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नोबेल: कैसे डायनामाइट ने दुनिया को दिए नोबेल विजेता, खास फैक्ट्स

5 भाषाओं के जानकार, वैज्ञानिक, इंजीनियर अल्फ्रेड नोबेल के डायनामाइट आविष्कार ने कैसे गढ़ा नोबेल प्राइज

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17 साल की उम्र में 5 भाषाओं को बेधड़क बोलने वाले अल्फ्रेड नोबेल को नहीं पता था कि वो अपनी मौत के बाद दुनिया के सबसे मशहूर लोगों में से एक हो जाएंगे. आज जब दुनिया में किसी भी सम्मान की बात होती है तो सबसे ऊपर नोबेल प्राइज का ही नाम आता है.

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ऐसे में डायनामाइट यानी बारूदों की बुनियाद पर रखे गए इस अवॉर्ड के बारे में जानना जरूरी है.

अल्फ्रेड के पिता दिवालिया घोषित हो गए थे

21 अक्टूबर 1833 को स्वीडन में जन्मे अल्फ्रेड नोबेल के पैदा होने वाले ही साल उनके पिता इमेनुअल नोबेल बैंकरप्ट यानी दिवालिया घोषित हो गए. ऐसे में वो अपना देश छोड़कर रूस के पीटर्सबर्ग में जा पहुंचे और एक मैकेनिकल वर्कशॉप शुरू किया. अल्फ्रेड समेत इमेनुअल का पूरा परिवार तब स्वीडन में ही था. 9 साल बाद पूरा परिवार पीटर्सबर्ग में फिर से एकजुट हुआ.

अब अल्फ्रेड नोबेल का सफर शुरू हो चुका था, 5 भाषाओं को बिंदास तरीके से बोलने वाले अल्फ्रेड, 17 साल की उम्र में यानी साल 1850 में पेरिस पहुंचे, फिर सफरनामा उन्हें इटली, जर्मनी और यूनाइटेड स्टेट्स ले गया, जहां रहे कुछ न कुछ सीखा, लैबोरेटरीज में काम किया.

इस दौरान उनके पिता और भाईयों की कंपनी भी लगातार रूस में बढ़ती गई और वो बड़े मैकेनिकल और केमिकल इंडस्ट्रीज के मालिक भी बन गए.

डायनामाइट का आविष्कार और 355 पेटेंट

अपनी जिंदगी में अल्फ्रेड नोबेल ने 355 पेटेंट हासिल किए, उन्होंने बतौर केमिस्ट, इंजीनियर और कवि काफी नाम कमाया. बेशुमार दौलत कमाने का सिलसिला डायनामाइट जैसी विस्फोटक सामग्री बनाने के बाद शुरू हुआ.

बता दें कि डायनामाइट, नाइट्रोग्लिसरीन से बनता है. सबसे पहले अल्फ्रेड नोबेल को इस केमिकल की जानकारी इटैलियन केमिस्ट आसकानियो सुबरेरो से हुई. आसकानियो ने ही इस केमिकल को साल 1847 में इन्वेंट किया था.

नाइट्रोग्लिसरीन की जबरदस्त विस्फोटक क्षमता को देखते हुए अल्फ्रेड और उनके पिता ने इसपर काम करना शुरू कर दिया, शुरुआत में इस केमिकल को काबू करने की टेक्निक नहीं ढूंढी गई थी, इसे हैंडल करने और काबू करने के दौरान ही अल्फ्रेड ने डायनामइट का आविष्कार किया.

एक्सपेरिमेंट के दौरान भाई को खो दिया

खास बात ये है कि इसी तरह के एक एक्सपेरिमेंट के दौरान अल्फ्रेंड के भाई एमिल की हादसे में मौत हो गई थी. आखिर में साल 1867 में अल्फ्रेड को डायनामाइट पर पेटेंट हासिल हुआ, जिसके बाद उन्होंने स्कॉटलेंड में ब्रिटिश डायनमाइट कंपनी की स्थापना की, बाद में इसका नाम बदलकर नोबेल एक्सप्लोसिव कंपनी रख दिया गया. डायनाइमाइट की ही देन है जिससे महज 40 साल की उम्र में वो बेशुमार दौलत और शोहरत के मालिक बन बैठे.

