता को गर्भपात की इजाजत नहीं दी थी.
डॉक्टरों ने यह मांग खारिज कर दी क्योंकि भ्रूण में अभी भी दिल की धड़कन मौजूद थी और यह कहा कि ‘यह एक कैथोलिक देश है.’ लेकिन बाद में डॉक्टर ने मृत भ्रूण को हटा दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आयरलैंड के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल गालवे में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत सेप्टिक मिसकैरेज (गर्भावस्था के दौरान संक्रमण) की वजह से हुई. उनकी मौत ने देश में गर्भपात पर चर्चा छेड़ दी.
कर्नाटक में रह रहे सविता के पिता आनंदप्पा यालगी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आयरलैंड के लोग उनकी बेटी को याद रखेंगे.
क्या है आयरलैंड का गर्भपात कानून
आयरलैंड में 1983 में एक जनमत संग्रह के बाद संविधान में संशोधन किया गया था. इस संशोधन के तहत महिला और उसके गर्भ में बच्चे को भी जीवन के समान अधिकार दिए गए थे, यानी गर्भपात को पूरी तरह गैरकानूनी बना दिया गया था. ऐसा करने वाले के लिए 14 साल सजा का प्रावधान था.
लेकिन साल 1992 में एक रेप पीड़िता के गर्भपात की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. जिसके बाद सरकार ने लोगों को देश के बाहर जाकर गर्भपात की अनुमति दे दी थी. इसके बाद आयरलैंड में जिस भी महिला को गर्भपात कराना होता, उन्हें विदेश जाना पड़ता.
हालांकि 1992 के बाद से गर्भपात को लेकर जो कानून है उसके मुताबिक महिला की जान को खतरा होने की स्थिति में ही गर्भपात की इजाजत है और बलात्कार के मामलों में यह नहीं है.
सरकार को कराना पड़ा जनमत संग्रह
इस कानून में बदलाव के लिए सरकार को जनमत संग्रह का रास्ता अपनाना पड़ा. कराए गए जनमत संग्रह को कराने में आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वाराडकर ने अहम भूमिका निभाई. बता दें कि लियो वाराडकर भारतीय मूल के हैं.
“लोगों ने अपनी राय जाहिर कर दी. एक आधुनिक देश के लिए एक आधुनिक संविधान की जरूरत है. आयरलैंड के मतदाता महिलाओं के सही निर्णय लेने और अपने स्वास्थ्य के संबंध में सही फैसला करने के लिए उनका सम्मान और उन पर यकीन करते हैं.”लियो वाराडकर, प्रधानमंत्री, आयरलैंड
इस संबंध में आई पहली आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक गर्भापत के खिलाफ किए गए संशोधन को निरस्त करने की मांग को 66 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हुआ है.
ये भी पढ़ें- गर्भपात कराने से पहले ये बातें जानना जरूरी है
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)