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इजरायल-फिलिस्तीन विवाद क्या है? हिटलर के जुल्म से आज के 'जंग' तक की कहानी| Explainer

Israel-Palestine Conflict: इजरायल पर हमास के हमले के बाद एक बार फिर इजरायल और फिलिस्तीन विवाद चर्चा के केंद्र में है. आइए जानते हैं कि आखिर ये विवाद क्या है?

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इजरायल (Israel) पर हमास (Hamas) के ताजा हमले के बाद एक बार फिर इजरायल और फिलिस्तीन विवाद (Israel-Palestine Conflict) चर्चा के केंद्र में है. शनिवार, 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल के खिलाफ “ऑपरेशन अल-अक्सा स्टॉर्म" शुरू किया. हमास ने गाजा स्ट्रिप से इजरायल के ऊपर 5000 रॉकेट्स दागने का दावा किया है. इतना ही नहीं, हमास से जुड़े दर्जनों लड़ाके दक्षिण की तरफ से इजरायल की सीमा के अंदर घुस गए. वहीं इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने हमास के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया है.

इस ताजा संघर्ष के बीच समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इजरायल-फिलिस्तीन के बीच संघर्ष की असल वजह क्या है? दोनों देशों के बीच तनाव का कारण क्या है? गाजा स्ट्रिप क्या है? हमास क्या है? यरूशलम दोनों देशों के लिए क्यों अहम?

इजरायल-फिलिस्तीन विवाद क्या है? हिटलर के जुल्म से आज के 'जंग' तक की कहानी| Explainer

  1. 1. इजरायल-फिलिस्तीन का भूगोल

    इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को समझने से पहले सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर ये विवाद कहां और दुनिया के किस हिस्से में चल रहा है. इसके लिए इजरायल और फिलिस्तीन के भूगोल को समझना बेहद जरूरी है.

    इजरायल मिडिल ईस्ट में मौजूद एक यहूदी देश है. इसके पूर्वी हिस्से में वेस्ट बैंक और दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में गाजा स्ट्रिप यानी गाजा पट्टी है. वेस्ट बैंक और गाजा स्ट्रिप को आमतौर पर फिलिस्तीन के तौर पर जाना जाता है. वेस्ट बैंक में 'फिलिस्तीन अथॉरिटी' सरकार चलाती है. इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है. वेस्ट बैंक में ही इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म का पवित्र शहर यरूशलम भी मौजूद है. 

    वहीं इजरायल के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित गाजा स्ट्रिप- दो तरफ से इजरायल से घिरा है. इसके एक तरफ भूमध्यसागर है और एक तरफ से इसका बॉर्डर मिस्र से लगता है. इजरायल पर ताजा हमला इसी गाजा स्ट्रिप से किया गया है. जिसपर साल 2007 से हमास का कब्जा है.

    बता दें कि इजरायल की अपनी सरकार है. बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) यहां के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं. वहीं वेस्ट बैंक में 'फिलिस्तीन अथॉरिटी' के तहत फतह पार्टी की सरकार है. महमूद अब्बास यहां के वर्तमान राष्ट्रपति हैं.

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  2. 2. ओटोमन साम्राज्य की हार, विवाद की शुरुआत

    फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद की नींव प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) में ओटोमन साम्राज्य की हार के साथ ही पड़ गई थी. दरअसल, फिलिस्तीन पर पहले ओटोमन साम्राज्य का शासन था. लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर पूरा कब्जा कर लिया. उस वक्त इजरायल नाम से कोई देश नहीं था. इजरायल से लेकर वेस्ट बैंक तक के इलाके को फिलस्तीनी क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था. तब फिलिस्तीन में यहूदी अल्पसंख्यक और अरब बहुसंख्यक थे.

    1917 में ब्रिटेन ने सार्वजनिक रूप से फिलिस्तीन में "यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्रीय घर" स्थापित करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की थी. जिसे बाल्फोर घोषणा (अरबी में "बालफोर का वादा") कहा जाता है.

    यह बयान तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बाल्फोर द्वारा लियोनेल वाल्टर रोथ्सचाइल्ड (ब्रिटिश-यहूदी समुदाय के प्रमुख नेता) को लिखे गए पत्र के रूप में सामने आया था.

