इजराइल (Israel) के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट (Naftali Bennett) ने उनकी आठ वैचारिक रूप से अलग दलों वाली ऐतिहासिक गठबंधन सरकार को भंग करने की घोषणा कर दी है. इसके बाद इजराइल चार साल में पांचवी बार चुनाव के ओर अग्रसर हो गया है. इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि अक्टूबर या नवंबर के दौरान देश में एक बार फिर से संसदीय चुनाव हो सकते हैं.
यह बात और है कि जानकारों को इस बात का अनुमान 2021 बेनेट की सरकार के गठन के बाद से ही था कि देश में एक और चुनाव जल्द ही होने वाला है, जिसका मुख्य कारण गठबंधन सरकार में वैचारिक रूप से एकदम अलग आठ दलों (यश अतिद, यामिना, ब्लू एंड वाइट, लेबर पार्टी, मेरेत्ज, राम, न्यू होप और इजराइल बेतेन्नु) का होना था. ये दल तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को वापस सत्ता में आने से रोकने के लिए एक सरकार बनाने को राजी हुए थे. एक सच ये भी है कि इजरायल में कभी ऐसा गठबंधन नहीं बना था.
अगर नेफ्ताली बेनेट सरकार के घटक दलों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि इस गठबंधन सरकार का कार्यकाल पूरा कर पाना शुरू से ही बहुत मुश्किल था.
क्योंकि घटक दलों में वेस्ट बैंक अन्नेक्सेशन, सेटलमेंट तथा द्वि-राज्यीय समाधान के मुद्दों पर पहले से ही अलग-अलग विचार थे.
वैचारिक रूप से यामिना, ब्लू एंड वाइट और न्यू होप द्वि-राज्यीय समाधान का विरोध करते हैं. दूसरी तरफ यश अतिद, तथा राम पार्टी द्वि-राज्यीय समाधान का पुरजोर समर्थन करते हैं, जिसकी वजह से अनुमान लगाया जा रहा था कि जब भी इन विषयों पर विचार होगा तब निश्चित ही गठबंधन में मतभेद भी होगा.
सरकार के पिछले एक साल के कार्यकाल में भी कई बार घटक दल, सरकार की नीतियों को लेकर खुश नहीं थे. इसी वजह से सांसद इडिट सिलमन ने 5 अप्रैल 2022 को सरकार से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद गठबंधन अल्पमत में आ गया था.
इसके बाद 17 अप्रैल को राम पार्टी प्रमुख मंसूर अब्बास के गठबंधन सरकार से अस्थायी रूप से समर्थन वापस लेने की घटना ने भी मनमुटावों की तरफ इशारा किया था. बहुमत का अभाव होने के कारण, सत्र शुरू होने के बाद से ही बेनेट सरकार को लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था.
बात प्रधानमंत्री के दल यामिना की करें तो यह एक दक्षिण पंथी दल है जो इजरायल की यहूदी पहचान तथा यहूदी धार्मिक विरासत के संरक्षण का पुरजोर समर्थन करता है.
यश अतिद एक सेंट्रिस्ट पार्टी है.
न्यू होप पार्टी एक दक्षिण पंथी रूढ़िवादी पार्टी है जो एक तरफ यहूदी पहचान तथा दूसरी तरफ लोकतान्त्रिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित करती है.
ब्लू एंड वाइट, यामिना, यश अतिद और न्यू होप पार्टियां इजराइल की यहूदी पहचान के समर्थक है.
लेबर पार्टी और मेरेत्ज वाम पंथी घटक दल हैं जो द्वि-राज्यीय समाधान का पुरजोर समर्थन करते हैं
राम पार्टी की की जाए तो यह एक इस्लामिक पार्टी है जो इजराइल में रह रहे अरब लोगों के हितों की बात करती है और साथ ही द्वि-राज्यीय समाधान का समर्थन करती है.
गठबंधन सरकार 2 जून को संसद सत्र शुरू होने के बाद, इजराइल के कानून को वेस्ट बैंक सेटलर्स पर विस्तार करने वाले विधयक को पास करवाने में भी असफल रही थी, जिसके बाद गठबंधन के विघटन के कयास लगातार लगाए जा रहे थे.
द गार्डियन के मुताबिक अरब सांसद जो कि गठबंधन का हिस्सा थे वो विधेयक के समर्थन में नहीं थे जबकि न्यू होप पार्टी लगातार विधेयक को पास करने के समर्थन में दबाव बना रही थी.
इसके बाद सांसद नीर ओर्रबाख ने यह कहते हुए गठबंधन को छोड़ दिया था कि सरकार अपने मिशन में फेल हो गयी है और इसके लिए उन्होंने राम तथा मेरेत्ज़ पार्टी के सांसदों को आरोपित भी किया था. ओर्रबाख के जाने के बाद गठबंधन के पास सिर्फ 59 सांसदों का ही समर्थन बचा था. बेनेट की ज्वाइंट स्टेटमेंट ने इस बात को साफ कर दिया है कि अब गठबंधन को संतुलित करने के सारे प्रयास असफल हो चुके हैं इसलिए संसद भंग करना अनिवार्य हो गया है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े.
क्या चुनाव कोई बड़ा बदलाव लायेंगे ?
अगर पिछले चार संसदीय चुनावों पर नजर डालें तो यह समझने में बिलकुल भी कठिनाई नहीं होगी कि आने वाले चुनाव में भी राजनितिक तस्वीर कुछ ज्यादा बदलने नहीं वाली है. बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी आने वाले चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है किन्तु लिकुड पार्टी के लिए भी सरकार बना पाना आसान नहीं होगा, साथ ही किसी भी पार्टी के पूर्ण बहुमत पाने के भी आसार बहुत कम है.
राजनितिक विशेषज्ञों के मुताबिक कुछ छोटी पार्टियां जैसे यामिना और न्यू होप शायद थ्रेशोल्ड वोट (कुल मतदान का 3.25 प्रतिशत) भी पार न कर पाए, किन्तु शास पार्टी, लेबर पार्टी, इजराइल बेतेनु पार्टी तथा ब्लू एंड वाइट पार्टी की सीटों में ज्यादा बदलाव की संभावना नहीं है. इस बात के भी बड़े आसार हैं कि चुनाव के बाद एक लम्बे समय तक राजनितिक दलों को सरकार बनाने में सफलता न मिले.
पिछले चुनावो में देखा गया है कि इजराइल के उदारवादी, वाम पंथी तथा अरब दल नेतन्याहू की अध्यक्षता में गठबंधन बनाने के इच्छुक नहीं थे. क्या आगामी चुनावो में भी यह स्थिति बनी रहती है, यह देखने योग्य होगा.
इस समय सब की नजर इस बात पर होगी की इजराइल की राजनीति में सबसे लम्बे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेतन्याहू वापस सत्ता में वापस करेंगे या नहीं?
भले ही बेनेट तथा लिपिड की गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी हो किंतु इजराइल के राजनितिक इतिहास के पन्नो में एक अनोखी गठबंधन सरकार के रूप में जरूर दर्ज हो चुकी है, जिसमें दक्षिणपंथी, वामपंथी तथा अरब दल एक साथ सरकार में थे.
(लेखक डॉ. जतिन कुमार मिडिल ईस्ट देशों से जुड़े राजनीतिक मुद्दों के विशेषज्ञ हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं )
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