नोबेल प्राइज का सफरनामा

10 दिसंबर 1896 में अल्फ्रेड नोबेल की मौत हो गई. इसके बाद जब उनके वसीयत को देखा गया, तो उनके रिश्तेदारों समेत कई लोग हैरान थे. क्योंकि नोबेल ने अपनी संपत्ति का ज्यादातर हिस्सा नोबेल प्राइज के लिए दे दिया था.

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उनकी वसीयत में लिखा गया-

ये पुरस्कार उन लोगों के लिए जिन्होंने पिछले सालों में मानव जाति के हित लिए सबसे बड़ा काम किया हो.

उनकी मौत के 5 साल तक ये विवाद चलता रहा फिर आखिर में साल 1901 में पहली बार नोबेल प्राइज का ऐलान हुआ.

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नोबेल प्राइज से जुड़े कुछ खास फैक्ट्स

  • फिजिक्स, केमेस्ट्री, मेडिसिन, लिटरेचर और पीस के क्षेत्र में सबसे महान योगदान देने वालों को नोबेल प्राइज दिया जाता है.
  • साल 1968 में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भी नोबेल प्राइज की शुरुआत की गई
  • साल 1901 से 2016 के बीच कुल 885 लोगों को और 26 संगठनों को ये प्राइज दिया जा चुका है.
स्नैपशॉट
  • अबतक 8 भारतीयों को मिला है नोबेल प्राइज
  • भारत की तरफ से पहला नोबेल प्राइज रबींद्रनाथ टैगोर ने हासिल किया था
  • नोबेल प्राइज जीतने वाले भारतीय
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर-लिटरेचर-1913
  • चंद्रशेखर वेंकटरमन-फिजिक्स-1930
  • हरगोबिंद खुराना-मेडिसिन-1968
  • मदर टेरेसा-पीस-1979
  • सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर-फिजिक्स -1983
  • अमर्त्य सेन-इकनॉमी-1998
  • वेंकटरमण रामकृष्णन-केमेस्ट्री-2009
  • कैलाश सत्यार्थी-पीस-2014
  • सभी कैटेगरी में अबतक 49 बार ऐसे मौके आए हैं जब नोबेल प्राइज नहीं दिया गया. मसलन पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी नहीं दिया गया. कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी क्षेत्र में योग्य व्यक्ति ही नहीं मिला जिसे ये प्राइज दिया जा सके.
  • सबसे कम उम्र में नोबेल हासिल करने का गौरव पाकिस्तान की मलाला युसुफजई के पास है. जिन्हें 17 साल की उम्र में साल 2014 में ये प्राइज दिया गया
  • 1901 से 2016 के बीच अबतक 49 बार नोबेल प्राइज महिलाओं को दिया गया है.
  • नोबेल प्राइज के इतिहास में दो ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने ये सम्मान लेने से इनकार कर दिया था, पहले थे फ्रांस के ज्यां पॉल सार्त्र, जो कोई भी अवॉर्ड लेने के हिमायती नहीं रहे थे.
  • साल 1973 में वियतनाम के रहने वाले ले डुक ठो ने नोबेल प्राइज लेने से इनकार कर दिया.
  • शांति का नोबेल प्राइज नॉर्वे में दिया जाता है वहीं बाकी सारे नोबेल प्राइज स्वीडन में दिए जाते हैं.
  • नोबेल प्राइज के तौर पर विजेताओं को एक गोल्ड मेडल (18 कैरेट), एक डिप्लोमा और 1.2 मिलियन डॉलर की राशि दी जाती है.
  • किसी भी ऐसे शख्स जिसका निधन हो चुका है उसे ये प्राइज नहीं दिया जा सकता है, हालांकि अगर ऐलान के बाद मौत होती है तो उस शख्स के किसी सगे संबंधी को ये सम्मान दिया जा सकता है.

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