    युद्ध के बाद के बाकी शासनादेशों के विपरीत, यहां ब्रिटिश शासनादेश का मुख्य लक्ष्य एक यहूदी "राष्ट्रीय घर" की स्थापना के लिए स्थितियां बनाना था- जहां उस समय यहूदियों की आबादी 10 प्रतिशत से भी कम थी.

    जनादेश के शुरू होने पर, अंग्रेजों ने फिलिस्तीन में यूरोपीय यहूदियों के आप्रवासन को सुविधाजनक बनाना शुरू कर दिया. 1922 और 1935 के बीच, यहूदी आबादी नौ प्रतिशत से बढ़कर कुल आबादी का लगभग 27 प्रतिशत हो गई.

    उस दौर में फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासियों की संख्या में बढ़ोतरी का बड़ा कारण यूरोपीय देशों में यहूदियों का उत्पीड़न भी था. द्वितीय विश्व युद्ध और खासकर जर्मनी में हिटलर के नाजी शासन में यहूदियों के व्यापक जनसंहार के बाद यहूदियों के लिए अलग देश की मांग तेज होने लगी थी.

    एक तरफ जहां यहूदियों का मानना था कि ये उनके पूर्वजों का घर है. वहीं दूसरी ओर फिलस्तीनी अरब भी इस क्षेत्र पर अपना दावा करते थे. इस तरह से फिलिस्तीन-इजरायल विवाद की शुरुआत हुई.

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  3. 3. 1948 में इजरायल की स्थापना

    29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 181 (जिसे विभाजन प्रस्ताव के रूप में भी जाना जाता है) को अपनाया. जिसके तहत ब्रिटिश शासन के अधीन फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का फैसला किया गया. प्रस्ताव के तहत, यरूशलेम को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण के अधीन रखने का फैसला किया गया.

    अगले ही साल इजरायल ने अपनी आजादी का ऐलान कर दिया. 14 मई, 1948 को यहूदी एजेंसी के प्रमुख डेविड बेन-गुरियन ने इजरायल राज्य की स्थापना की घोषणा की. अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने उसी दिन इस नए राष्ट्र को मान्यता दे दी.

    इजरायल ने जैसे ही अपनी आजादी का ऐलान किया, इसके महज 24 घंटे के अंदर ही अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने उस पर हमला कर दिया. करीब एक साल तक चली इस लड़ाई में अरब देशों की सेनाओं की हार हुई. अंत में ब्रिटिश राज वाला ये पूरा हिस्सा तीन भागों में बंट गया. जिसे इजरायल, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी का नाम दिया गया.

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  4. 4. 1917 से कैसे फिलिस्तीन पर बढ़ता गया इजरायल का कब्जा?

    चलिए अब आपको मैप के जरिए समझाते हैं कि कैसे 1917 से 2020 तक फिलिस्तीन पर इजरायल का कब्जा बढ़ता गया. अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलिस्तीन पर ब्रिटिश शासन से पहले, यहूदी कुल जनसंख्या का लगभग 6 प्रतिशत थे. 1947 से 1950 तक, नकबा या " कैटास्ट्रोफ" के दौरान, यहूदी सैन्य बलों ने कम से कम 750,000 फिलिस्तीनियों को निष्कासित कर दिया और ऐतिहासिक फिलिस्तीन के 78 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया. शेष 22 प्रतिशत को वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में विभाजित किया गया था.

    1967 के युद्ध के दौरान, इजरायली सेना ने पूरे ऐतिहासिक फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया और 300,000 से अधिक फिलिस्तीनियों को उनके घरों से निकाल दिया.

    2008 और 2021 के बीच, कम से कम 5,739 फिलिस्तीनी और 251 इजरायली मारे गए. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, इजरायल में एक मौत के मुकाबले फिलिस्तीन में 23 लोगों की मौतें हुई हैं. इस दौरान कम से कम 1,21,438 फिलिस्तीनी और 5,682 इजरायली घायल हुए हैं.

    संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, फिलिस्तीनी गुट से मारे गए लोगों में से कम से कम 1,255 (22 प्रतिशत) बच्चे थे और 565 (10 प्रतिशत) महिलाएं थीं. इजरायल की ओर से मारे गए लोगों में से 121 (48 प्रतिशत) सुरक्षा बल थे.

