तालिबान (Taliban) का सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर नई अफगान सरकार का नेतृत्व कर सकता है और इसकी घोषणा जल्द की जा सकती है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अक्टूबर 2018 में अमेरिका के अनुरोध पर पाकिस्तान की जेल से रिहा हुआ तालिबानी नेता अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान (Afghanistan) में पिछले 20 साल से चल रहे संघर्ष का निर्विवाद विजेता बन कर उभरा है.
हालांकि वर्तमान में हैबतुल्लाह अखुनजादा तालिबान का सबसे बड़ा नेता है, लेकिन बरादर तालिबान का राजनीतिक प्रमुख और इसका सबसे सार्वजनिक चेहरा रहा है. आखिर क्या है उस मुल्ला बरादर की कहानी जो तालिबान सरकार के चेहरे के रूप में सामने आया है.
मुल्ला बरादर की कहानी
1968 में अफगानिस्तान के उरुजगान प्रांत में जन्मे बरादर ने 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन के रूप में लड़ाई लड़ी. 1989 में रूस अफगानिस्तान से पीछे हट गया और तीन साल बाद ही अफगानिस्तान प्रतिद्वंद्वी वॉरलॉर्ड के बीच गृहयुद्ध में उलझ गया. इसी बीच बरादर ने अपने पूर्व कमांडर और बहनोई, मोहम्मद उमर के साथ कंधार में एक मदरसा स्थापित किया.
दोनों ने साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की, जो अफगानिस्तान के धार्मिक शुद्धिकरण और एक अमीरात के निर्माण के लिए समर्पित युवा इस्लामी विद्वानों का आंदोलन था.
धार्मिक उत्साह और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के पर्याप्त समर्थन के बल पर तालिबान ने 1996 में सत्ता पर कब्जा किया. मुल्ला उमर के दायें हाथ के रूप में बरादर, जिसे व्यापक रूप से एक अत्यधिक प्रभावी रणनीतिकार माना जाता था, उस जीत का मास्टरमाइंड था. हालांकि इसके बाद से ही इस संगठन को कई देशों ने आतंक से जोड़कर देखा.
पोपलजई पश्तून समुदाय से आने वाले मुल्ला बरादर बरादर ने पांच साल के तालिबान शासन में सैन्य और प्रशासनिक भूमिकाएं निभाईं और अमेरिका और उसके अफगान सहयोगियों के हाथों तालिबान को हटाये जाने तक बरादर उप रक्षा मंत्री था.
निर्वासन के 20 साल और फिर वापसी
अफगानिस्तान से तालिबान के 20 साल के निर्वासन के दौरान बरादर की एक शक्तिशाली सैन्य नेता और एक मंझे हुए राजनीतिक संचालक के रूप में प्रतिष्ठा थी.
ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका बरादर की सैन्य विशेषज्ञता से अधिक भयभीत था, हालांकि कई लोग उसके कथित उदारवादी झुकाव के बारे में आशावादी थे. अमेरिका खुफिया एजेंसी सीआईए ने 2010 में उसे कराची में ट्रैक किया और उसी साल फरवरी में पाकिस्तान को उसे गिरफ्तार करने के लिए राजी किया.
हालांकि 2018 में बरादर को लेकर वाशिंगटन का रुख बदल गया और डोनाल्ड ट्रंप के अफगान दूत, खलीलजाद ने पाकिस्तानियों से बरादर को रिहा करने के लिए कहा, ताकि वो कतर में तालिबान वार्ता का नेतृत्व कर सके.
बरादर ने फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किया. इसे ट्रंप प्रशासन ने शांति की दिशा में एक सफलता के रूप में देखा, लेकिन आज यही अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे का मूल बनकर सामने आया है.
कैसी हो सकती है तालिबानी सरकार?
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया कि तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख बरादर के साथ मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला मोहम्मद याकूब और शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई भी सरकार में वरिष्ठ पदों पर शामिल होंगे.
तालिबान के एक अन्य सूत्र ने कहा उसे बताया कि तालिबान के सर्वोच्च धार्मिक नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा इस्लाम के ढांचे के भीतर धार्मिक मामलों और शासन पर ध्यान केंद्रित करेंगा.
तालिबान ने जहां आम सहमति वाली सरकार बनाने की अपनी इच्छा की बात कही है, वहीं इस्लामी उग्रवादी आंदोलन के एक करीबी सूत्र ने रायटर्स से कहा कि अब जो अंतरिम सरकार बन रही है, उसमें केवल तालिबान के सदस्य होंगे.
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