अफगानिस्तान (Afghanistan) की सत्ता पर काबिज होने क बाद तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान की सुरक्षा का दावा किया था और यह भी कहा था कि उसने देश को "युद्ध के दलदल" से बचा लिया है. लेकिन हाल ही के हफ्तों में आईएसआईएस (ISIS) के एक सहयोगी समूह द्वारा किए गए हमलों की एक श्रृंखला ने उन दावों को गलत साबित किया है.
तालिबान के सत्ता में आने के छह हफ्तों के भीतर ही खुरासान (Khorasan) प्रांत में आईएसआईएस-के (Islamic State-K) के मौजूद होने और काबुल, जलालाबाद और मजार-ए-शरीफ शहरों में उनके द्वारा किये गए हमलों और गतिविधियों की खबरें आई हैं.
तालिबान के सत्ता पर काबिज होने क बाद आईएसआईएस ने किये कई हमले
26 अगस्त को अफगानिस्तान के काबुल में हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक शक्तिशाली आत्मघाती बम विस्फोट में 13 अमेरिकी सैनिक और 169 अफगान मारे गए. जिनमें लगभग 30 तालिबान लड़ाके भी शामिल थे. हमले ने एक बार फिर आईएसआईएस की मजबूत क्षमताओं की ओर इशारा किया था.
तालिबान ने हवाईअड्डे पर हमले को रोकने में विफल रहने के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया और कहा कि यह "ऐसे इलाके में हुआ जहां सुरक्षा के लिए अमेरिकी सेना जिम्मेदार है." लेकिन बम विस्फोटों के तत्काल बाद, पीड़ितों के परिवारों ने अपना गुस्सा तालिबान पर दिखाया और उन्होंने इस हमले को 20 वर्षों में सबसे घातक हमलों में से एक हमला मान तालिबान को इसे रोकने में विफल बताया
नंगरहार प्रांत की राजधानी जलालाबाद शहर में आईएसकेपी (ISKP) के कई हमलों की सूचना मिली है. IED विस्फोटों सहित हाल के हमलों में आम नागरिक और तालिबानी लड़ाके मारे गए. एक टेलीग्राम संदेश में आईएसकेपी (ISKP) ने जलालाबाद में 35 तालिबान लड़ाकों को मार गिराने का दावा किया. जिस दावे को तालिबान ने खारिज कर दिया था.
तालिबान को उसी के तरीको से फसा रहा ISIS
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट ने हाल के हमलों का विश्लेषण किया जिसमे बताया गया कि तालिबान, खुरासान में आईएसआईएस के खतरे को कम कर रहे हैं लेकिन यह खतरा अब भी बना है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमलावरों ने उसी रणनीति का इस्तेमाल किया जिसका इस्तेमाल तालिबान कभी करता था जैसे की कारों के नीचे चिपचिपे बम चिपकाना.
यह तालिबान की ऑपरेशन शैली थी और इसका इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अधिकारियों और आम नागरिको पर हमला किया. तालिबान के खुफिया अधिकारियों में से एक ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स को बताया
"हम इन चिपचिपे बमों से चिंतित हैं पहले हम काबुल में अपने दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे. हम अपने नेतृत्व के बारे में चिंतित हैं क्योंकि अगर वे उन्हें सफलतापूर्वक कंट्रोल नहीं करते हैं तो उन्हें निशाना बनाया जा सकता है ."
तालिबान को अपने लड़ाकों के दलबदल का डर
20 वर्षो से भी अधिक समय से लगातार लड़ने के कारण तालिबान के लड़ाकों के लिए शांति से रह पाना एक बड़ी चुनौती है. लम्बे समय से लगातार लड़ने की कारण उन्हें युद्ध क्षेत्र में रहने की हथियार चलने की और खतरों से खेलने की एक आदत सी हो चली है.
अफगानिस्तान में अमेरिकी युद्ध पर रिपोर्ट करने वाले लेखक और पत्रकार वेस्ली मॉर्गन का कहना है कि तालिबान को एक डर है.मॉर्गन ने कहा, तालिबान को एक 'दलबदल' जैसे बहुत ही वास्तविक खतरे से बचने के लिए ISKP बलों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए.
बत्तौर मॉर्गन इस डर की एक ऐतिहासिक वजह है. हेलमंद और फराह के दक्षिण-पश्चिमी इलाको में आईएसकेपी( ISKP) बलों के पहले नेताओं में से एक तालिबान लड़ाकू मुल्ला अब्दुल रऊफ खादेम था.
मॉर्गन ने कहा, उन तालिबानी सदस्यों के लिए जो लड़ाई के लिए तरसते हैं आईएसआईएस- जो की अफगानों के बीच क्रूरता और हिंसा के लिए जाना जाने वाला डरावना संगठन है एक आकर्षक विकल्प साबित हो सकता है.
आईएसआईएस-के और तालिबान के बीच का इतिहास
आईएसआईएस-के (ISIS K) पहली बार 2014 के अंत में उभरा और फिर 2018 के आसपास इसके वर्चस्व में गिरावट आई क्योंकि उनपर तालिबान और अमेरिकी सेना दोनों द्वारा हमला किया गया था.
विश्लेषकों के अनुसार, आईएसआईएस-के के पास 2,000 से कम लड़ाके हैं.
अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान द्वारा कैदियों की रिहाई ने आईएसआईएस-के (ISIS K) को कुछ हद तक मजबूत किया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान और हक्कानी के बीच झड़पों की खबरों के बीच जहां तालिबान में नाराजगी के संकेत दिख रहे हैं वहीं आईएसआईएस-के के नए सदस्य बनने की संभावना है.
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