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  5. 5. यरूशलम- एक विभाजित शहर

    इजरायल-फिलिस्तीन विवाद के बीच यरूशलम के इतिहास को भी समझना जरूरी है. चलिए आपको बतातें हैं कि ये शहर दोनों देशों के लिए क्यों अहम है. दरअसल, यरूशलम मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का एक पवित्र प्राचीन शहर है.

    पश्चिमी यरूशलम पर 1948 से इजरायल का कब्जा है, यहां यहूदी बहुसंख्यक हैं. वहीं पूर्वी यरूशलम में फिलिस्तीनी बहुसंख्यक हैं. इस हिस्से में अल-अक्सा मस्जिद परिसर सहित यरूशलेम का पुराना शहर है. 1967 में इजरायल ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था.

    अल-अक्सा मस्जिद दोनों के लिए इतना अहम क्यों है?

    दरअसल, अल-अक्सा मस्जिद इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. इसके अलावा यहूदी भी इसे अपना सबसे पवित्र स्थल मानते हैं. दोनों इसपर अपना-अपना दावा करते हैं, जो विवाद की एक और वजह है.

    यहूदियों के लिए 'टेंपल माउंट' और मुसलमानों के लिए 'अल-हरम अल शरीफ' के नाम से मशहूर पवित्र स्थल में 'अल-अक्सा मस्जिद' और 'डोम ऑफ द रॉक' शामिल है. 'डोम ऑफ द रॉक' को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है. पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण 'डोम ऑफ द रॉक' को मुसलमान भी पावन स्थल मानते हैं.

    1980 में इजरायल ने यरूशलम कानून पारित किया था, जिसमें दावा किया गया था कि "यरूशलम, पूर्ण और एकजुट, इजरायल की राजधानी है". फिलिस्तीन इसका विरोध करता आया है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के मुताबिक इसे अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण के अधीन रखने का फैसला किया गया था.

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  6. 6. गाजा पट्टी और हमास

    गाजा पट्टी एक फिलिस्तीनी क्षेत्र है. यह मिस्त्र और इजरायल के मध्य भूमध्यसागरीय तट पर स्थित है. इस पर हमास का शासन है. हमास सबसे बड़ा फिलिस्तीनी सैन्य समूह है और क्षेत्र के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक है. हालांकि, यह संगठन इजरायल के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध के लिए भी जाना जाता है.

    दरअसल, 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद नवगठित गाजा पट्टी पर मिस्र का शासन था. लेकिन 1967 में हुए छह दिवसीय युद्ध में इजरायल ने इस पर फिर से कब्जा कर लिया. इजरायल ने करीब 25 सालों तक इस पर कब्जा जमाए रखा.

    इसके बाद 1993-14 में इजरायल ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) द्वारा हस्ताक्षरित ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को गाजा पट्टी में सरकारी प्राधिकरण का चरणबद्ध स्थानांतरण शुरू किया.

    2005 में इजरायल ने गाजा पट्टी से अपने सभी सैनिकों और निवासियों हटा लिया. इसके बाद साल 2006 में हमास ने गाजा में चुनाव जीता. एक साल बाद हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) के सुरक्षा बलों को हटाकर गाजा पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया.

    बता दें कि हमास की स्थापना 1980 के दशक के अंत में, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर इजरायल के कब्जे के खिलाफ पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा (विद्रोह) की शुरुआत के बाद हुई थी.

    गाजा पट्टी पर डेढ़ दशक से ज्यादा के शासन काल में हमास और इजरायल के बीच संघर्ष जारी रहा है. दोनों ओर से लगातार हमले होते रहें जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई है.

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  7. 7. बीते एक दशक में क्या हुआ?

    फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) ने 2011 में संयुक्त राष्ट्र में "फिलिस्तीन राज्य" के रूप में मान्यता के लिए एक सांकेतिक तौर पर बोली लगाई. ये मुख्य रूप से इजरायल के साथ संबंधों में गतिशीलता की कमी को उजागर करने का एक प्रयास था.

    हालांकि, इसे जरूरी समर्थन नहीं मिला, लेकिन UNESCO ने "फिलिस्तीन राज्य" को एक सदस्य के रूप में स्वीकार किया.

    नवंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को "गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य" का दर्जा दिया था. जिसके बाद फिलिस्तीन को महासभा की बहसों में भाग लेने की अनुमति मिली थी और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में शामिल होने की उनकी संभावनाओं को बल मिला था.

    इसके बाद 2017 में हमास और फतह के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. जिसके तहत गाजा का प्रशासनिक नियंत्रण फतह प्रभुत्व वाले फिलिस्तीनी प्राधिकरण को सौंपना था, लेकिन निःशस्‍त्रीकरण पर विवादों की वजह से बात आगे नहीं बढ़ सकी.

    2022 में फतह और हमास सहित 14 अलग-अलग फिलिस्तीनी गुटों के प्रतिनिधियों ने अल्जीयर्स में एक नए सुलह समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मुलाकात की, जिसमें 2023 के अंत तक राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव कराने के प्रावधान शामिल थे.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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इजरायल-फिलिस्तीन का भूगोल

इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को समझने से पहले सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर ये विवाद कहां और दुनिया के किस हिस्से में चल रहा है. इसके लिए इजरायल और फिलिस्तीन के भूगोल को समझना बेहद जरूरी है.

इजरायल मिडिल ईस्ट में मौजूद एक यहूदी देश है. इसके पूर्वी हिस्से में वेस्ट बैंक और दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में गाजा स्ट्रिप यानी गाजा पट्टी है. वेस्ट बैंक और गाजा स्ट्रिप को आमतौर पर फिलिस्तीन के तौर पर जाना जाता है. वेस्ट बैंक में 'फिलिस्तीन अथॉरिटी' सरकार चलाती है. इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है. वेस्ट बैंक में ही इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म का पवित्र शहर यरूशलम भी मौजूद है. 

वहीं इजरायल के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित गाजा स्ट्रिप- दो तरफ से इजरायल से घिरा है. इसके एक तरफ भूमध्यसागर है और एक तरफ से इसका बॉर्डर मिस्र से लगता है. इजरायल पर ताजा हमला इसी गाजा स्ट्रिप से किया गया है. जिसपर साल 2007 से हमास का कब्जा है.

बता दें कि इजरायल की अपनी सरकार है. बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) यहां के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं. वहीं वेस्ट बैंक में 'फिलिस्तीन अथॉरिटी' के तहत फतह पार्टी की सरकार है. महमूद अब्बास यहां के वर्तमान राष्ट्रपति हैं.

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ओटोमन साम्राज्य की हार, विवाद की शुरुआत

फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद की नींव प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) में ओटोमन साम्राज्य की हार के साथ ही पड़ गई थी. दरअसल, फिलिस्तीन पर पहले ओटोमन साम्राज्य का शासन था. लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर पूरा कब्जा कर लिया. उस वक्त इजरायल नाम से कोई देश नहीं था. इजरायल से लेकर वेस्ट बैंक तक के इलाके को फिलस्तीनी क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था. तब फिलिस्तीन में यहूदी अल्पसंख्यक और अरब बहुसंख्यक थे.

1917 में ब्रिटेन ने सार्वजनिक रूप से फिलिस्तीन में "यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्रीय घर" स्थापित करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की थी. जिसे बाल्फोर घोषणा (अरबी में "बालफोर का वादा") कहा जाता है.

यह बयान तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बाल्फोर द्वारा लियोनेल वाल्टर रोथ्सचाइल्ड (ब्रिटिश-यहूदी समुदाय के प्रमुख नेता) को लिखे गए पत्र के रूप में सामने आया था.

युद्ध के बाद के बाकी शासनादेशों के विपरीत, यहां ब्रिटिश शासनादेश का मुख्य लक्ष्य एक यहूदी "राष्ट्रीय घर" की स्थापना के लिए स्थितियां बनाना था- जहां उस समय यहूदियों की आबादी 10 प्रतिशत से भी कम थी.

जनादेश के शुरू होने पर, अंग्रेजों ने फिलिस्तीन में यूरोपीय यहूदियों के आप्रवासन को सुविधाजनक बनाना शुरू कर दिया. 1922 और 1935 के बीच, यहूदी आबादी नौ प्रतिशत से बढ़कर कुल आबादी का लगभग 27 प्रतिशत हो गई.

