राजनीतिक उथल-पुथल के बीच मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब को 'मित्र राष्ट्र' बताया है. साथ ही इन देशों में अपने एंबेसडर भी भेजे हैं जो मालदीव के मौजूदा हालात की जानकारी देंगे. 'मित्र राष्ट्र' की इस लिस्ट में भारत का नाम नहीं है. मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय के एक बयान में इस बात की जानकारी दी गई है. कहा गया है कि एंबेसडर चीन और पाकिस्तान पहुंच चुके हैं.
चीन ने दखल नहीं देने की बात कही थी
ये घोषणा चीन के उस बयान के बाद की गई जिसमें भारत की तरफ इशारा करते हुए कहा गया कि मालदीव के मामले में बाहरी दखल नहीं होना चाहिए. चीन ने कहा था कि बाहरी दखल से स्थिति 'जटिल' हो जाएगी. बता दें कि मालदीव के निर्वासित पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने गहराते राजनीतिक संकट को सुलझाने के लिए बीते कुछ दिनों से कई बार भारत से अपील की है.
ऑपरेशन कैक्टस का नशीद ने किया था जिक्र
नशीद ने बुधवार को कहा था कि मालदीव के लोगों ने 1988 के दौरान भारत की 'सकारात्मक' भूमिका को देखा था, जब भारत 'कब्जा जमाने वाला नहीं, बल्कि मुक्तिदाता' बना था. 'ऑपरेशन कैक्टस' नाम के उस अभियान में भारतीय सैनिकों को मालदीव रवाना किया गया था और उन्होंने श्रीलंका के कुछ तमिल लड़ाकों से निपटकर तत्कालीन राष्ट्रपति मॉमून गयूम की सरकार को गिरने से बचाया था. अब भारत ने कहा है कि वो मालदीव की स्थिति को लेकर 'परेशान' है.
मालदीव की करीबी भारत से या चीन से?
मालदीव में पिछले कुछ दिनों से सियासी हंगामा चल रहा है. यहां संकट सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव के कारण पैदा हुआ है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति नशीद समेत 9 नेताओं की रिहाई का आदेश सुनाया था जिसे सरकार ने मानने से इनकार कर दिया. हंगामा बढ़ने के बाद मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और सेना ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को गिरफ्तार कर लिया है.
इस पूरे मामले में कहा जा रहा है कि वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और सरकार को चीन का संरक्षण हासिल है. वहीं पूर्व राष्ट्रपति नशीद भारत की तरफ से टकटकी लगाए दिख रहे हैं. इससे पहले भी 1988 में भारत, मालदीव के सबसे बड़े मददगार के तौर पर आ चुका है. अब वहां की सरकार ने अपने 'मित्र राष्ट्र' चीन के पास तो अपने एंबेसडर तो भेजे लेकिन भारत को नजरंदाज कर दिया है.
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