उस दौर में फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासियों की संख्या में बढ़ोतरी का बड़ा कारण यूरोपीय देशों में यहूदियों का उत्पीड़न भी था. द्वितीय विश्व युद्ध और खासकर जर्मनी में हिटलर के नाजी शासन में यहूदियों के व्यापक जनसंहार के बाद यहूदियों के लिए अलग देश की मांग तेज होने लगी थी.

एक तरफ जहां यहूदियों का मानना था कि ये उनके पूर्वजों का घर है. वहीं दूसरी ओर फिलस्तीनी अरब भी इस क्षेत्र पर अपना दावा करते थे. इस तरह से फिलिस्तीन-इजरायल विवाद की शुरुआत हुई.

1948 में इजरायल की स्थापना

29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 181 (जिसे विभाजन प्रस्ताव के रूप में भी जाना जाता है) को अपनाया. जिसके तहत ब्रिटिश शासन के अधीन फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का फैसला किया गया. प्रस्ताव के तहत, यरूशलेम को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण के अधीन रखने का फैसला किया गया.

अगले ही साल इजरायल ने अपनी आजादी का ऐलान कर दिया. 14 मई, 1948 को यहूदी एजेंसी के प्रमुख डेविड बेन-गुरियन ने इजरायल राज्य की स्थापना की घोषणा की. अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने उसी दिन इस नए राष्ट्र को मान्यता दे दी.

इजरायल ने जैसे ही अपनी आजादी का ऐलान किया, इसके महज 24 घंटे के अंदर ही अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने उस पर हमला कर दिया. करीब एक साल तक चली इस लड़ाई में अरब देशों की सेनाओं की हार हुई. अंत में ब्रिटिश राज वाला ये पूरा हिस्सा तीन भागों में बंट गया. जिसे इजरायल, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी का नाम दिया गया.

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1917 से कैसे फिलिस्तीन पर बढ़ता गया इजरायल का कब्जा?

चलिए अब आपको मैप के जरिए समझाते हैं कि कैसे 1917 से 2020 तक फिलिस्तीन पर इजरायल का कब्जा बढ़ता गया. अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलिस्तीन पर ब्रिटिश शासन से पहले, यहूदी कुल जनसंख्या का लगभग 6 प्रतिशत थे. 1947 से 1950 तक, नकबा या " कैटास्ट्रोफ" के दौरान, यहूदी सैन्य बलों ने कम से कम 750,000 फिलिस्तीनियों को निष्कासित कर दिया और ऐतिहासिक फिलिस्तीन के 78 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया. शेष 22 प्रतिशत को वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में विभाजित किया गया था.

1967 के युद्ध के दौरान, इजरायली सेना ने पूरे ऐतिहासिक फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया और 300,000 से अधिक फिलिस्तीनियों को उनके घरों से निकाल दिया.

2008 और 2021 के बीच, कम से कम 5,739 फिलिस्तीनी और 251 इजरायली मारे गए. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, इजरायल में एक मौत के मुकाबले फिलिस्तीन में 23 लोगों की मौतें हुई हैं. इस दौरान कम से कम 1,21,438 फिलिस्तीनी और 5,682 इजरायली घायल हुए हैं.

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, फिलिस्तीनी गुट से मारे गए लोगों में से कम से कम 1,255 (22 प्रतिशत) बच्चे थे और 565 (10 प्रतिशत) महिलाएं थीं. इजरायल की ओर से मारे गए लोगों में से 121 (48 प्रतिशत) सुरक्षा बल थे.

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यरूशलम- एक विभाजित शहर

इजरायल-फिलिस्तीन विवाद के बीच यरूशलम के इतिहास को भी समझना जरूरी है. चलिए आपको बतातें हैं कि ये शहर दोनों देशों के लिए क्यों अहम है. दरअसल, यरूशलम मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का एक पवित्र प्राचीन शहर है.

पश्चिमी यरूशलम पर 1948 से इजरायल का कब्जा है, यहां यहूदी बहुसंख्यक हैं. वहीं पूर्वी यरूशलम में फिलिस्तीनी बहुसंख्यक हैं. इस हिस्से में अल-अक्सा मस्जिद परिसर सहित यरूशलेम का पुराना शहर है. 1967 में इजरायल ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था.

अल-अक्सा मस्जिद दोनों के लिए इतना अहम क्यों है?

दरअसल, अल-अक्सा मस्जिद इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. इसके अलावा यहूदी भी इसे अपना सबसे पवित्र स्थल मानते हैं. दोनों इसपर अपना-अपना दावा करते हैं, जो विवाद की एक और वजह है.

यहूदियों के लिए 'टेंपल माउंट' और मुसलमानों के लिए 'अल-हरम अल शरीफ' के नाम से मशहूर पवित्र स्थल में 'अल-अक्सा मस्जिद' और 'डोम ऑफ द रॉक' शामिल है. 'डोम ऑफ द रॉक' को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है. पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण 'डोम ऑफ द रॉक' को मुसलमान भी पावन स्थल मानते हैं.

1980 में इजरायल ने यरूशलम कानून पारित किया था, जिसमें दावा किया गया था कि "यरूशलम, पूर्ण और एकजुट, इजरायल की राजधानी है". फिलिस्तीन इसका विरोध करता आया है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के मुताबिक इसे अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण के अधीन रखने का फैसला किया गया था.

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गाजा पट्टी और हमास

गाजा पट्टी एक फिलिस्तीनी क्षेत्र है. यह मिस्त्र और इजरायल के मध्य भूमध्यसागरीय तट पर स्थित है. इस पर हमास का शासन है. हमास सबसे बड़ा फिलिस्तीनी सैन्य समूह है और क्षेत्र के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक है. हालांकि, यह संगठन इजरायल के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध के लिए भी जाना जाता है.

दरअसल, 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद नवगठित गाजा पट्टी पर मिस्र का शासन था. लेकिन 1967 में हुए छह दिवसीय युद्ध में इजरायल ने इस पर फिर से कब्जा कर लिया. इजरायल ने करीब 25 सालों तक इस पर कब्जा जमाए रखा.

इसके बाद 1993-14 में इजरायल ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) द्वारा हस्ताक्षरित ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को गाजा पट्टी में सरकारी प्राधिकरण का चरणबद्ध स्थानांतरण शुरू किया.

2005 में इजरायल ने गाजा पट्टी से अपने सभी सैनिकों और निवासियों हटा लिया. इसके बाद साल 2006 में हमास ने गाजा में चुनाव जीता. एक साल बाद हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) के सुरक्षा बलों को हटाकर गाजा पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया.

बता दें कि हमास की स्थापना 1980 के दशक के अंत में, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर इजरायल के कब्जे के खिलाफ पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा (विद्रोह) की शुरुआत के बाद हुई थी.

गाजा पट्टी पर डेढ़ दशक से ज्यादा के शासन काल में हमास और इजरायल के बीच संघर्ष जारी रहा है. दोनों ओर से लगातार हमले होते रहें जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई है.

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बीते एक दशक में क्या हुआ?

फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) ने 2011 में संयुक्त राष्ट्र में "फिलिस्तीन राज्य" के रूप में मान्यता के लिए एक सांकेतिक तौर पर बोली लगाई. ये मुख्य रूप से इजरायल के साथ संबंधों में गतिशीलता की कमी को उजागर करने का एक प्रयास था.

हालांकि, इसे जरूरी समर्थन नहीं मिला, लेकिन UNESCO ने "फिलिस्तीन राज्य" को एक सदस्य के रूप में स्वीकार किया.

नवंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को "गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य" का दर्जा दिया था. जिसके बाद फिलिस्तीन को महासभा की बहसों में भाग लेने की अनुमति मिली थी और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में शामिल होने की उनकी संभावनाओं को बल मिला था.

इसके बाद 2017 में हमास और फतह के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. जिसके तहत गाजा का प्रशासनिक नियंत्रण फतह प्रभुत्व वाले फिलिस्तीनी प्राधिकरण को सौंपना था, लेकिन निःशस्‍त्रीकरण पर विवादों की वजह से बात आगे नहीं बढ़ सकी.

2022 में फतह और हमास सहित 14 अलग-अलग फिलिस्तीनी गुटों के प्रतिनिधियों ने अल्जीयर्स में एक नए सुलह समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मुलाकात की, जिसमें 2023 के अंत तक राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव कराने के प्रावधान शामिल थे.

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